गोरखपुर: जिले में 2 से 11 नवंबर तक एक्टिव केस फाइंडिंग प्रोग्राम चलाया जाएगा. इस अभियान के तहत 4 लाख 83 हजार आबादी के घर-घर जाकर स्वास्थ विभाग की टीम स्क्रीनिंग करेगी. इस अभियान के दौरान मेडिकल टीम कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करेगी और जिन लोगों में टीवी के लक्षण दिखेंगे, उनके बलगम की जांच कराते हुए समुचित इलाज दिया जाएगा.
स्वास्थ्य विभाग मानता है कि क्षय रोग के प्रसार को तभी रोका जा सकता है, जब इसके रोगी की पहचान कर उसे पूरी खुराक की दवा दी जाये. उनका मानना है कि बीमारी के बीच में दवा छोड़ना टीबी के मरीजों के लिए घातक हो सकता है.
निक्षय पोषण योजना का मिला लाभ
कोरोना काल के बाद टीबी के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम को निर्धारित किया गया, क्योंकि विभाग गोरखपुर में कोरोना काल के दौरान टीबी के नए मरीजों को चिह्नित नहीं कर पाया था. हालांकि इस दौरान 1,168 मरीजों को टेलीफोन पर संपर्क कर उन्हें स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई गई. इस वर्ष सरकारी क्षेत्र में 8,000, जबकि निजी क्षेत्र में 6 हजार टीबी रोगियों के नोटिफिकेशन का लक्ष्य रखा गया है.
इस लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 3,577 टीबी रोगी सरकारी क्षेत्र में और निजी क्षेत्र में 2,587 रोगियों को चिह्नित किये जा चुके हैं. एक्टिव केस फाइंडिंग कैंपेन के दौरान यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है. जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. रामेश्वर मिश्रा की मानें तो कोरोना काल में में टीबी के मरीज घर से बाहर नहीं निकले हैं. ऐसे में उनके घर के सदस्यों की जांच बेहद जरूरी हो गई है, जिससे संक्रमण का पता लग सके.
स्वास्थ्यकर्मियों की मदद से चलेगा अभियान
टीबी मरीजों की पहचान के लिए 4 लाख 83 हजार चिह्नित आबादी तक पहुंचने के लिए स्वास्थ्य महकमे ने 215 टीमें गठित की है. इस टीम में कुल 645 स्वास्थ्य कर्मी शामिल हैं. इसके अलावा 53 पर्यवेक्षक और 37 लैब टेक्नीशियन के माध्यम से इस अभियान को आगे बढ़ाया जाएगा, जो 21 मेडिकल ऑफिसर के देखरेख में चलेगा.
वहीं हर चिह्नित मरीज को दवा के अतिरिक्त 500 रुपया प्रति माह पोषण भत्ता के रूप में दिया जाएगा. इसके अलावा मल्टीड्रग रेजिस्टेंट के 282 और एक्टिव ड्रग रेसिस्टेंट 18 मरीजों के इलाज पर भी विभाग का खास जोर है. टीबी के सैंपल कलेक्ट करने में स्वास्थ विभाग डाक विभाग की भी मदद ले रहा है. इसके माध्यम से अब तक 308 सैंपल कलेक्ट हो चुके हैं.