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अलकनंदा नदी पर बांध बनाना बंद करे सरकार : जल पुरुष राजेंद्र सिंह

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने ईटीवी भारत खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि अलकनंदा जैसी नदी पर अगर बांध नहीं बनता तो ग्लेशियर फटने से इस तरह का प्रलय नहीं होता. बांध के टूटने से पानी की गति सामान्य से सौ से डेढ़ सौ गुना बढ़ जाती है.

jal purush rajendra singh
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह
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Published : Feb 9, 2021, 4:59 AM IST

गोरखपुर: देश और दुनिया में जल पुरुष के नाम से विख्यात और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा है कि उत्तराखंड में आई त्रासदी मानव जनित त्रासदी है. यह विकास की अंधी दौड़ का परिणाम है. गोरखपुर पहुंचे राजेंद्र सिंह ने मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि नदियों के संरक्षण और पर्यावरण को लेकर काम करने वाले समाजसेवी और वैज्ञानिक इस बात से सरकार को लगातार अवगत कराते हैं, लेकिन फिर भी प्रकृति और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करने से सरकार बाज नहीं आती.

राजेंद्र सिंह ने कहा बांध नहीं बनता तो ग्लेशियर फटने से प्रलय नहीं होता

राजेंद्र सिंह ने कहा कि अलकनंदा जैसी नदी पर अगर बांध नहीं बनता तो ग्लेशियर फटने से इस तरह का प्रलय नहीं होता. बांध के टूटने से पानी की गति सामान्य से सौ से डेढ़ सौ गुना बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि वह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी पर बांध न बने इसके लिए 30 वर्षों से विरोध कर रहे हैं.


नेपाल से बिहार सरकार को मिले अलर्ट

राजेंद्र सिंह ने कहा कि इसे प्रकृति का गुस्सा बताने से काम नहीं चलने वाला. उन्होंने आगाह किया कि विकास के दौर में सुरक्षा को भूल जाने पर इस तरह की घटनाओं को अभी आगे और भी भुगतना पड़ सकता है. नेपाल सरकार द्वारा हाल ही में बिहार सरकार को भेजे एक अलर्ट का हवाला देते हुए राजेन्द्र सिंह ने बताया कि, महाकाली नदी के पानी का धारचूला के डैम पर खतरनाक असर दिखाई दे रहा है जो बड़ी तबाही का कारण बन सकता है. सरकार को बिजली या अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए डैम बनाना है तो जिन नदियों को आपने प्रवाह को रोके जाने से कोई परेशानी नहीं होने वाली उस पर बनाएं, लेकिन अलकनंदा मंदाकिनी और भागीरथी पर किसी भी सूरत में सरकार बांध बनाने का प्रयास न करें.

गंगा की मुख्य धारा है अलकनंदा

जल पुरुष राजेंद्र सिंह का मानना है कि भारत को अपनी आस्था, अपने विज्ञान को समझकर अलकनंदा को बांधना ही नहीं चाहिए. यही वह नदी है जो गंगा की मुख्यधारा है. पहले जब अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी अपनी आजादी से बहती थी तो गंगा में ऐसे तत्व मिलते थे जो मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते थे. बांध बनाकर अवरोध पैदा कर दिए जाने से यह तत्व सिल्ट के साथ नदियों में नीचे बैठ जाते हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की तबाही को सिर्फ प्रकृति का गुस्सा नहीं कहा जा सकता, बल्कि इस गुस्से के जिम्मेदार हम खुद हैं. उनका सरकार को सुझाव है कि इन प्रमुख नदियों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के बजाए तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए. जब तीर्थयात्री यहां पहुंचते हैं तो वह इन नदियों को कुछ देकर जाते हैं, जबकि पर्यटक गंदगी फैलाते हैं और इनसे कुछ न कुछ लेकर जाते हैं. तीर्थस्थल के रूप में इनका विकास देश में समृद्धि लेकर आएगा.

2001 में मिला था रेमन मैग्सेसे पुरस्कार

वर्ष 2001 में राजेंद्र सिंह को एशिया का नोबेल माने जाने वाले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया. वर्ष 2008 में गार्डियन ने उन्हें 50 ऐसे लोगों की सूची में शामिल किया था जो पृथ्वी को बचा सकते हैं. राजेंद्र सिंह ने 2012 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण से यह कहते हुए किनारा कर लिया था कि सरकार की गंगा के पुनरुद्धार में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने इस प्राधिकरण को नखदंतविहीन करार देते हुए कहा था कि तीन वर्षों में इसकी केवल दो बैठकें हुई हैं.

गोरखपुर: देश और दुनिया में जल पुरुष के नाम से विख्यात और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा है कि उत्तराखंड में आई त्रासदी मानव जनित त्रासदी है. यह विकास की अंधी दौड़ का परिणाम है. गोरखपुर पहुंचे राजेंद्र सिंह ने मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि नदियों के संरक्षण और पर्यावरण को लेकर काम करने वाले समाजसेवी और वैज्ञानिक इस बात से सरकार को लगातार अवगत कराते हैं, लेकिन फिर भी प्रकृति और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करने से सरकार बाज नहीं आती.

राजेंद्र सिंह ने कहा बांध नहीं बनता तो ग्लेशियर फटने से प्रलय नहीं होता

राजेंद्र सिंह ने कहा कि अलकनंदा जैसी नदी पर अगर बांध नहीं बनता तो ग्लेशियर फटने से इस तरह का प्रलय नहीं होता. बांध के टूटने से पानी की गति सामान्य से सौ से डेढ़ सौ गुना बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि वह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी पर बांध न बने इसके लिए 30 वर्षों से विरोध कर रहे हैं.


नेपाल से बिहार सरकार को मिले अलर्ट

राजेंद्र सिंह ने कहा कि इसे प्रकृति का गुस्सा बताने से काम नहीं चलने वाला. उन्होंने आगाह किया कि विकास के दौर में सुरक्षा को भूल जाने पर इस तरह की घटनाओं को अभी आगे और भी भुगतना पड़ सकता है. नेपाल सरकार द्वारा हाल ही में बिहार सरकार को भेजे एक अलर्ट का हवाला देते हुए राजेन्द्र सिंह ने बताया कि, महाकाली नदी के पानी का धारचूला के डैम पर खतरनाक असर दिखाई दे रहा है जो बड़ी तबाही का कारण बन सकता है. सरकार को बिजली या अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए डैम बनाना है तो जिन नदियों को आपने प्रवाह को रोके जाने से कोई परेशानी नहीं होने वाली उस पर बनाएं, लेकिन अलकनंदा मंदाकिनी और भागीरथी पर किसी भी सूरत में सरकार बांध बनाने का प्रयास न करें.

गंगा की मुख्य धारा है अलकनंदा

जल पुरुष राजेंद्र सिंह का मानना है कि भारत को अपनी आस्था, अपने विज्ञान को समझकर अलकनंदा को बांधना ही नहीं चाहिए. यही वह नदी है जो गंगा की मुख्यधारा है. पहले जब अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी अपनी आजादी से बहती थी तो गंगा में ऐसे तत्व मिलते थे जो मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते थे. बांध बनाकर अवरोध पैदा कर दिए जाने से यह तत्व सिल्ट के साथ नदियों में नीचे बैठ जाते हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की तबाही को सिर्फ प्रकृति का गुस्सा नहीं कहा जा सकता, बल्कि इस गुस्से के जिम्मेदार हम खुद हैं. उनका सरकार को सुझाव है कि इन प्रमुख नदियों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के बजाए तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए. जब तीर्थयात्री यहां पहुंचते हैं तो वह इन नदियों को कुछ देकर जाते हैं, जबकि पर्यटक गंदगी फैलाते हैं और इनसे कुछ न कुछ लेकर जाते हैं. तीर्थस्थल के रूप में इनका विकास देश में समृद्धि लेकर आएगा.

2001 में मिला था रेमन मैग्सेसे पुरस्कार

वर्ष 2001 में राजेंद्र सिंह को एशिया का नोबेल माने जाने वाले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया. वर्ष 2008 में गार्डियन ने उन्हें 50 ऐसे लोगों की सूची में शामिल किया था जो पृथ्वी को बचा सकते हैं. राजेंद्र सिंह ने 2012 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण से यह कहते हुए किनारा कर लिया था कि सरकार की गंगा के पुनरुद्धार में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने इस प्राधिकरण को नखदंतविहीन करार देते हुए कहा था कि तीन वर्षों में इसकी केवल दो बैठकें हुई हैं.

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