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शक्ति और सम्मान का अदभुत केंद्र है गोरखपुर का 'बुढ़िया माई मंदिर' - सीएम योगी

जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर कुसम्ही जंगल में 'बुढ़िया माई मंदिर' स्थापित है, जहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. यह मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया था. वहीं सीएम योगी इस मंदिर को अच्छी सड़क से जोड़ने का एलान कर चुके हैं.

बुढ़िया माई मंदिर, गोरखपुर
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Published : Apr 8, 2019, 10:59 AM IST

गोरखपुर: नवरात्रि का समय हो या फिर सामान्य दिन, कुसम्ही जंगल में स्थापित 'बुढ़िया माई मंदिर' में भक्तों की भारी भीड़ श्रद्धा और मनोकामना पूर्ण होने की कामना के साथ उमड़ती है. यहां देवी मां की आराधना होती है. यह मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया था, जिसे लोग देवी रूप मानते हैं. मंदिर के अंदर मां भगवती की प्रतिमा के बगल में एक बूढ़ी दादी की प्रतिमा भी स्थापित है, जिसका श्रद्धालु आशीर्वाद लेना नहीं भूलते.

गोरखपुर के 'बुढ़िया माई मंदिर' में उमड़ती है भक्तों की भारी भीड़


इस मंदिर के पीछे की कहानी बेहद रोमांचक है. कुसम्ही जंगल के बीच से एक नाला गुजरता था, जिसपर बने कच्चे पुल पर एक बुढ़िया बैठी हुई थी. इस पुल से एक बारात गुजर रही थी. तब बुढ़िया मां ने बारात के नाच वालों से नाच दिखाने का आग्रह किया तो सभी ने उसका मजाक बनाया और हंसने लगे, लेकिन जोकर ने बुढ़िया के सम्मान में कुछ नाच दिखाया.


जैसे ही बारात पुल को पार करने लगी पुल टूट गया और तमाम लोग काल के गाल में समा गए. सिर्फ जोकर ही बच गया. ऐसा माना जाता है कि तभी से उस बुजुर्ग महिला को एक देवी रूप मानते हुए यहां मंदिर की स्थापना की गई. धीरे-धीरे यह स्थान लोगों की श्रद्धा का केंद्र हो गया. आज भी वह नाला है, जिसमें चलने वाली नाव पर सवार होकर लोग मां के दर्शन को जाते हैं. सीएम योगी मंदिर को अच्छी सड़क से जोड़ने का एलान कर चुके हैं.


यह मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर है. इस मंदिर की एक और भी कहानी है. मंदिर के स्थान पर थारूओं का निवास माना जाता था. वह पिंडी रूप में वन देवी की पूजा किया करते थे. इसके आस-पास एक बूढ़ी महिला अक्सर दिखाई देती थी और कुछ ही पल में वह ओझल हो जाती थी.

गोरखपुर: नवरात्रि का समय हो या फिर सामान्य दिन, कुसम्ही जंगल में स्थापित 'बुढ़िया माई मंदिर' में भक्तों की भारी भीड़ श्रद्धा और मनोकामना पूर्ण होने की कामना के साथ उमड़ती है. यहां देवी मां की आराधना होती है. यह मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया था, जिसे लोग देवी रूप मानते हैं. मंदिर के अंदर मां भगवती की प्रतिमा के बगल में एक बूढ़ी दादी की प्रतिमा भी स्थापित है, जिसका श्रद्धालु आशीर्वाद लेना नहीं भूलते.

गोरखपुर के 'बुढ़िया माई मंदिर' में उमड़ती है भक्तों की भारी भीड़


इस मंदिर के पीछे की कहानी बेहद रोमांचक है. कुसम्ही जंगल के बीच से एक नाला गुजरता था, जिसपर बने कच्चे पुल पर एक बुढ़िया बैठी हुई थी. इस पुल से एक बारात गुजर रही थी. तब बुढ़िया मां ने बारात के नाच वालों से नाच दिखाने का आग्रह किया तो सभी ने उसका मजाक बनाया और हंसने लगे, लेकिन जोकर ने बुढ़िया के सम्मान में कुछ नाच दिखाया.


जैसे ही बारात पुल को पार करने लगी पुल टूट गया और तमाम लोग काल के गाल में समा गए. सिर्फ जोकर ही बच गया. ऐसा माना जाता है कि तभी से उस बुजुर्ग महिला को एक देवी रूप मानते हुए यहां मंदिर की स्थापना की गई. धीरे-धीरे यह स्थान लोगों की श्रद्धा का केंद्र हो गया. आज भी वह नाला है, जिसमें चलने वाली नाव पर सवार होकर लोग मां के दर्शन को जाते हैं. सीएम योगी मंदिर को अच्छी सड़क से जोड़ने का एलान कर चुके हैं.


यह मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर है. इस मंदिर की एक और भी कहानी है. मंदिर के स्थान पर थारूओं का निवास माना जाता था. वह पिंडी रूप में वन देवी की पूजा किया करते थे. इसके आस-पास एक बूढ़ी महिला अक्सर दिखाई देती थी और कुछ ही पल में वह ओझल हो जाती थी.

Intro:गोरखपुर। नवरात्र का समय हो या फिर कोई भी सामान्य दिन, गोरखपुर के 'बुढ़िया माई मंदिर' पर भक्तों की भारी भीड़ श्रद्धा और मनोकामना पूर्ण होने की कामना के साथ उमड़ती रहती है। मौजूदा दौर में तो यहां देवी मां की आराधना होती ही है, लेकिन यह मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया था जिसे लोग देवी रूप मानते हैं। यही वजह है कि मंदिर के अंदर मां भगवती की प्रतिमा के बगल में एक बूढ़ी दादी जैसी प्रतिमा भी स्थापित है जिसका श्रद्धालु और भक्तजन आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। राम नवमी का अवसर हो या शारदीय नवरात्र गोरखपुर के हर मंदिरों में भक्तों की भीड़ बढ़ती है लेकिन, कुसम्ही जंगल में स्थापित मां के इस मंदिर की आस्था और कहानी लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच लाती है।


Body:इस मंदिर के पीछे की जो कहानी है बेहद रोमांचित करने वाली है। कुसम्ही जंगल के बीच से एक नाला गुजरता था,जिसपर बने कच्चे पुल पर एक बुढ़िया बैठी हुई थी।इस पुल से एक बारात गुजर रही थी। बुढ़िया मां ने बारात के नाच वालों से नाच दिखाने का आग्रह किया तो सभी ने उसका मजाक बना दिया और हंसने लगे, लेकिन जोकर ने बुढ़िया के सम्मान में कुछ नाच दिखाया था। जैसे ही बारात पुल को पार करने लगी पुल टूट गया और तमाम लोग काल के गाल में समा गए सिर्फ जोकर ही बचा। ऐसा माना जाता है कि तभी से उस बुजुर्ग महिला कोई एक देवी रूप मानते हुए यहां मंदिर की स्थापना शुरू कर पूजा अर्चना होने लगी। धीरे धीरे यह स्थान लोगों की अपार श्रद्धा का केंद्र हो गया। आज भी वह नाला है जिसमें चलने वाली नाव पर सवार होकर लोग माँ के दर्शन को जाते हैं तो सड़क मार्ग भी है। सीएम योगी का यह प्रिय स्थान है और वह अपनी सरकार में मंदिर को अच्छी सड़क से जोड़ने का ऐलान कर चुके हैं।

बाइट--नंदू, पुजारी
बाइट--संतोष दूबे, पुजारी


Conclusion:यह मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर है। जो लोगों के श्रद्धा का आपार केंद्र है। कहानी एक और भी है। मंदिर के स्थान पर थारूओं का निवास माना जाता था। वह पिंडी रूप में वन देवी की पूजा किया करते थे। जिसके आसपास एक बूढ़ी महिला अक्सर दिखाई देती थी और कुछ ही पल में वह ओझल हो जाती थी। ऐसा माना जाता है की बुढ़िया मां जिस पर खुश हुई उसका कल्याण हुआ और जिससे नाराज हुई उसका सब कुछ नाश हो जाता था। भक्तों की भारी भीड़ श्रद्धा के यहां बढ़ती है। नारियल फूटता है, धूप, अगरबत्ती भावना के जलाए जाते हैं। तो रक्षा सूत्र बांधकर लोग यहां अपनी मनोकामना की पूरी होने का समय तय करते हैं। जिन्हें प्राप्त हुआ वह भी और जिन्हें नहीं प्राप्त हुआ वह भी मां के दर्शन के बगैर खुद को रोक नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले ही आते हैं।

बाइट--अशोक कुमार, श्रद्धालु
बाइट-प्रियंका देवी, बिहार से आई भक्त

क्लोजिंग पीटीसी..
मुकेश पाण्डेय
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