ETV Bharat / state

गोरखपुर: सावन के अंतिम सोमवार पर प्राचीन "जोड़े शिवलिंग मंदिर" में उमड़ी भक्तों की भीड़

author img

By

Published : Aug 12, 2019, 7:06 PM IST

यूपी के गोरखपुर में श्रावण मास के आखिरी सोमवार को शिवालयों भारी भीड़ देखने को मिली. बरगदही स्थित शिव मंदिर पर कांवड़ियों का जमावड़ा लगा रहा. यह मंदिर पुरातन के राजा मलखा सिंह की राजधानी सिरसागढ़ के किले पर स्थित है.

प्राचीन जोड़े शिवलिंग मंदिर

गोरखपुर : सावन के आखिरी सोमवार पर जनपद के बरगदही स्थित शिवालय पर अपने ईष्ट के दर्शन के लिए भारी संख्या में लोग उपस्थित हुए. सावन का आखिरी सोमवार और बकरीद एक ही दिन होने के कारण भारी संख्या में पुलिस प्रशासन के लोग सुरक्षा व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रखने के लिए मुस्तैद रहे. भटहट ब्लॉक के बरगदही गांव को मुगल शासन काल में मलखा की राजधानी सिरसागढ़ के नाम से जाना और पहचाना जाता था. सिरसागढ़ के किले में स्थित शिव मंदिर को "जोड़े शिवलिंग मंदिर" के नाम से भी पुकारा जाता है. वहां पर महज एक लोटा जल चढ़ाने से सब की मन्नतें पूरी हो जाती हैं. यह मंदिर प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर से महज बीस किलोमीटर की दूरी पर है.

सावन के अंतिम सोमवार पर उमड़ी भक्तों की भीड़.

इतिहास से है मन्दिर का सम्बन्ध -

बताया जाता है कि जिस गांव में शिव मंदिर स्थित है वह मुगल शासन काल में एक लघु प्रांत सिरसागढ़ के नाम से मशहूर था. जिसके शासक मलखा सिंह थे. मलखा सिंह की राजधानी सिरसागढ़ को आज सिरसिया गदाई उर्फ बरगदही के नाम से पुकारा जाता है. लोग बताते हैं समय गुजरने के बाद अंग्रेजी शासनकाल में मलखा सिंह का किला खंडहर के रूप में बदल गया. अंग्रेजी हुकूमत ने मुद्रा अष्ट धातु की लालच में आकर वहां पर खुदाई शुरू करा दिया. इस दौरान वहां पर जोड़ा पत्थर निकला. जिसके तह तक जाने के लिए मजदूर दिन रात खुदाई करते रहे लेकिन पत्थर की जड़ तक पहुंचने में असमर्थ रहे. धीरे-धीरे यह बात आस पड़ोस के गांव में आग की तरह फैल गई.

इसे भी पढ़ें: सावन के अंतिम सोमवार पर काशी में उमड़ा भक्तों का सैलाब

स्थानीय लोग धीरे धीरे एकत्रित होने लगे और उसे शिवलिंग मानकर उसपर जल चढ़ाने लगे तभी से वहां पर पूजा पाठ शुरू हो गया. समय गुजरने के साथ धीरे-धीरे भव्य मंदिर का निर्माण हुआ. आज सैकड़ों वर्ष पहले निर्मित शिव मंदिर "जोड़े शिव लिंग" के नाम से प्रसिद्ध है. शिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. सावन माह में प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक करने को कांवड़ियों का तांता लगा रहता है. मान्यता यह है कि शिवलिंग पर महज एक लोटा जल चढ़ाने से सब की मुराद और मन्नतें पूरी हो जाती हैं. सावन में रुद्राभिषेक कराने के लिए यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

गोरखपुर : सावन के आखिरी सोमवार पर जनपद के बरगदही स्थित शिवालय पर अपने ईष्ट के दर्शन के लिए भारी संख्या में लोग उपस्थित हुए. सावन का आखिरी सोमवार और बकरीद एक ही दिन होने के कारण भारी संख्या में पुलिस प्रशासन के लोग सुरक्षा व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रखने के लिए मुस्तैद रहे. भटहट ब्लॉक के बरगदही गांव को मुगल शासन काल में मलखा की राजधानी सिरसागढ़ के नाम से जाना और पहचाना जाता था. सिरसागढ़ के किले में स्थित शिव मंदिर को "जोड़े शिवलिंग मंदिर" के नाम से भी पुकारा जाता है. वहां पर महज एक लोटा जल चढ़ाने से सब की मन्नतें पूरी हो जाती हैं. यह मंदिर प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर से महज बीस किलोमीटर की दूरी पर है.

सावन के अंतिम सोमवार पर उमड़ी भक्तों की भीड़.

इतिहास से है मन्दिर का सम्बन्ध -

बताया जाता है कि जिस गांव में शिव मंदिर स्थित है वह मुगल शासन काल में एक लघु प्रांत सिरसागढ़ के नाम से मशहूर था. जिसके शासक मलखा सिंह थे. मलखा सिंह की राजधानी सिरसागढ़ को आज सिरसिया गदाई उर्फ बरगदही के नाम से पुकारा जाता है. लोग बताते हैं समय गुजरने के बाद अंग्रेजी शासनकाल में मलखा सिंह का किला खंडहर के रूप में बदल गया. अंग्रेजी हुकूमत ने मुद्रा अष्ट धातु की लालच में आकर वहां पर खुदाई शुरू करा दिया. इस दौरान वहां पर जोड़ा पत्थर निकला. जिसके तह तक जाने के लिए मजदूर दिन रात खुदाई करते रहे लेकिन पत्थर की जड़ तक पहुंचने में असमर्थ रहे. धीरे-धीरे यह बात आस पड़ोस के गांव में आग की तरह फैल गई.

इसे भी पढ़ें: सावन के अंतिम सोमवार पर काशी में उमड़ा भक्तों का सैलाब

स्थानीय लोग धीरे धीरे एकत्रित होने लगे और उसे शिवलिंग मानकर उसपर जल चढ़ाने लगे तभी से वहां पर पूजा पाठ शुरू हो गया. समय गुजरने के साथ धीरे-धीरे भव्य मंदिर का निर्माण हुआ. आज सैकड़ों वर्ष पहले निर्मित शिव मंदिर "जोड़े शिव लिंग" के नाम से प्रसिद्ध है. शिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. सावन माह में प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक करने को कांवड़ियों का तांता लगा रहता है. मान्यता यह है कि शिवलिंग पर महज एक लोटा जल चढ़ाने से सब की मुराद और मन्नतें पूरी हो जाती हैं. सावन में रुद्राभिषेक कराने के लिए यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

Intro:उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में श्रवण मास के आखिरी सोमवार को शिवालयों भारी भीड़ देखने को मिला. बरगदही स्थित शिव का मंदिर सदियों पुराना है. वहां पर भी कावडिय़ों का जमावड़ा लगा रहा. इस मंदिर को पुरातन के राजा मलखा सिंह की राजधानी सिरसागढ़ के किले पर स्थित है वहां का शिव मंदिर जोड़े शिवलिंग के नाम से प्रसिद्ध है क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है.

पिपराइच गोरखपुरः श्रवण मास का आखिरी सोमवार तथा ईद दुल अजहा का त्योहार एक ही दिन पड़ने से पुलिस प्रशासन ने भी कमर कस रखा था. सुरक्षा व्यस्था चुस्त दुरुस्त रखने के लिए पुलिस प्रशासन शिवालयों तथा ईदगाहों का समय समय पर भ्रमण करते रहे. एसपीआरए अरविन्द कुमार पाण्डेय व क्षेत्राधिकारी सुमित शुक्ला ने अपने मातहतों के साथ पिपराइच में ईद गाह तथा मोटेश्वर मंदिर का निरीक्षण कर सुरक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत जांची.Body:
&जोड़ शिलिंग के नाम से मसहूर है शिव मंदिर&

सीएम योगी के गोरखनाथ मंदिर से महज 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित भटहट ब्लाक के बरगदही गांव को मुगल शासन काल में मलखा की राजधानी सिरसागढ़ के नाम से जाना और पहचाना जाता था. सिरसागढ़ के किले में स्थित शिव मंदिर को जोड़े शिवलिंग के नाम से भी पुकारा जाता है. वहां पर महज एक लोटा जल चढ़ाने से सब की मुराद और मन्नतें पूरी हो जाती हैं. क्षेत्र के लोगों की ऐसी मान्यता है कि चमत्कारी शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से शिव भक्तों का मुराद पूरी हो जाती है.

बताया जाता है कि जिस गांव में शिव मंदिर स्थित है वह मुगल शासन काल में एक लघु प्रांत सिरसागढ़ के नाम से मशहूर था जिसके शासक मलखा सिंह थे मलखा सिंह की राजधानी सिरसागढ़ को आज सिरसिया गदाई उर्फ बरगदही के नाम से पुकारा जाता है लोग बताते हैं कि बहुत साल पहले मुगल शासन काल में मलखा सिंह की राजधानी वही स्थापित थी. समय गुजरने के बाद अंग्रेजी शासनकाल में मलखा सिंह का किला खंडहर के रूप में बदल गया. अंग्रेजी हुकूमत उस खंडहर टिले को थारूहटो का आवासीय क्षेत्र समझ बैठे. मुद्रा अष्ट धातु की लालच में आकर के वहां पर खुदाई शुरू करा दिया. इस दौरान वहां पर जोड़ा पत्थर निकला जिसके तहत तक जाने के लिए मजदूर दिन रात खुदाई करते रहे लेकिन पत्थर के जड़ तक पहुंचने में असमर्थ रहे धीरे-धीरे यह बात आस पड़ोस के गांव में आग की तरह फैल गई स्थानीय लोग धीरे धीरे एकत्रित होने लगे और उसे शिवलिंग पर जल चढ़ाने लगे स्थानीय लोगों के एकत्रित होने पर मजदूर वहां से छोड़ कर चले गए तभी से वहां पर पूजा पाठ शुरू हो गया. समय गुजरने के साथ धीरे धीरे भव्य मंदिर का निर्माण हुआ आज सैकड़ों वर्ष पहले निर्मित शिव मंदिर कोसों दूर तक जोड़े शिव लिंग के नाम से प्रसिद्ध है शिवरात्रि के दिन विशालकाय मेले का आयोजन किया जाता है सावन माह में प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक करने कावड़ियों का तांता लगा रहता है.
बाइट-बैजनाथ त्रिपाठी (स्थानीय पूजारी)
Conclusion:मैं 5 साल से यहां पर आती हूं यहां पर ज्यादा विश्वास और आस्था रखती हूं. जो भी छार आती है यहां आने पर पूर्ण हो जाती है. मेरे बच्चे की बहुत ज्यादा तबीयत खराब थी. हम लोग तब रुद्राभिषेक करवाए तो मेरा बच्चा ठीक हो गया तब से हर साल यहां पर आती हूं और रुद्र अभिषेक करवाती हूं.

बाइट- प्रतिमा सिंह (महिलाश्रद्धालु)

मैं 5 वर्षों से परेशानी था. मेरे बच्चे का तबीयत हमेशा खराब हो जाता था. दवा इलाज कराने टी सरिया हॉस्पिटल पर जाया करता था एक दिन पूजा पाठ करने के लिए इस मंदिर पर आया. यहां की गोसाई बाबा ने कहा इतना रुपया कथा वार्ता बाचते कर कमाते हो कम से कम एक रुद्राभिषेक करा दो. उसके बाद मैं रुद्राभिषेक करवाया. उसके पश्चात ही अपने बच्चे को डाक्टरी ले जाना बंद कर दिया. तब से बच्चों की तबियत खराब नही होती है. देवों के देव महादेव भोलेनाथ के आशीर्वाद से मेरा कल्याण हो गया.
शिवमंगल तिवारी(श्रद्धालु)


रफिउल्लाह अन्सारी-8318103822
Etv भारत पिपराइच गोरखपुर
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.