अयोध्या: सरयू तट के किनारे मां जगत जननी की प्रतिमाओं का आस्था और श्रद्धा के साथ विसर्जन किया गया. इस दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किसी भी प्रकार के शोभा यात्रा और डीजे म्यूजिक सिस्टम पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहा. सोमवार को 200 से अधिक मां दुर्गा की प्रतिमाओं का अयोध्या के संत तुलसीदास घाट पर विसर्जन हुआ. जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पंडाल न लगाने के निर्देश दिया था. इसके अतिरिक्त मां दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना को लेकर भी निर्देश जारी किए गए थे कि लोग अपने घरों में ही 2 से 3 फीट की मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन अर्चन करें. इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए थे कि विसर्जन के दौरान किसी भी प्रकार के जुलूस या डीजे म्यूजिक सिस्टम को शोभा यात्रा में शामिल करने की अनुमति नहीं होगी. सिर्फ 5 लोग एक प्रतिमा के साथ जाकर सरयू नदी में विसर्जन करेंगे. प्रशासन के इस निर्देश का स्थानीय पुलिस ने पालन कराया. मां भक्तों ने नम आंखों से मां भगवती को अगले वर्ष आने के वादे के साथ विदाई दी. कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराने के लिए स्थानीय पुलिसकर्मी सरयू घाट के किनारे मौजूद रहे. वहीं मां की प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए जल पुलिस के जवान अपने उपकरणों के साथ नदी में गश्त करते रहे. मां की प्रतिमाओं के विसर्जन का यह कार्यक्रम देर रात तक जारी रहेगा.
गोरखपुर में मां दुर्गा को दी गई विदाई
वैश्विक महामारी में शारदीय नवरात्र में भक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ है. बंगाली समाज की महिलाओं ने विसर्जन के पूर्व मां दुर्गा को विदा करने के पूर्व 'सिंदूर खेला' का आयोजन किया. एनई रेलवे दुर्गा पूजा कमेटी बालक इंटर कॉलेज में बंगाली समाज की महिलाओं ने 'सिंदूर खेला' कार्यक्रम का आयोजन किया. इस अवसर पर महिलाओं ने पान के पत्ते से मां दुर्गा को सिंदूर लगाने के बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खुशी का इजहार किया. विसर्जन के दिन बंगाली महिलाओं द्वारा मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए सुख-समृद्धि और शांति के लिए सिंदूर खेला कार्यक्रम का आयोजन किया जाता हैं.
सिंदूर खेला कार्यक्रम में आई सपना गुप्तो ने बताया कि सिंदूर खेला बहुत पुरानी प्रथा है. उन्होंने बताया कि आयोजन बहुत ही अच्छा है. वे यहां पर बरसों से आ रही हैं. मां को और एक-दूसरे को सिंदूर लगाते हैं. हर्षोल्लास के साथ उल्लूक आवाज निकालकर वे हर त्योहार मनाते हैं. उल्लूक ध्वनि का बंगाली समाज में बहुत महत्व है.