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गोरखपुर में जिनोम सीक्वेंसिंग जांच की सुविधा होने के बावजूद KGMC लखनऊ भेजे जा रहे नमूने - Genome Sequencing Probe Facility

गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान में जिनोम सीक्वेंसिंग की जांच की सुविधा उपलब्ध है. इसके बावजूद नमूने दूसरी जगह भेजे जा रहे हैं. इसकी वजह से रिपोर्ट आने में काफी समय लग जा रहा है.

गोरखपुर में जिनोम सीक्वेंसिंग
गोरखपुर में जिनोम सीक्वेंसिंग
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Published : May 20, 2023, 6:48 PM IST

गोरखपुर : बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान यानी आरएमआरसी में जिनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है. इसके बावजूद नमूने लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज भेजे जा रहे हैं. इसके कारण जांच रिपोर्ट आने में 4 से 6 महीने लग जा रहे हैं. गोरखपुर में अगर इसकी जांच हो तो रिपोर्ट 72 से 96 घंटे में मिल जाती. जांच की सभी सुविधाएं होने के बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. प्रभारी की ओर से स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन से स्थानीय स्तर पर जांच करने की अनुमति भी मांगी जा चुकी है.

बता दें कि पूर्वांचल इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी का बड़ा केंद्र रहा है. इसकी वजह को तलाशने के लिए यहां एम्स की स्थापना और क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान यानी (आरएमआरसी) की मांग उठती रही है. संयोग ऐसा बना कि कोरोना महामारी में जिनोम सीक्वेंसिंग की आवश्यकता को देखते हुए गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज परिसर में स्थापित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान में इसका लैब स्थापित कर दिया गया. इसके बाद करोड़ों की मशीनें भी इंस्टॉल कर दी गईं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों इसका लोकार्पण भी हुआ, लेकिन आज तक एक भी नमूने जांच के लिए यहां नहीं लाए गए. जबकि कोरोना की तीसरी लहर में मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने दिसंबर 2021और जनवरी 2022 में 65 नमूने गोरखपुर क्षेत्र से केजीएमसी भेजे थे. तीन माह बाद वहां से सूचना आई कि नमूने खराब हो चुके हैं, दूसरे नमूने भेजें. उस समय नए नमूने मिल नहीं सकते थे क्योंकि संक्रमण नाम मात्र का था, लिहाजा आज तक पता नहीं चल पाया कि तीसरी लहर में गोरखपुर में कोरोना वायरस का कौन सा वेरिएंट ज्यादा प्रभावी था.

KGMC से रिपोर्ट आने में भी 4 से 6 महीने लग जाते हैं. आरएमआरसी के मीडिया प्रभारी डॉ. अशोक पांडेय ने ईटीवी भारत को बताया कि लैब में जिनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा शुरू होने के बाद, जिला प्रशासन और स्वास्थ विभाग को इसकी जानकारी दी गई थी. उनसे नमूनों की मांग भी की गई थी लेकिन, अभी तक एक भी नमूना यहां नहीं आया. आरटीपीसीआर तक की जांच के लिए भी उन्हें नमूने नहीं भेजे गए. हालांकि नमूनों को लखनऊ भेजे जाने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जिनोम सीक्वेंसिंग की जांच बहुत महत्वपूर्ण होती है. एक नमूने की जांच पर करीब ₹25 हजार रुपये तक का खर्च आता है, इसलिए जिनोम सीक्वेंसिंग की जो राष्ट्रीय मानक तय करने वाली संस्था है वह शायद इस नए केंद्र के नमूनों की जांच रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होती. लिहाजा अभी तक केजीएमसी में नमूनों को भेजे जाने की प्रक्रिया जारी है.

उन्होंने कहा कि अब कोरोना पूरी तरह से समाप्त मान लिया गया है. डब्ल्यूएचओ ने भी 5 मई को इसे महामारी ग्रुप से हटा दिया है. इसलिए अब जिनोम सीक्वेंसिंग की आवश्यकता भी इंसेफेलाइटिस, मलेरिया, डेंगू या अन्य ऐसे गंभीर रोगों में हो सकती है जिसमें वायरस से संक्रमित होने की संभावना होती है. वहीं कोरोना जांच के नोडल अधिकारी डॉक्टर एके सिंह ने कहा कि आरटीपीसीआर जांच के लिए नमूने वहीं भेजे जा सकते हैं, जहां के लिए शासन का निर्देश मिला हो.

यह भी पढ़ें : गोरखपुर विश्वविद्यालय को जी-20 में बड़ी जिम्मेदारी, 24 मई को ये सेमिनार किया जाएगा आयोजित

गोरखपुर : बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान यानी आरएमआरसी में जिनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है. इसके बावजूद नमूने लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज भेजे जा रहे हैं. इसके कारण जांच रिपोर्ट आने में 4 से 6 महीने लग जा रहे हैं. गोरखपुर में अगर इसकी जांच हो तो रिपोर्ट 72 से 96 घंटे में मिल जाती. जांच की सभी सुविधाएं होने के बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. प्रभारी की ओर से स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन से स्थानीय स्तर पर जांच करने की अनुमति भी मांगी जा चुकी है.

बता दें कि पूर्वांचल इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी का बड़ा केंद्र रहा है. इसकी वजह को तलाशने के लिए यहां एम्स की स्थापना और क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान यानी (आरएमआरसी) की मांग उठती रही है. संयोग ऐसा बना कि कोरोना महामारी में जिनोम सीक्वेंसिंग की आवश्यकता को देखते हुए गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज परिसर में स्थापित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान में इसका लैब स्थापित कर दिया गया. इसके बाद करोड़ों की मशीनें भी इंस्टॉल कर दी गईं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों इसका लोकार्पण भी हुआ, लेकिन आज तक एक भी नमूने जांच के लिए यहां नहीं लाए गए. जबकि कोरोना की तीसरी लहर में मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने दिसंबर 2021और जनवरी 2022 में 65 नमूने गोरखपुर क्षेत्र से केजीएमसी भेजे थे. तीन माह बाद वहां से सूचना आई कि नमूने खराब हो चुके हैं, दूसरे नमूने भेजें. उस समय नए नमूने मिल नहीं सकते थे क्योंकि संक्रमण नाम मात्र का था, लिहाजा आज तक पता नहीं चल पाया कि तीसरी लहर में गोरखपुर में कोरोना वायरस का कौन सा वेरिएंट ज्यादा प्रभावी था.

KGMC से रिपोर्ट आने में भी 4 से 6 महीने लग जाते हैं. आरएमआरसी के मीडिया प्रभारी डॉ. अशोक पांडेय ने ईटीवी भारत को बताया कि लैब में जिनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा शुरू होने के बाद, जिला प्रशासन और स्वास्थ विभाग को इसकी जानकारी दी गई थी. उनसे नमूनों की मांग भी की गई थी लेकिन, अभी तक एक भी नमूना यहां नहीं आया. आरटीपीसीआर तक की जांच के लिए भी उन्हें नमूने नहीं भेजे गए. हालांकि नमूनों को लखनऊ भेजे जाने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जिनोम सीक्वेंसिंग की जांच बहुत महत्वपूर्ण होती है. एक नमूने की जांच पर करीब ₹25 हजार रुपये तक का खर्च आता है, इसलिए जिनोम सीक्वेंसिंग की जो राष्ट्रीय मानक तय करने वाली संस्था है वह शायद इस नए केंद्र के नमूनों की जांच रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होती. लिहाजा अभी तक केजीएमसी में नमूनों को भेजे जाने की प्रक्रिया जारी है.

उन्होंने कहा कि अब कोरोना पूरी तरह से समाप्त मान लिया गया है. डब्ल्यूएचओ ने भी 5 मई को इसे महामारी ग्रुप से हटा दिया है. इसलिए अब जिनोम सीक्वेंसिंग की आवश्यकता भी इंसेफेलाइटिस, मलेरिया, डेंगू या अन्य ऐसे गंभीर रोगों में हो सकती है जिसमें वायरस से संक्रमित होने की संभावना होती है. वहीं कोरोना जांच के नोडल अधिकारी डॉक्टर एके सिंह ने कहा कि आरटीपीसीआर जांच के लिए नमूने वहीं भेजे जा सकते हैं, जहां के लिए शासन का निर्देश मिला हो.

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