गोरखपुरः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के सभी नगर निगमों को आत्मनिर्भर बनने की सलाह दे रहे हैं. अगर एक वजह उनके अपने शहर गोरखपुर नगर निगम की स्थिति देखते ही स्पष्ट हो जाती है. निगम क्षेत्र में बेहतर सुविधा देने का दावा करने वाला गोरखपुर नगर निगम अपने आय को बढ़ाने में फिसड्डी साबित हो रही है. उसकी आमदनी मात्र दस पैसे हैं. लेकिन खर्चा रुपए में. हर साल निगम वेतन के मद में 108 करोड़ रुपए खर्च कर देता है, जबकि नगर निगम क्षेत्र विकास एक ईंट रखने के लिए उसे राज्य और केंद्र सरकार से बजट की आस लगानी पड़ती है.
दरअसल, शहर में चिन्हित ढाई लाख से अधिक मकानों में से मात्र डेढ़ लाख घरों से ही टैक्स वसूल जा पाता है. बरसों पुरानी दुकानों का किराया भी अपग्रेड नहीं हुआ है. वह अपने संसाधनों से कुछ नहीं कर सकता. यही वजह है कि नगर आयुक्त नए सिरे से टैक्स और लाइसेंस शुल्क की बारीकियों का सर्वे कराना शुरू किया. जिसमें सारा झोल सामने आ गया. आय का स्रोत होते हुए भी निगम आमदनी करने में फेल है.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए नगर आयुक्त गौरव सिंह सोगरवाल ने बताया कि नगर क्षेत्र में दुकानों की संख्या कितनी है. यह निगम को पता ही नहीं. ऐसे में लाइसेंस शुल्क का निर्धारण नहीं किया जा रहा है. वहीं शहर में बड़ी-बड़ी होर्डिग्स विज्ञापन की तो नजर आती हैं. लेकिन, निगम यह भी पता करने में सफल नहीं हो पाया है कि कितनी होर्डिग निगम की हैं और कितनी प्राइवेट. इससे भी निगम का आय स्रोत प्रभावित हो रहा है.
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा आंकड़ा तो मकानों से मिलने वाले टैक्स को लेकर है. जिसका सही आंकड़ा ही निगम के पास नहीं है. यही वजह है कि जब सर्वे कराना शुरू हुआ है तो यह पाया गया है कि करीब एक लाख से अधिक मकानों से निगम टैक्स ही नहीं ले पा रहा. अब नए सिरे से सर्वे के आधार पर लाइसेंस शुल्क और टैक्स का निर्धारण होगा. जिससे निगम की आय में बढ़ोतरी होगी और नागरिक सुविधाओं को विकसित किया जा सकेगा.
नगर आयुक्त ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में नगर निगम को जल, गृह और सीवर टैक्स से कुल 30 करोड़ 38 लाख मिले थे. जबकि, कुल खर्च 322 करोड 47 लाख हुआ था. यानी कि आय से दस गुना ज्यादा. नगर निगम क्षेत्र की आबादी की बात करें तो इसकी संख्या 14 लाख से ज्यादा है. जो वर्ष 2021 में करीब 7 लाख 70 हजार थी. यही वजह है कि मकानों की संख्या भी बढ़कर ढाई लाख हो गई है.
जीआईएस सर्वे में मकानों का यह आंकड़ा सामने आया है. 43 वार्डों में सेटेलाइट सर्वे का कार्य पूरा हो चुका है. इसमें नगर निगम की कई लावारिस जमीनों का भी पता चला है. जहां पर वह शॉपिंग कॉन्प्लेक्स, व्यवसायिक गतिविधियों को चलाकर आय बढ़ाया जा सकता है. नगर निगम को अपने क्षेत्र में विकास के लिए सरकार त्वरित आर्थिक विकास योजना, राज्य स्मार्ट सिटी योजना और राज्य वित्त आयोग के अलावा मुख्यमंत्री नगर सृजन योजना से धनराशि उपलब्ध कराती है. जिससे इसका विकास होता दिखाई देता है.
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