गोरखपुर: गुरु गोविन्द सिंह की 354वीं जयंती को प्रकाश उत्सव के रूप में धूमधाम के साथ मनाया गया. इस अवसर पर ब्लड डोनेशन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया. सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह की जयंती को गोरखपुर महानगर के मोहद्दीपुर स्थित प्राचीन गुरुद्वारे में मनाया गया. गुरुद्वारा गुरु नानक सत्संग सभा मोहद्दीपुर के तत्वावधान में कीर्तन करने त्रिलोक सिंह जग्गाधारी, हरनाम सिंह रसिया और गुरु मत विचारक सतनाम सिंह उत्तराखंड से आए हुए थे.
बच्चों को पुरस्कार वितरण
प्रकाश उत्सव की समाप्ति पर श्री अखंड पाठ साहिब के उपरांत गुरुवाणी, शब्द कीर्तन, गुरु मत विचार, दीवान की समाप्ति के उपरांत गुरु के अटूट लंगर का आयोजन किया गया. रात्रि तक कीर्तन दरबार योग गुरु मत विचार बच्चों को पुरस्कार का वितरण किया गया. वहीं ब्लड डोनेट कर लोगों को जीवन देने का संकल्प लिया गया.
गुरुद्वारा कमिटी के सचिव मनमोहन सिंह ने बताया कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार गुरु गोविंद सिंह का जन्म पौष महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था. उन्होंने खालसा वाणी वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह दी थी. 22 दिसंबर 1666 को पटना में सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के घर उन्होंने जन्म लिया था. घर पर माता-पिता ने बड़े प्यार से बच्चे का नाम गोविन्द राय रखा. गोविंद का बचपन शरारतों से भरा था, लेकिन जल्द ही बालक की रुचि खिलौने से हटकर तलवार, बरछी, कटार पर आ गई थी.
गुरु गोविंद सिंह ने बताए पांच ककार
जीवन जीने के लिए सिखों को गुरु गोविंद सिंह ने पांच सिद्धांत बताए, जिसको पांच ककार कहा जाता है. इन्हें खालसा सिख धारण करते हैं. कंघा, केश, कड़ा, कृपाण और कच्छा इन पांचों के बिना सिखों के वेश को पूरा नहीं माना जाता है. एक सभा में गुरु गोविंद सिंह ने रौबदार आवाज में कहा था, मुझे पांच सिर चाहिए. सभा में सन्नाटा छा गया. तभी एक-एक करके पांच लोग उठे और उन्होंने कहा, हमारा सिर प्रस्तुत है. गुरु गोविंद सिंह पांचों को एक-एक कर अंदर ले गए. जैसे ही उन्हें तंबू के अंदर ले जाते कुछ देर बाद वहां से रक्त की धारा बह निकली और भीड़ की बैचेनी भी बढ़ती गई. पांचों के साथ ऐसा ही हुआ. गुरु गोविंद सिंह अकेले तंबू में गए और पांचों के साथ लौटे तो भीड़ भी आश्चर्यचकित हो गई. पांचों युवक गुरु गोविंद सिंह के साथ नए कपड़े पहने, पगड़ी धारण किए हुए थे. गुरु गोविंद सिंह उनकी परीक्षा लिए और कहा कि अब तुम पंच प्यारे हो. उन्होंने ऐलान किया कि अब से हर सिख युवक कड़ा, कृपाण, केश, कच्छा और कंघा धारण करेगा. यहीं से खालसा पंथ की स्थापना हुई थी.
मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई
गुरु गोविंद सिंह ने सैन्य दल का गठन किया. हथियारों का निर्माण करवाया और युवकों को युद्धकला का भी प्रशिक्षण दिया. उनको लगता था कि केवल संगठन से काम नहीं बनेगा. सैन्य संगठन भी बनाना होगा ताकि समुदाय और धर्म की रक्षा की जा सके. जीवन के आखिरी दिनों में गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई छेड़ दी थी. वो छुपकर रहते और अचानक मुगलों पर हमला बोल देते थे. कभी मुगलों के आगे उन्होंने अपना सिर नहीं झुकाया, न अपने धर्म से कोई समझौता किया.