गोरखपुर : अरुणेंद्र पांडेय एक सोशल एक्टिविस्ट हैं. पिछले 26 वर्षों से गोवा में रहकर वो अपने इस अभियान को लगातार बढ़ा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च को एक बार फिर वो राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित होंगे. इसके पहले भी उन्हें वर्ष 2014 में महिला सशक्तिकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर 'स्त्री शक्ति पुरस्कार' से नवाजा था. अब तक वो हजारों महिलाओं को वेश्यावृत्ति के दलदल से बाहर निकाल चुके हैं. अरुणेंद्र पांडेय ने ईटीवी भारत को भेजे अपने एक वीडियो में इस बात का साफ उल्लेख किया है कि उन्हें इस पुरस्कार के लिए 'इंटरनेशनल कंसोर्टियम फॉर सोशल डेवलपमेंट' नाम की संस्था के द्वारा चुना गया है. लेकिन यह पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों उन्हें प्राप्त होगा.
महिलाओं के उत्थान में लगा दिया जीवन
अरुणेंद्र पांडेय ने बताया कि जो लोग सोशल वर्क की डिग्री लेकर इस क्षेत्र में पिछले कई सालों से कार्य कर रहे हैं, ऐसे लोगों के बीच से उनका चयन किया गया है. वह वर्ष 1992 से 94 के बीच टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज मुंबई से क्रिमिनलॉजी में स्पेशलाइजेशन करने के बाद, सेक्स ट्रैफिकिंग पर नेशनल लेवल पर कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि पुरस्कार देने के लिए चयन करने वाली संस्था 'इंटरनेशनल कंसोर्टियम फॉर सोशल डेवलपमेंट' को यह लगा कि उनके कार्य की वजह से हजारों महिलाएं वेश्यावृत्ति से बाहर आई हैं. यही नहीं उनके जीवन में सुधार लाने के लिए गोवा में उन्होंने एक लॉन्ड्री की फैक्ट्री भी स्थापित किया है, जहां पर ऐसी महिलाएं कार्य करती हैं और आर्थिक रूप से समृद्ध भी होती हैं.
'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर एक पुरूष को सम्मान मिलना गर्व की बात'
अरुणेंद्र पांडेय ने कहा कि उनके इन प्रयासों की वजह से कई तरह के कानून में भी बदलाव किए गए हैं. इसीलिए 2021 के प्रेसिडेंट अवॉर्ड के लिए इस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने उनके नाम पर मुहर लगाई है. आप को बता दें कि अरुणेंद्र पांडेय के माता-पिता गोरखपुर में रहते हैं. वह मूलतः कुशीनगर जनपद के रहने वाले हैं. उनके पिता भारतीय वायु सेना के अधिकारी रहे हैं. इनकी मां गृहणी और छोटा भाई वकालत के पेशे में हैं. अच्छी शिक्षा-दीक्षा के बाद सोशल वर्क के क्षेत्र में मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद अरुणेंद्र पांडेय ने समाज सेवा को ही अपना करियर बनाकर आगे बढ़ते चले गए.
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अरुणेंद्र ने खुद का नहीं बसाया घर
मौजूदा समय में वह करीब 48 वर्ष के होने साथ पूरी सक्रियता के साथ महिलाओं के उत्थान के लिए जुटे हुए हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन ही इस कार्य के लिए समर्पित कर दिया है. अविवाहित जीवन जीते हुए भविष्य की अन्य योजनाओं को सफल बनाने में वह जुटे हुए हैं. उनका कहना है कि गोवा जैसे क्षेत्र में वेश्यावृत्ति में लगी हुई महिलाओं को बाहर निकालना बहुत ही कठिन कार्य होता है. ऐसी महिलाओं के बीच जाकर काउंसलिंग करना, उन्हें इसके बदले रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना चुनौती भरा कार्य है. लेकिन कहा गया है कि अगर ठान लिया जाए तो कोई भी मंजिल पाना मुश्किल नहीं है. आज उनके मंजिल को मुकाम मिला है, तो पुरस्कार भी मिल रहे हैं. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के लिए काम करते हुए एक पुरुष के रूप सम्मानित होना उन्हें भी अच्छा लग रहा है.