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Geeta Press Gorakhpur: गांधी जी के विचारों की वाहक है 'कल्याण' पत्रिका, 96 साल बाद भी नहीं छपता विज्ञापन

गीता प्रेस गोरखपुर (Geeta Press Gorakhpur) की प्रमुख पत्रिका कल्याण की 16 करोड़ से अधिक प्रतियां बेंची जा चुकी हैं. महात्मा गांधी की अपील पर हनुमान प्रसाद पोद्दार ने कल्‍याण में विज्ञापन नहीं छापी थी.

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Published : Feb 28, 2023, 3:25 PM IST

जानकारी देते गीता प्रेस के उत्पादन प्रबंधक डॉ लालमणि तिवारी

गोरखपुरः धार्मिक पुस्तकों की छपाई के सबसे बड़े केंद्र गीता प्रेस की प्रमुख पत्रिका "कल्याण" का लगभग 96 वर्षों से निरंतर प्रकाशन होता चला आ रहा है. बदलते दौर में भी इसे अपने नीतियों, सिद्धांतों के साथ ही प्रकाशित की जा रही है. महात्मा गांधी ने इस पत्रिका के पहले अंक में अपना लेख लिखा था. साथ ही प्रबंधन से इसमें विज्ञापन और अन्य वस्तुओं की समीक्षा लिखने के बजाय, सिर्फ धर्म और राष्ट्र को समर्पित लेखों के ही लिखे जाने का अनुरोध किया था. जो आज भी बरकरार है. यही नहीं गांधी जी ने जो लेख इसके लिए लिखा था, वह तीनों पेज आज भी गीता प्रेस प्रबंधन के पास मौजूद है.

गौरतलब है कि अब तक कल्याण की करीब 16 करोड़ 50 लाख प्रतियां देश और दुनिया में बिक चुकी हैं. इसका पहला प्रकाशन वर्ष 1926 में किया गया था. 48 पेज की यह पत्रिका मानव कल्याण के उद्देश्य से ही छापी जाती है. गीता प्रेस के उत्‍पादन प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी कहते हैं कि 'कल्‍याण' का प्रकाशन 96 वर्षों से हो रहा है. इस पत्रिका के पहले अंक में महात्‍मा गांधी ने 'स्‍वाभाविक किसे कहते हैं' इसे परिभाषित किया है. इसमें उन्‍होंने स्‍वाभाविक की परिभाषा को बहुत ही स्‍वाभाविक ढंग से प्रस्‍तुत किया है, जो आज भी सार्थक है.

विज्ञापन नहीं किया जाता प्रकाशितः डॉ. लालमणि तिवारी कहते हैं कि हर माह छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्‍याण' इस बार जनवरी का विशेषांक 650 पेज का छाप रही है. जो हर साल 500 पेज का छपता है. डाक खर्च के साथ इसकी कीमत 250 रुपये मात्र है. आमतौर पर ये 48 पेज की छपती है. खास बात यह है कि महात्‍मा गांधी के ही आह्वान पर गीता प्रेस से प्रक‍ाशित होने वाली 'कल्‍याण' पत्रिका और अन्‍य पत्रिकाओं में भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया जाता है.

स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित थे हनुमान प्रसाद पोद्दारः डॉ .लालमणि बताते हैं कि शुरुआत में कल्‍याण पत्रिका का प्रकाशन एक साल तक मुंबई (बंबई) से हुआ. इसके बाद इसका प्रकाशन गोरखपुर से शुरू हुआ. उस समय भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार कल्‍याण के संपादक थे. वह स्‍वतंत्रता आंदोलन से काफी प्रभावित थे. वह स्‍वतंत्रता आंदोलन में रुचि रखते थे. गांधी जी से उनके के काफी अच्‍छे ताल्‍लुकात थे. कल्‍याण में काफी क्रांतिकारी विचारधारा के लेख प्रकाशित होते थे. गांधी जी ने जब कल्‍याण का पहला अंक देखा था, तो उन्‍होंने कहा था कि इसमें किसी भी तरह का विज्ञापन मत निकालिएगा. इसके साथ ही किसी भी पुस्‍तक की समीक्षा मत छापिएगा. उनकी इस बात को ध्‍यान में रखते हुए उनकी बात आज भी मानी जाती है. कल्‍याण में आज भी विज्ञापन और किसी भी पुस्‍तक की समीक्षा नहीं छापी जाती है.

स्‍वाभाविक किसे कहते हैंः गीता प्रेस के लाइब्रेरी इंचार्ज हरिराम त्रिपाठी बताते हैं कि 'कल्‍याण' पत्रिका 1983 संवत् से गीता प्रेस से प्रकाशित हो रही है. मानव मात्र के कल्‍याण के लिए धार्मिक-आध्‍यात्मिक लेख छापे जाते हैं. इसमें कल्‍याण के पहले अंक 'स्‍वाभाविक किसे कहते हैं' लेख छपा था. मनुष्‍य के दैनिक दिनचर्या को इंगित करता लेख काफी प्रभावित करता है. उन्‍होंने बताया कि महात्‍मा गांधी जी के आह्वान पर भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने विज्ञापन नहीं छापने का संकल्‍प किया था. 96 साल से कल्‍याण पत्रिका प्रक‍ाशित हो रही है, जिसका 96वां प्रकाशन बहुत जल्द एक विशेषांक के रूप में होगा.

ये भी पढ़ेंः CM Yogi Janata Darabaar: गरीबों को इलाज के लिए अपना वेतन भी दे देते हैं सीएम, बच्चों को नहीं भूलते चॉकलेट देना

जानकारी देते गीता प्रेस के उत्पादन प्रबंधक डॉ लालमणि तिवारी

गोरखपुरः धार्मिक पुस्तकों की छपाई के सबसे बड़े केंद्र गीता प्रेस की प्रमुख पत्रिका "कल्याण" का लगभग 96 वर्षों से निरंतर प्रकाशन होता चला आ रहा है. बदलते दौर में भी इसे अपने नीतियों, सिद्धांतों के साथ ही प्रकाशित की जा रही है. महात्मा गांधी ने इस पत्रिका के पहले अंक में अपना लेख लिखा था. साथ ही प्रबंधन से इसमें विज्ञापन और अन्य वस्तुओं की समीक्षा लिखने के बजाय, सिर्फ धर्म और राष्ट्र को समर्पित लेखों के ही लिखे जाने का अनुरोध किया था. जो आज भी बरकरार है. यही नहीं गांधी जी ने जो लेख इसके लिए लिखा था, वह तीनों पेज आज भी गीता प्रेस प्रबंधन के पास मौजूद है.

गौरतलब है कि अब तक कल्याण की करीब 16 करोड़ 50 लाख प्रतियां देश और दुनिया में बिक चुकी हैं. इसका पहला प्रकाशन वर्ष 1926 में किया गया था. 48 पेज की यह पत्रिका मानव कल्याण के उद्देश्य से ही छापी जाती है. गीता प्रेस के उत्‍पादन प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी कहते हैं कि 'कल्‍याण' का प्रकाशन 96 वर्षों से हो रहा है. इस पत्रिका के पहले अंक में महात्‍मा गांधी ने 'स्‍वाभाविक किसे कहते हैं' इसे परिभाषित किया है. इसमें उन्‍होंने स्‍वाभाविक की परिभाषा को बहुत ही स्‍वाभाविक ढंग से प्रस्‍तुत किया है, जो आज भी सार्थक है.

विज्ञापन नहीं किया जाता प्रकाशितः डॉ. लालमणि तिवारी कहते हैं कि हर माह छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्‍याण' इस बार जनवरी का विशेषांक 650 पेज का छाप रही है. जो हर साल 500 पेज का छपता है. डाक खर्च के साथ इसकी कीमत 250 रुपये मात्र है. आमतौर पर ये 48 पेज की छपती है. खास बात यह है कि महात्‍मा गांधी के ही आह्वान पर गीता प्रेस से प्रक‍ाशित होने वाली 'कल्‍याण' पत्रिका और अन्‍य पत्रिकाओं में भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया जाता है.

स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित थे हनुमान प्रसाद पोद्दारः डॉ .लालमणि बताते हैं कि शुरुआत में कल्‍याण पत्रिका का प्रकाशन एक साल तक मुंबई (बंबई) से हुआ. इसके बाद इसका प्रकाशन गोरखपुर से शुरू हुआ. उस समय भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार कल्‍याण के संपादक थे. वह स्‍वतंत्रता आंदोलन से काफी प्रभावित थे. वह स्‍वतंत्रता आंदोलन में रुचि रखते थे. गांधी जी से उनके के काफी अच्‍छे ताल्‍लुकात थे. कल्‍याण में काफी क्रांतिकारी विचारधारा के लेख प्रकाशित होते थे. गांधी जी ने जब कल्‍याण का पहला अंक देखा था, तो उन्‍होंने कहा था कि इसमें किसी भी तरह का विज्ञापन मत निकालिएगा. इसके साथ ही किसी भी पुस्‍तक की समीक्षा मत छापिएगा. उनकी इस बात को ध्‍यान में रखते हुए उनकी बात आज भी मानी जाती है. कल्‍याण में आज भी विज्ञापन और किसी भी पुस्‍तक की समीक्षा नहीं छापी जाती है.

स्‍वाभाविक किसे कहते हैंः गीता प्रेस के लाइब्रेरी इंचार्ज हरिराम त्रिपाठी बताते हैं कि 'कल्‍याण' पत्रिका 1983 संवत् से गीता प्रेस से प्रकाशित हो रही है. मानव मात्र के कल्‍याण के लिए धार्मिक-आध्‍यात्मिक लेख छापे जाते हैं. इसमें कल्‍याण के पहले अंक 'स्‍वाभाविक किसे कहते हैं' लेख छपा था. मनुष्‍य के दैनिक दिनचर्या को इंगित करता लेख काफी प्रभावित करता है. उन्‍होंने बताया कि महात्‍मा गांधी जी के आह्वान पर भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने विज्ञापन नहीं छापने का संकल्‍प किया था. 96 साल से कल्‍याण पत्रिका प्रक‍ाशित हो रही है, जिसका 96वां प्रकाशन बहुत जल्द एक विशेषांक के रूप में होगा.

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