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गोण्डा: रेशम की डोर संभालेगी किसानों की समृद्धि की बागडोर

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में किसानों की माली हालत सुधारने में रेशम उद्योग बड़ी भूमिका निभा रहा है. हजारों की संख्या में किसान रेशम उद्योग की तकनीक अपनाकर जीवन यापन कर रहे हैं.

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जानकारी देते उपनिदेशक रेशम उद्योग.
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Published : Feb 1, 2020, 11:48 AM IST

गोण्डा: किसानों की माली हालत सुधारने में कृषि आधारित रेशम उद्योग वरदान साबित हो रहा है. मंडल के हजारों किसान रेशम उद्योग की तकनीक अपनाकर अपना बेहतर जीवन यापन कर रहे हैं. इस उद्योग की प्रथम दो शाखाएं कृषि आधारित हैं. रेशम विभाग द्वारा किसानों को निशुल्क में शहतूत के पौधे, तकनीकी प्रशिक्षण, कटिंग की आपूर्ति के साथ बीजों पर 50 फीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है.

रेशम की डोर संभालेगी किसानों की समृद्धि का छोर.

रेशम उद्योग के लिए किसानों को शहतूत के पौधे का रोपण करना होता है. किसान अपने खेत के मेड़ के चारों तरफ शहतूत का पौध लगाकर कीट पालन का काम कर सकते हैं. इसके लिए विभाग द्वारा निशुल्क में पौधा और कीटनाशक जैसी सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. बता दें कि रेशम के कीट बहुत ही सूक्ष्म होते हैं. इसलिए कीट पालन की प्रारंभिक अवस्था में काफी सावधानी बरतनी होती है.

22 से 28 दिनों की जीवित अवधि में एक कीट 25 से 30 ग्राम शहतूत की पत्ती क्रीम अवस्था में ग्रहण करता है. 100 बड़ी डीएफएल में औसतन कोया का उत्पादन 35 से 40 किलोग्राम होता है. 10 से 12 किलोग्राम कोया से लगभग एक किलोग्राम धागा प्राप्त होता है. इसका बाजार मूल्य तकरीबन चार हजार होता है.

इसे भी पढ़ें- गोण्डा: पहले दिन 840 शिक्षक-शिक्षिकाओं ने कराई काउंसलिंग

रेशम वास्तव में एक कुटीर उद्योग है. जिले में परसपुर, मनकापुर और इटियाथोक ब्लॉक के किसान काफी संख्या में रेशम कीट का पालन कर रहे हैं. इसके लिए बहुत कम लागत और सीमित स्थान की जरूरत होती है. रेशम के कीट को भोजन के रूम में शहतूत की पत्तियां दी जाती हैं. रेशम कीट से कोकून पैदा होता है और इसे रेशम उत्पादन कहते हैं.
-सत्येंद्र कुमार सिंह, उपनिदेशक, रेशम उद्योग

गोण्डा: किसानों की माली हालत सुधारने में कृषि आधारित रेशम उद्योग वरदान साबित हो रहा है. मंडल के हजारों किसान रेशम उद्योग की तकनीक अपनाकर अपना बेहतर जीवन यापन कर रहे हैं. इस उद्योग की प्रथम दो शाखाएं कृषि आधारित हैं. रेशम विभाग द्वारा किसानों को निशुल्क में शहतूत के पौधे, तकनीकी प्रशिक्षण, कटिंग की आपूर्ति के साथ बीजों पर 50 फीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है.

रेशम की डोर संभालेगी किसानों की समृद्धि का छोर.

रेशम उद्योग के लिए किसानों को शहतूत के पौधे का रोपण करना होता है. किसान अपने खेत के मेड़ के चारों तरफ शहतूत का पौध लगाकर कीट पालन का काम कर सकते हैं. इसके लिए विभाग द्वारा निशुल्क में पौधा और कीटनाशक जैसी सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. बता दें कि रेशम के कीट बहुत ही सूक्ष्म होते हैं. इसलिए कीट पालन की प्रारंभिक अवस्था में काफी सावधानी बरतनी होती है.

22 से 28 दिनों की जीवित अवधि में एक कीट 25 से 30 ग्राम शहतूत की पत्ती क्रीम अवस्था में ग्रहण करता है. 100 बड़ी डीएफएल में औसतन कोया का उत्पादन 35 से 40 किलोग्राम होता है. 10 से 12 किलोग्राम कोया से लगभग एक किलोग्राम धागा प्राप्त होता है. इसका बाजार मूल्य तकरीबन चार हजार होता है.

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रेशम वास्तव में एक कुटीर उद्योग है. जिले में परसपुर, मनकापुर और इटियाथोक ब्लॉक के किसान काफी संख्या में रेशम कीट का पालन कर रहे हैं. इसके लिए बहुत कम लागत और सीमित स्थान की जरूरत होती है. रेशम के कीट को भोजन के रूम में शहतूत की पत्तियां दी जाती हैं. रेशम कीट से कोकून पैदा होता है और इसे रेशम उत्पादन कहते हैं.
-सत्येंद्र कुमार सिंह, उपनिदेशक, रेशम उद्योग

Intro:किसानों की माली हालत सुधारने में कृषि आधारित रेशम उद्योग वरदान साबित हो रहा है। मंडल के हजारों किसान रेशम उद्योग की तकनीक अपनाकर अपना बेहतर जीवन यापन कर रहे हैं। इस उद्योग के प्रथम दो शाखाएं कृषि आधारित है। जबकि धागाकरण कुटीर उद्योग में आता है। इसमें रेशम विभाग द्वारा किसानों को निशुल्क में शहतूत के पौधे ,तकनीकी प्रशिक्षण ,कटिंग की आपूर्ति कोया क्रय विक्रय की तथा 50% सब्सिडी पर बीज उपलब्ध कराना जैसी सुविधाएं दी जाती हैं l

Body:बता दें कि इस उद्योग की प्रथम दो शाखाएं कृषि संबंधित था जबकि धागा करण कुटीर उद्योग के अंतर्गत आता है किसानों को इसके लिए शहतूत के पौधे का रोपण करना होता है किसान अपने खेत के मेड़ के चारों तरफ शहतूत का पौध लगाकर कीट पालन का काम कर सकते हैं l इसके लिए विभाग द्वारा निशुल्क में पौध व कीट जैसी सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। रेशम के कीट अति सूक्ष्म होते हैं इसलिए कीट पालन की प्रारंभिक अवस्था में काफी सावधानी बरतनी होती है l लगभग 22 से 28 दिनों की जीवित अवधि में एक कीट 25 से 30 ग्राम शहतूत की पत्ती क्रीम अवस्था में ग्रहण करता है। 100 बडी डी एफ एल में औसतन कोया उत्पादन 35 से 40 किलोग्राम होता है l 10 से 12 किलोग्राम कोया से लगभग 1 किलोग्राम धागा प्राप्त होता है जिसका बाजार मूल्य 4 हजार रुपये है । Conclusion:इस संबंध में उपनिदेशक रेशम सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि यह वास्तव में एक कुटीर उद्योग है जिले में परसपुर, मनकापुर ,इटियाथोक ब्लॉक के किसान काफी संख्या में रेशम कीट पालन कर रहे हैं l इसके लिए बहुत कम लागत व सीमित स्थान की जरूरत होती है l रेशम के कीट को भोजन के रूम में शहतूत की पत्तियां दी जाती हैं l रेशम कीट से कोकून का उत्पादन होता है l और कोकून उत्पादन ही रेशम उत्पादन है l रेशम के कीट को विभाग के सीआरसी सेंटर द्वारा मुफ्त में दिया जाता है l इसके अतिरिक्त जो बीज आता है l वह सब्सिडी के रूप में बहुत न्यूनतम राशि लेकर दी जाती है l

बाईट- सत्येंद्र सिंह(उपनिदेशक, रेशम)
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