गोण्डा: किसानों की माली हालत सुधारने में कृषि आधारित रेशम उद्योग वरदान साबित हो रहा है. मंडल के हजारों किसान रेशम उद्योग की तकनीक अपनाकर अपना बेहतर जीवन यापन कर रहे हैं. इस उद्योग की प्रथम दो शाखाएं कृषि आधारित हैं. रेशम विभाग द्वारा किसानों को निशुल्क में शहतूत के पौधे, तकनीकी प्रशिक्षण, कटिंग की आपूर्ति के साथ बीजों पर 50 फीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है.
रेशम उद्योग के लिए किसानों को शहतूत के पौधे का रोपण करना होता है. किसान अपने खेत के मेड़ के चारों तरफ शहतूत का पौध लगाकर कीट पालन का काम कर सकते हैं. इसके लिए विभाग द्वारा निशुल्क में पौधा और कीटनाशक जैसी सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. बता दें कि रेशम के कीट बहुत ही सूक्ष्म होते हैं. इसलिए कीट पालन की प्रारंभिक अवस्था में काफी सावधानी बरतनी होती है.
22 से 28 दिनों की जीवित अवधि में एक कीट 25 से 30 ग्राम शहतूत की पत्ती क्रीम अवस्था में ग्रहण करता है. 100 बड़ी डीएफएल में औसतन कोया का उत्पादन 35 से 40 किलोग्राम होता है. 10 से 12 किलोग्राम कोया से लगभग एक किलोग्राम धागा प्राप्त होता है. इसका बाजार मूल्य तकरीबन चार हजार होता है.
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रेशम वास्तव में एक कुटीर उद्योग है. जिले में परसपुर, मनकापुर और इटियाथोक ब्लॉक के किसान काफी संख्या में रेशम कीट का पालन कर रहे हैं. इसके लिए बहुत कम लागत और सीमित स्थान की जरूरत होती है. रेशम के कीट को भोजन के रूम में शहतूत की पत्तियां दी जाती हैं. रेशम कीट से कोकून पैदा होता है और इसे रेशम उत्पादन कहते हैं.
-सत्येंद्र कुमार सिंह, उपनिदेशक, रेशम उद्योग