गाजीपुर: भारत में कुश्ती पुरातन पारंपरिक खेलों में से एक है. इस खेल में कई धुरंधर पहलवान हुए. इसमें रुस्तम-ए-हिंद और हिन्द केसरी मंगला राय का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है. गाजीपुर के जोगा मुसाहिब के रहने वाले मंगला पहलवान के नाम अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर दिए गए कुल पांच खिताब हैं. जो आज भी उस महाबली की याद दिलाते हैं. मंगला राय का जन्म गाजीपुर के जोगा मुसाहिब गांव में सन् 1916 में हुआ था. जब रोमानिया के पहलवान कांसटेनटाइन ने भारत के कई महाबली पहलवानों को हराया. इसके बाद उसने भारतीय पहलवानों को ललकारते हुए कहा था, क्या भारत के अब कोई महाबली नहीं बचा जो उससे मुकाबला कर सके. तब मंगला राय ने वारणसी से कलकत्ता जाकर उसे हराया था. गांव के लोग पहलवान मंगला राय को हनुमान जी का अंश मानते हैं.
मंगला पहलवान के पोते सत्येंद्र कुमार राय ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि उस समय दूसरे पहलवान अखाड़े में समय बिताने के बाद भोजन-नाश्ता करके दिन भर आराम करते थे. वहीं मंगला राय को पढ़ने-लिखने से काफी लगाव था. वह प्रतिदिन 20 से 25 पहलवानों से तीन-तीन बार कुश्ती लड़ते थे. इन पहलवानों में दरभंगा के दुखराम, आजमगढ़ के सुखदेव, मथुरा के मोहन चौबे भी शामिल थे. ये सभी पहलवान अपने घर-परिवार से दूर कुश्ती सीखने के लिए मंगला राय के साथ ही रहते थे. इन सभी का खर्च भी वह वहन करते थे.
एक बार जब वह रंगून से भारत लौट कर आए. यहां उत्तर भारत के मशहूर पहलवान मुस्तफा हुसैन को अखाड़े में ललकारा. दोनों के बीच इलाहाबाद में कुश्ती हुई. मुस्तफा पहलवान नौजवान मंगला राय को कमतर आंक रहे थे. तब उन्होंने खतरनाक दांव लगाना शुरू किया, दर्शक भी अचंभित हो गए. तभी मंगला राय ने अपना प्रिय दांव ‘टांग’ और ‘बहराली’ लगाकर महाबली मुस्तफा को चारों खाने चित कर दिया.
मंगला राय शाकाहारी थे. वह रोजाना चार हजार बैठकें और ढाई हजार दंड लगाते थे. इसके बाद वो 25 धुरंधरों से प्रतिदिन तीन-तीन बार कुश्ती लड़ते थे. वह 6 फीट कद और 131 किलो वजनी भीमकाय शरीर के मालिक थे. पुजारी भगवान दास ने बताया कि मंगला राय भगवान हनुमान का अंश थे. जब वह अखाड़े की मिट्टी माथे पर लगाते थे तो उनका शरीर अपने आप बढ़ जाता था. वह रोज आधा किलो देशी घी, आठ लीटर दूध और एक किलो बादाम का सेवन करते थे.
साहित्यकार श्री राम राय ने बताया कि काशी में रहकर गुरु शिवमूरत पंडा के सानिध्य में मंगला राय कुश्ती के महाबली बने. तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने उनकी मल्ल कला से प्रसन्न होकर इन्हें चांदी की गदा भेंट किया था. इसके बाद उन्होंने मुंबई में शेरा खान नाम पहचाने जाने वाले पहलवान गोरा सिंह को 20 मिनट में चित कर दिया. विदेशों में अपनी विजय पताका फहराने वाले यूरोप के प्रसिद्ध पहलवान जार्ज कांस्टेनटाइन को भी नंदी बागान हावड़ा में वर्ष 1957 में पटकनी दी. अपने जीवन काल में उन्होंने कुशल मल्ल कला से पांच महत्वपूर्ण उपाधियां अपने नाम कीं. इसमें सन 1933 में वर्मा का शेर, भारत भूषण, भारत भीम, सन 1952 में रुस्तम-ए-हिंद और सन् 1954 में हिंद केसरी की उपाधि मिली. 24 जून 1976 में बीमारी के कारण 60 वर्ष की अवस्था में अखाड़े में अपना लोहा मनवाने वाला मां भारती का लाल पंचतत्व में विलीन हो गया.