गाजीपुर: जिले समेत पूर्वांचल के ज्यादातर इलाके बाढ़ प्रभावित हैं. यहां के किसानों की मेहनत की कमाई बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो जाती है. ऐसे में कृषि विभाग के द्वारा धान की एक नस्ल (किस्म, प्रजाति) विकसित की गई है, जो गंगा का पानी बढ़ने पर तकरीबन 2 हफ्ते तक धान की पौध को पानी में सुरक्षित रखेगी. इतना ही नहीं, पानी उतरने पर धान की पौध में कल्ले भी फूटेंगे और अच्छी पैदावार होगी. किसानों के लिए धान की स्वर्णा सब-1नस्ल किसी वरदान से कम नहीं है.
बाढ़ में अब नहीं बर्बाद होगी फसल
दरअसल, गंगा के तटवर्ती इलाकों में प्रत्येक वर्ष धान की फसल पानी में डूबकर बर्बाद हो जाती है. ऐसे में धान की स्वर्णा सब-1 नस्ल को खास तौर पर बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के लिए ईजाद किया गया है. यह धान 10-15 दिन तक तक पानी में डूबे रहने के बावजूद किसानों को 35 से 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने में सक्षम है
बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बोई जाती है स्वर्णा सब-1
जिला कृषि अधिकारी मृत्युंजय सिंह ने बताया कि धान की यह प्रजाति बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बोई जाती है. यह स्वर्णा धान की प्रजाति है और सब-1 एक जीन है, जो इसमें पाया जाता है. उन्होंने बताया कि जीन की मदद से फसल 10-15 दिन तक पानी में डूबे रहने के बाद भी सूखती नहीं है. अगर पानी का जलस्तर तेजी से बढ़ता है तो फसल पानी में डूब जाती है, लेकिन 10 से 15 दिन यह न तो पीली पड़ती है और न ही सूखती है.
135-140 दिन में तैयार हो जाती है फसल
जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि पानी जैसे ही खेत में कम होता है, फसल दोबारा ग्रोथ कर अच्छी पैदावार देने में सक्षम है. इसमें कल्ले भी फूटते हैं और अच्छी पैदावार भी होती है. यह फसल 135 से 140 दिन में तैयार हो जाती है. सरकारी बीज केंद्रों पर यह उपलब्ध है, जहां से किसान इसे प्राप्त कर सकते हैं.
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समय का ध्यान रखना बेहद जरूरी
आपको बता दें कि अच्छी पैदावार के लिए इसमें समय का ख्याल रखना बहुत ही जरूरी होता है. जानकारी के अभाव में किसान नर्सरी डालने और रोपाई करने में देर कर देते हैं, जिससे पैदावार प्रभावित होती है. धान की नर्सरी डालने का सही समय 15-25 जून है. नर्सरी डालने के बाद 20 दिन पूरा होते ही इसकी रोपाई की जाती है. अगर किसान रोपाई कराने में देर करते हैं तो उसकी पैदावार प्रभावित होगी.