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लाॅकडाउन: मिट्टी में मिल रही कुम्हारों की मेहनत, भूखमरी के हो रहे शिकार - ghazipur latest news

लाॅकडाउन के कारण सभी दुकानें बंद हैं. वैवाहिक आदि कार्यक्रमों की तारीखों को लोगों ने महीनों आगे बढ़ा दिया. ऐसे में कुम्हारों की कमाई ठप है. आज वह भूखमरी की कगार पर आ गए हैं.

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लाॅकडाउन में नहीं हो रही मिट्टे के घड़े की बिक्री
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Published : May 12, 2020, 3:51 PM IST

गाजीपुर: गर्मी के इन दिनों में मिट्टी के घड़े की खूब बिक्री होती है. इसके लिए कुम्हार पहले से ही पर्याप्त मात्रा में मिट्टी के घड़े बनाने का काम शुरू कर देते हैं. वहीं वैवाहिक आदि कार्यक्रमों में भी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता है. कोरोना वायरस के कारण हुए लाॅकडाउन की वजह से स्थानीय बाजार बंद हैं और लोगों ने वैवाहिक कार्यक्रमों की तारीख को आगे बढ़ा दिया है. ऐसे में मिट्टी के बर्तनों की बिक्री भी ठप है, और कुम्हार भूखमरी की कगार पर आ गए हैं.

लाॅकडाउन में नहीं हो रही मिट्टे के घड़े की बिक्री

पहले की कमाई बर्तन बनाने में लगाई, अब खाने काे नहीं पैसे

कुम्हारों का कहना है कि, जो कुछ पैसै थे. उसे मिट्टी के बर्तन बनाने में लगा दिया. लाॅकडाउन के कारण सब बंद है और मिट्टी के बर्तनों की बिक्री नहीं हो पा रही है और कमाई ठप है. इस कारण खाने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है और भूखमरी के हालात पैदा हो गए हैं.

गर्मी के महीने में जमकर होती थी घड़े की बिक्री, अब बंद

गर्मी के महीने में मिट्टी के घड़े की जमकर बिक्री होती है लेकिन मौजूदा समय में लाॅकडाउन के कारण बंद है. जिले के मोहम्दाबाद मार्ग पर भावरकोल के पास सड़क किनारे दुकान लगाए कुम्हारों ने बताया कि कोई ग्राहक नहीं आ रहा है और मिट्टी के घड़े आदि की बिक्री नहीं हो पा रही है. कुम्हारों ने बताया कि रोजाना दुकान लगाते हैं लेकिन ग्राहक नहीं आ रहे हैं.

गर्मी के दिनों में घड़े से होती थी रोजाना 500 रुपये तक कमाई

कुम्हारों ने बताया कि गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े से रोजाना 500 से 1000 रुपये तक आमदनी होता थी. यह पहली बार हो रहा है कि गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े नहीं बिक रहे हैं. कुम्हार अनीता देवी ने बताया कि मिट्टी के बर्तन बिकने लगे, तो सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी. आमदनी बंद है और खाने को घर में कुछ है नहीं. इस कारण भूखमरी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

सरकार नहीं ले रही सुध

कुम्हारों ने बताया कि सरकार ने माटी कला और इलेक्ट्रिक चाक जैसी तमाम योजनाओं से कुम्हारों को आगे बढ़ाने की कोशिश की लेकिन लाॅकडाउन में कोई सुध नहीं ले रहा है. कामकाज बंद है और परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. खाने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. वहीं कुम्हारों का कहना है कि स्थानीय प्रशासन से भी कोई मदद नहीं मिल रही है.

गाजीपुर: गर्मी के इन दिनों में मिट्टी के घड़े की खूब बिक्री होती है. इसके लिए कुम्हार पहले से ही पर्याप्त मात्रा में मिट्टी के घड़े बनाने का काम शुरू कर देते हैं. वहीं वैवाहिक आदि कार्यक्रमों में भी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता है. कोरोना वायरस के कारण हुए लाॅकडाउन की वजह से स्थानीय बाजार बंद हैं और लोगों ने वैवाहिक कार्यक्रमों की तारीख को आगे बढ़ा दिया है. ऐसे में मिट्टी के बर्तनों की बिक्री भी ठप है, और कुम्हार भूखमरी की कगार पर आ गए हैं.

लाॅकडाउन में नहीं हो रही मिट्टे के घड़े की बिक्री

पहले की कमाई बर्तन बनाने में लगाई, अब खाने काे नहीं पैसे

कुम्हारों का कहना है कि, जो कुछ पैसै थे. उसे मिट्टी के बर्तन बनाने में लगा दिया. लाॅकडाउन के कारण सब बंद है और मिट्टी के बर्तनों की बिक्री नहीं हो पा रही है और कमाई ठप है. इस कारण खाने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है और भूखमरी के हालात पैदा हो गए हैं.

गर्मी के महीने में जमकर होती थी घड़े की बिक्री, अब बंद

गर्मी के महीने में मिट्टी के घड़े की जमकर बिक्री होती है लेकिन मौजूदा समय में लाॅकडाउन के कारण बंद है. जिले के मोहम्दाबाद मार्ग पर भावरकोल के पास सड़क किनारे दुकान लगाए कुम्हारों ने बताया कि कोई ग्राहक नहीं आ रहा है और मिट्टी के घड़े आदि की बिक्री नहीं हो पा रही है. कुम्हारों ने बताया कि रोजाना दुकान लगाते हैं लेकिन ग्राहक नहीं आ रहे हैं.

गर्मी के दिनों में घड़े से होती थी रोजाना 500 रुपये तक कमाई

कुम्हारों ने बताया कि गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े से रोजाना 500 से 1000 रुपये तक आमदनी होता थी. यह पहली बार हो रहा है कि गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े नहीं बिक रहे हैं. कुम्हार अनीता देवी ने बताया कि मिट्टी के बर्तन बिकने लगे, तो सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी. आमदनी बंद है और खाने को घर में कुछ है नहीं. इस कारण भूखमरी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

सरकार नहीं ले रही सुध

कुम्हारों ने बताया कि सरकार ने माटी कला और इलेक्ट्रिक चाक जैसी तमाम योजनाओं से कुम्हारों को आगे बढ़ाने की कोशिश की लेकिन लाॅकडाउन में कोई सुध नहीं ले रहा है. कामकाज बंद है और परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. खाने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. वहीं कुम्हारों का कहना है कि स्थानीय प्रशासन से भी कोई मदद नहीं मिल रही है.

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