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अब्दुल कलाम की एक बात से प्रभावित हुए किसान रंग बहादुर, आज कमा रहे लाखों

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Published : Nov 14, 2020, 11:41 AM IST

गाजीपुर के प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह जैविक खेती को अपनाकर औषधीय खेती कर किसानों के लिए प्रेरणाश्रोत बने हैं. बकौल रंग बहादुर ने औषधीय खेती प्रोसेसिंग का कार्य साल 2004 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से मिलने के बाद शुरू किया. इस औषधीय खेती से करीब 12 लाख रुपये की सालाना आमदनी भी करते हैं.

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प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह ने औषधीय खेती कर बने मिसाल.

गाजीपुर : गाजीपुर के प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह एक मिसाल बन चुके हैं. 70 साल की उम्र में भी रंग बहादुर नौजवान किसानों को मात दे रहे हैं. उम्र भले ही ढल रही है, लेकिन इनके इरादे हिमालय की तरह बुलंद हैं. अपने जज्बे और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की चंद पंक्तियों से प्रभावित होकर वह आज 20 बीघे में औषधीय खेती कर अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं. एक कार्यक्रम में रंग बहादुर सिंह की मुलाकात पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा था - " एग्रीकल्चर प्रोसेस एंड मार्केटिंग, देन यू आर फर्मर अदर वाइज यू आर लेबर" यानी जब तक किसान अपने उत्पाद का प्रोसेस और खुद बिक्री नहीं करता, तब तक वह किसान नहीं है वह तो केवल मजदूर है.

संवाददाता से प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह की बातचीत.
किसान ने खुद शुरू किया प्रोसेसिंग का काम

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर रंग बहादुर सिंह ने प्रगतिशील किसान बनने की तरफ कदम बढ़ाया. उन्होंने कानपुर से पाउडर बनाने वाली मशीन खरीदी और प्रोसेस करना शुरू किया. किसान अपने गांव अमौरा में जैविक खाद का प्रयोग कर खेती कर रहे हैं. वह सर्पगंधा, चित्रक, पिपली, सतावर, सफेद मूसली, एलोवेरा, कालमेघ, वच और अन्य औषधियों की खेती कर रहे हैं.

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प्रगतिशील किसान रंग बहादुर ने शुरू किया प्रोसेसिंग का कार्य.
पारंपरिक खेती से हटकर खेती करने से होगी आय दोगुनी

रंग बहादुर की मानें तो जब तक किसान पारंपरिक खेती से हटकर कुछ अलग खेती नहीं करेंगे. तब तक किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकती. वह गोबर गैस संयत्र का इस्तेमाल भी करते हैं.

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प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह ने औषधीय खेती कर बने मिसाल.
रंग बहादुर ने औषधीय खेती को बनाया मॉडल

किसान रंग बहादुर औषधीय खेती का मॉडल के बारे में अन्य किसानों को जागरूक कर रहे हैं. क्योंकि वह खुद आयुर्वेदिक खेती कर साल 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात के बाद प्रोसेसिंग के प्रति प्रोत्साहित हुए. उनकी खेती के फार्म हाउस मॉडल को देखने उत्तर प्रदेश समेत बिहार से लोग पहुंचते हैं. सेवराई के अमौरा में औषधीय खेती का यह एग्रीकल्चर फार्म 10 एकड़ में फैला है. इस औषधीय खेती से रंग बहादुर तकरीबन 12 लाख रुपये की सालाना आमदनी भी करते हैं. वह प्रमुख रूप से खेतों में एलोवेरा, सतावर, सर्पगंधा, सफेद मूसली, बच, चितरख, अश्वगंधा आदि आयुर्वेदिक औषधि की खेती करते हैं.

रंग बहादुर सिंह 20 वर्ष से कर रहे हैं औषधीय खेती

रंगबहादुर सिंह औषधीय खेती कर साल में लाखों की कमाई भी कर रहे हैं. तकरीबन 20 वर्ष से औषधीय खेती कर रहे हैं. उन्होंने औषधीय खेती करने का प्रशिक्षण बस्तर जिला (छत्तीसगढ़) के कीड़ा गांव निवासी राजाराम त्रिपाठी से लिया है. वहां उन्होंने दो माह तक प्रशिक्षण भी लिया है.

जैविक हर्बल फार्म का भी गांव में करते हैं संचालन

उनका जैविक हर्बल फार्म अमौरा के नाम से फर्म संचालित है. गांव में ही प्लांट स्थापित कर एलोवेरा का जूस, क्रीम और अन्य औषधीय उत्पाद बनाए जाते हैं, जिसे वाराणसी, लखनऊ, पटना, दिल्ली आदि ग्रामीण क्षेत्रों में सप्लाई किया जाता है. अपनी लगन और मेहनत से पारंपरिक खेती से अलग हटकर किसानों के लिए किसान रंगबहादुर सिंह प्रगति का एक अलग रंग बिखेर रहे हैं.

गाजीपुर : गाजीपुर के प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह एक मिसाल बन चुके हैं. 70 साल की उम्र में भी रंग बहादुर नौजवान किसानों को मात दे रहे हैं. उम्र भले ही ढल रही है, लेकिन इनके इरादे हिमालय की तरह बुलंद हैं. अपने जज्बे और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की चंद पंक्तियों से प्रभावित होकर वह आज 20 बीघे में औषधीय खेती कर अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं. एक कार्यक्रम में रंग बहादुर सिंह की मुलाकात पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा था - " एग्रीकल्चर प्रोसेस एंड मार्केटिंग, देन यू आर फर्मर अदर वाइज यू आर लेबर" यानी जब तक किसान अपने उत्पाद का प्रोसेस और खुद बिक्री नहीं करता, तब तक वह किसान नहीं है वह तो केवल मजदूर है.

संवाददाता से प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह की बातचीत.
किसान ने खुद शुरू किया प्रोसेसिंग का काम

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर रंग बहादुर सिंह ने प्रगतिशील किसान बनने की तरफ कदम बढ़ाया. उन्होंने कानपुर से पाउडर बनाने वाली मशीन खरीदी और प्रोसेस करना शुरू किया. किसान अपने गांव अमौरा में जैविक खाद का प्रयोग कर खेती कर रहे हैं. वह सर्पगंधा, चित्रक, पिपली, सतावर, सफेद मूसली, एलोवेरा, कालमेघ, वच और अन्य औषधियों की खेती कर रहे हैं.

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प्रगतिशील किसान रंग बहादुर ने शुरू किया प्रोसेसिंग का कार्य.
पारंपरिक खेती से हटकर खेती करने से होगी आय दोगुनी

रंग बहादुर की मानें तो जब तक किसान पारंपरिक खेती से हटकर कुछ अलग खेती नहीं करेंगे. तब तक किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकती. वह गोबर गैस संयत्र का इस्तेमाल भी करते हैं.

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प्रगतिशील किसान रंग बहादुर सिंह ने औषधीय खेती कर बने मिसाल.
रंग बहादुर ने औषधीय खेती को बनाया मॉडल

किसान रंग बहादुर औषधीय खेती का मॉडल के बारे में अन्य किसानों को जागरूक कर रहे हैं. क्योंकि वह खुद आयुर्वेदिक खेती कर साल 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात के बाद प्रोसेसिंग के प्रति प्रोत्साहित हुए. उनकी खेती के फार्म हाउस मॉडल को देखने उत्तर प्रदेश समेत बिहार से लोग पहुंचते हैं. सेवराई के अमौरा में औषधीय खेती का यह एग्रीकल्चर फार्म 10 एकड़ में फैला है. इस औषधीय खेती से रंग बहादुर तकरीबन 12 लाख रुपये की सालाना आमदनी भी करते हैं. वह प्रमुख रूप से खेतों में एलोवेरा, सतावर, सर्पगंधा, सफेद मूसली, बच, चितरख, अश्वगंधा आदि आयुर्वेदिक औषधि की खेती करते हैं.

रंग बहादुर सिंह 20 वर्ष से कर रहे हैं औषधीय खेती

रंगबहादुर सिंह औषधीय खेती कर साल में लाखों की कमाई भी कर रहे हैं. तकरीबन 20 वर्ष से औषधीय खेती कर रहे हैं. उन्होंने औषधीय खेती करने का प्रशिक्षण बस्तर जिला (छत्तीसगढ़) के कीड़ा गांव निवासी राजाराम त्रिपाठी से लिया है. वहां उन्होंने दो माह तक प्रशिक्षण भी लिया है.

जैविक हर्बल फार्म का भी गांव में करते हैं संचालन

उनका जैविक हर्बल फार्म अमौरा के नाम से फर्म संचालित है. गांव में ही प्लांट स्थापित कर एलोवेरा का जूस, क्रीम और अन्य औषधीय उत्पाद बनाए जाते हैं, जिसे वाराणसी, लखनऊ, पटना, दिल्ली आदि ग्रामीण क्षेत्रों में सप्लाई किया जाता है. अपनी लगन और मेहनत से पारंपरिक खेती से अलग हटकर किसानों के लिए किसान रंगबहादुर सिंह प्रगति का एक अलग रंग बिखेर रहे हैं.

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