गाजियाबाद: आज संपूर्ण भारत देश में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है. बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांध रही हैं और भाई उनकी सुरक्षा का वचन दे रहे हैं, लेकिन वहीं दूसरी ओर जनपद गाजियाबाद के सुराना गांव में भाइयों की कलाइयां सूनी पड़ी हुई हैं. दरअसल, प्राचीन मान्यता के मुताबिक गांव में रक्षाबंधन मनाने पर अपशगुन होता है. आखिर क्या है वजह, इसी को लेकर ईटीवी भारत ने ग्रामीणों से खास बातचीत की.
ईटीवी भारत को ग्रामीण महावीर सिंह यादव ने बताया कि जनपद गाजियाबाद के मुरादनगर गांव के छबाड़िया गोत्र के लोग रक्षाबंधन के त्योहार को अपशगुन मानते हैं. हिंडन नदी किनारे बसा हुआ ये गांव गाजियाबाद से 30 किलोमीटर दूर है. इस सुराना गांव को पहले सोहनगढ़ के नाम से जाना जाता था. जहां पर अधिकांश आबादी छबाड़िया गोत्र के लोगों की है. उनके पूर्वज 1106 ई. में यहां आए थे.
सैकड़ों साल पहले राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के परिजन छतर सिंह राणा ने हिंडन नदी किनारे डेरा डाला था. उनके पुत्र सूरजमल राणा थे. सूरजमल राणा के दो पुत्र विजेंद्र सिंह राणा और सोहन सिंह राणा थे. विजेश सिंह राणा ने बुलंदशहर की जसमीत कौर से शादी कर ली थी. वो हिंडन नदी किनारे रहने लगे. तब इसका नाम सोहनगढ़ रखा गया.
जब मोहम्मद गोरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के परिजन रहते हैं. तो उसने 1206 ई. में रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला करके औरतों, बच्चों, बुजुर्ग और जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया.
हमले में विजेंद्र सिंह राणा वीरगति को प्राप्त हो गए, जबकि हमले के वक्त सोहन सिंह राणा गंगा स्नान गए हुए थे. विजेंद्र सिंह राणा की मृत्यु की खबर मिलते ही उनकी पत्नी जसमीत कौर सती हो गई, जिसका आज भी गांव के खंडहर हालत में मंदिर के प्रमाण हैं. छबाड़िया गोत्र के लोग तब से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाते हैं.
रक्षाबंधन वाले दिन मोहम्मद गौरी ने किया गांव पर आक्रमण
गांव की केवल एक महिला राजवती जिंदा बची थीं. सोहन सिंह राणा की पत्नी राजवती उस वक्त बुलंदशहर के उल्हैड़ा गांव अपने मायके पिता सुमेर सिंह यादव के घर गई हुई थी. मायके में उन्होंने दो पुत्र लखी और चुपड़ा को जन्म दिया. दोनों का ननिहाल में पालन-पोषण हुआ. बेटों ने बड़े होने पर मां से पिता और अपने परिवार के बारे में पूछा. राजवती ने बेटे को मोहम्मद गोरी द्वारा परिवार के मारे जाने की बात बताई. तब लखी और चुपड़ा के साथ राजवती सोनगढ़ वापस आ गई और गांव को 1235 ई में दोबारा बसाया.
'यहां रक्षाबंधन मनाने वाले के घर हो जाती है मृत्यु'
ग्रामीण महावीर सिंह यादव ने बताया कि गांव में ये भी मान्यता थी कि रक्षाबंधन वाले दिन किसी परिवार में पुत्र उत्पन्न हो या गाय बछड़े को जन्म देती है, तो रक्षाबंधन मना सकते हैं. इस मान्यता के मुताबिक ऐसे ही गांव में एक परिवार ने रक्षाबंधन मनाया, तो कुछ समय बाद उसकी संतान विकलांग हो गई और फिर उसकी की मृत्यु हो गई. इसलिए अब कभी भी गांव में रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है.
सुराना गांव के ग्रामीण दया चंद ने भी बताया कि गांव में रक्षाबंधन मनाना अभी भी अपशगुन माना जाता है और अगर कोई मना भी ले तो उसके घर में कुछ ना कुछ अपशगुन जरूर होता है. महावीर सिंह यादव ने बताया कि रक्षाबंधन के दिन त्योहार न मना कर वह लोग भैया दूज के दिन बहनों की खुशी के लिए इस त्योहार को मना लेते हैं.