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दिवाली पर उम्मीदों के दीया तले कुम्हारों की दिवाली

कहते हैं दिवाली के दिन कोई भी गरीब भूखा नहीं सोता, क्योंकि अयोध्या में ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता भी अयोध्या में भगवान श्रीराम की वापसी की खुशियों में शामिल होने के लिए विभिन्न रूपों में आते हैं, लेकिन प्रदेश के कुम्हारों की हालत अच्छी नहीं है. कुम्हारों का कहना है कि कड़ी मेहनत के बाद भी बाजार में मांग कम होने से उनको लाभ नहीं मिलता.

उम्मीद में कुम्हार.
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Published : Oct 20, 2019, 1:31 PM IST

फतेहपुरः दीपावली का त्योहार जैसे-जैसे करीब आ रहा है. गांव से लेकर शहर तक बाजारों की रौनक बढ़ती जा रही है. साथ-साथ कुम्हारों के चाक की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है. दीपावली पर दीपक सहित मिट्टी के बर्तन की मांग खूब होती है, जिसे लेकर कुम्हार परिवार दिन रात एक कर काम करने में जुट हुआ है.

फतेहपुर के कुम्हार भी इस समय दिन रात एक करके दीए बनाने में लगे हैं. उनका कहना है कि मेहनत अधिक होने और मांग कम होने के चलते युवा पीढ़ी इस पेशे से दूरी बना रही है. कुम्हार राम मूरत ने बताया कि इसे बनाने में काफी मेहनत होती है पहले मिट्टी पोखरे से खोद कर लाओ, फिर उसे कूटना, पानी में डालना, फेटना, गुथना, चाक घुमाकर गड़ना, ईंधन में पकाना सहित कई काम होते हैं जिसमें पूरा परिवार लगा रहता है. इतनी मेहनत के बाद बाजार में मांग कम होने से हमें अपनी लागत का भी मूल्य नहीं मिल पाता है.

देखें वीडियो.

वहीं बरेली के मिट्टी के दिए बनाने वाले चन्द्रसेन का कहना है, भारत में बढ़ते प्रदूषण को खत्म करने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना बहुत जरूरी है. सरकार के इस कदम से आम लोगों के लिए कई नए बिजनेस शुरू करने के ऑप्शन्स खुलेंगे. अब कुम्हार लगातार कुल्लड़ और मिट्टी की प्लेटें बना रहे हैं, साथ-साथ दिवाली के त्योहार में कुम्हारों के पास काम काफी बढ़ गया है. सरकार की इस मुहिम से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर काफी खुश हैं. वे सभी इसी उम्मीद में दीये बना रहे है कि यह वर्ष उनके लिए खास होगा.

बरेली में भी कुम्हार इसी आस में दीए बना रहे हैं कि यब दिवाली उनके लिए खास होगी, लेकिन उनका कहना है कि लोगों द्वारा चाइना के माल का प्रयोग किया जाता है जो हमारे लिए अच्छा नहीं होता. 2 साल पहले दीयों की बिक्री बहुत हुआ करती थी. उस समय मांग इनती थी कि पूर्ति के लिए हम लोग दो महीने पहले से ही दिए बनाते थे. फिर भी दिवाली तक पूर्ति नहीं कर पाते थे, लेकिन अब उसकी जगह चाइना के आर्टिफिशियल लाइटों, झालरों और दीयों ने ले ली है इसलिए हम लोगों का परिवार नहीं चल पा रहा है.

फतेहपुरः दीपावली का त्योहार जैसे-जैसे करीब आ रहा है. गांव से लेकर शहर तक बाजारों की रौनक बढ़ती जा रही है. साथ-साथ कुम्हारों के चाक की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है. दीपावली पर दीपक सहित मिट्टी के बर्तन की मांग खूब होती है, जिसे लेकर कुम्हार परिवार दिन रात एक कर काम करने में जुट हुआ है.

फतेहपुर के कुम्हार भी इस समय दिन रात एक करके दीए बनाने में लगे हैं. उनका कहना है कि मेहनत अधिक होने और मांग कम होने के चलते युवा पीढ़ी इस पेशे से दूरी बना रही है. कुम्हार राम मूरत ने बताया कि इसे बनाने में काफी मेहनत होती है पहले मिट्टी पोखरे से खोद कर लाओ, फिर उसे कूटना, पानी में डालना, फेटना, गुथना, चाक घुमाकर गड़ना, ईंधन में पकाना सहित कई काम होते हैं जिसमें पूरा परिवार लगा रहता है. इतनी मेहनत के बाद बाजार में मांग कम होने से हमें अपनी लागत का भी मूल्य नहीं मिल पाता है.

देखें वीडियो.

वहीं बरेली के मिट्टी के दिए बनाने वाले चन्द्रसेन का कहना है, भारत में बढ़ते प्रदूषण को खत्म करने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना बहुत जरूरी है. सरकार के इस कदम से आम लोगों के लिए कई नए बिजनेस शुरू करने के ऑप्शन्स खुलेंगे. अब कुम्हार लगातार कुल्लड़ और मिट्टी की प्लेटें बना रहे हैं, साथ-साथ दिवाली के त्योहार में कुम्हारों के पास काम काफी बढ़ गया है. सरकार की इस मुहिम से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर काफी खुश हैं. वे सभी इसी उम्मीद में दीये बना रहे है कि यह वर्ष उनके लिए खास होगा.

बरेली में भी कुम्हार इसी आस में दीए बना रहे हैं कि यब दिवाली उनके लिए खास होगी, लेकिन उनका कहना है कि लोगों द्वारा चाइना के माल का प्रयोग किया जाता है जो हमारे लिए अच्छा नहीं होता. 2 साल पहले दीयों की बिक्री बहुत हुआ करती थी. उस समय मांग इनती थी कि पूर्ति के लिए हम लोग दो महीने पहले से ही दिए बनाते थे. फिर भी दिवाली तक पूर्ति नहीं कर पाते थे, लेकिन अब उसकी जगह चाइना के आर्टिफिशियल लाइटों, झालरों और दीयों ने ले ली है इसलिए हम लोगों का परिवार नहीं चल पा रहा है.

Intro:एंकर:-भारत में बढ़ते पॉल्यूशन को खत्म करने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना बहुत जरूरी है. सरकार के इस कदम से आम लोगों के लिए कई नए बिज़नेस शुरू करने के ऑप्शन्स खुलेंगे.साथ ही साथ  राज्य सरकार पॉलिथीन पर लगातार छापेमारी कर रही है जिसके कारण शहर के अंदर पॉल्यूशन काफी हद तक कम हो गया है इसमें सबसे बड़ा फायदा अब मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर को देखने लगा है क्योंकि शहर में जिस तरह से प्लास्टिक के गिलास प्लास्टिक की प्लेटो ने अपना घर कर लिया था धीरे-धीरे उसका असर कम होते दिख रहा है अब कुमार लगातार कुल्लड़ और मिट्टी की प्लेटें बना रहे हैं साथ-साथ दिवाली का त्यौहार में कुंवारों के पास काम काफी बढ़ गया है सरकार की इस मुहिम से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर काफी खुश हैं


Body:Vo1:-दीपावली के त्योहार को बस कुछ दिन हैं। जैसे-जैसे त्योहार पास आ रहे हैं वैसे-वैसे मिट्टी के दीए और बर्तन बानने वालों का उत्साह बढ़ता जा रहा है। उन्हें उम्मीद है कि इस बार लोग मिट्टी के दीए का प्रयोग करेंगे और ये कारीगर भी अपना त्योहार खुशी से मना सकेंगे। लेकिन कितने लोग हैं जोे इस बार इन दीयो से अपना घर आंगन संजाएंगे या पूजा में प्रयोग करेंगे।


बाइट:- चन्द्रसेन दिया बनाने वाले


Vo2:-कच्ची मिट्टी को आकार देने वाले मेहनत कश हाथ हर साल बड़े ही प्यार से और मेहनत से तरह-तरह के दीए बनाते हैं। दीए बनाने वालों को एक बार फिर उम्मीद जगी है कि इस बार त्योहार के मौके पर दीए ओर त्योहार में इस्तमाल होने वाला मुख्य पात्र और दीया उनकी जिंदगी में भी उजाला और खुशियां ले कर आएगा। इसी उम्मीद में दीये बनाने का काम भी अंतिम चरण में चल रहा,मिट्टी के कारीगर एक माहीने से इस काम में लगे हुए हैं, और खास तौर पर तरह तरह के दिये तैयार कर रहे हैं।




Conclusion:Fvo:- बही प्रधानमंत्री मोदी की सिंगल यूज़ प्लास्टिक खत्म करने की मुहिम इनकी जिंदगी में एक नए उजाले को लेकर आई है इन सब कारीगरों को उम्मीद है कि 1 दिन फिर से वही युग लौटेगा जब मिट्टी के बर्तनों का उपयोग समाज में सबसे ज्यादा होता था अगर यह प्लास्टिक खत्म हो जाती है तो इनके दिन बदल जाएंगे।

रंजीत शर्मा

9536666643

ईटीवी भारत, बरेली।

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