फतेहपुरः दीपावली का त्योहार जैसे-जैसे करीब आ रहा है. गांव से लेकर शहर तक बाजारों की रौनक बढ़ती जा रही है. साथ-साथ कुम्हारों के चाक की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है. दीपावली पर दीपक सहित मिट्टी के बर्तन की मांग खूब होती है, जिसे लेकर कुम्हार परिवार दिन रात एक कर काम करने में जुट हुआ है.
फतेहपुर के कुम्हार भी इस समय दिन रात एक करके दीए बनाने में लगे हैं. उनका कहना है कि मेहनत अधिक होने और मांग कम होने के चलते युवा पीढ़ी इस पेशे से दूरी बना रही है. कुम्हार राम मूरत ने बताया कि इसे बनाने में काफी मेहनत होती है पहले मिट्टी पोखरे से खोद कर लाओ, फिर उसे कूटना, पानी में डालना, फेटना, गुथना, चाक घुमाकर गड़ना, ईंधन में पकाना सहित कई काम होते हैं जिसमें पूरा परिवार लगा रहता है. इतनी मेहनत के बाद बाजार में मांग कम होने से हमें अपनी लागत का भी मूल्य नहीं मिल पाता है.
वहीं बरेली के मिट्टी के दिए बनाने वाले चन्द्रसेन का कहना है, भारत में बढ़ते प्रदूषण को खत्म करने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना बहुत जरूरी है. सरकार के इस कदम से आम लोगों के लिए कई नए बिजनेस शुरू करने के ऑप्शन्स खुलेंगे. अब कुम्हार लगातार कुल्लड़ और मिट्टी की प्लेटें बना रहे हैं, साथ-साथ दिवाली के त्योहार में कुम्हारों के पास काम काफी बढ़ गया है. सरकार की इस मुहिम से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर काफी खुश हैं. वे सभी इसी उम्मीद में दीये बना रहे है कि यह वर्ष उनके लिए खास होगा.
बरेली में भी कुम्हार इसी आस में दीए बना रहे हैं कि यब दिवाली उनके लिए खास होगी, लेकिन उनका कहना है कि लोगों द्वारा चाइना के माल का प्रयोग किया जाता है जो हमारे लिए अच्छा नहीं होता. 2 साल पहले दीयों की बिक्री बहुत हुआ करती थी. उस समय मांग इनती थी कि पूर्ति के लिए हम लोग दो महीने पहले से ही दिए बनाते थे. फिर भी दिवाली तक पूर्ति नहीं कर पाते थे, लेकिन अब उसकी जगह चाइना के आर्टिफिशियल लाइटों, झालरों और दीयों ने ले ली है इसलिए हम लोगों का परिवार नहीं चल पा रहा है.