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यहां मीरा बाई ने अपने हाथों से की थी 'गिरधर गोपाल' की स्थापना, पुराणों में मिलता है जिक्र

फतेहपुर जिले के शिवराजपुर गांव में भगवान श्री कृष्ण का ऐसा मंदिर है जहां विराजमान गिरधर गोपाल की प्रतिमा की स्थापना भगवान की परम भक्त मीरा बाई ने स्वयं अपने हाथों से की थी. शिवराजपुर गांव का उल्लेख ब्रह्मपुराण के उन्नीसवें अध्याय में मिलता है.

मीरा बाई ने की थी 'गिरधर गोपाल' की स्थापना
मीरा बाई ने की थी 'गिरधर गोपाल' की स्थापना
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Published : Aug 11, 2020, 2:36 PM IST

फतेहपुर: जिले में गंगा तट में बसे शिवराजपुर गांव का उल्लेख पुराणों में धर्मनगरी के रूप में मिलता है. यहां अनन्य कृष्ण भक्तिनी, महान वैरागिनी मीरा बाई ने अपने 'गिरधर गोपाल' की स्थापना स्वयं अपने हाथों से की थी. यहां विराजमान गिरधर गोपाल की प्रतिमा मनोवांछित फल देने के साथ ही अपने भव्य एवं दिव्य आकर्षण से एक अलग छटा बिखेरने वाली है. यहां चंदन से बने पालने में भगवान श्री कृष्ण विराजमान हैं और भगवान के दिन में तीन बार यानी सुबह दोपहर शाम दर्शन की मान्यता है. यहां पूरे वर्ष देशभर से कृष्ण भक्त दर्शनों के लिए आते रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि अष्टधातु से बनी इस अष्टभुजी मूर्ति के जैसे विश्वभर में कोई दूसरी मूर्ति नहीं है.

मीरा बाई ने अपने हाथों से की थी 'गिरधर गोपाल' की स्थापना
ऐसी मान्यता है कि मीराबाई अपने गिरधर गोपाल को लेकर नदी के रास्ते चित्तौड़गढ़ से काशी जाने के लिए निकलीं थी. जब शिवराजपुर पहुंची तो रात्रि हो जाने के कारण विश्राम हेतु यहां रुकी. सुबह जब वह वापस काशी जाने को तैयार हुईं तो गिरधर गोपाल का पालना उठा ही नहीं और उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने मीरा को प्रेरित किया कि 'मीरा मैं आपके अंतर्मन में विराजमान हूं, अब तुम मुझे यहीं छोड़ दो और आगे बढ़ जाओ' जिसके बाद मीरा ने अपने गिरधर गोपाल को यहीं स्थापित कर आगे बढ़ गईं.
शिवराजपुर गांव को आदि काशी के रूप में भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां जगजननी मां पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पाने के लिए तपस्या पूजा अर्चना किया था जिसकी वजह से इसे गौरी कुमारिका क्षेत्र भी कहा जाता है. यहां अश्वथामा के स्थापित शिवमंदिर आज भी विराजमान है. इस गांव में भगवान भोलेनाथ के 101 मंदिर स्थापित हैं. यहां स्थित गंगेश्वर शिवमंदिर में स्थित शिवलिंग में सुबह सदैव पूजा किया हुआ मिलता है.
शिवराजपुर गांव का इतिहास ब्रह्मपुराण के उन्नीसवें अध्याय में मिलता है. यहां बने रसिक बिहारी मंदिर की दीवारों में ब्राह्मी लिपि में श्लोक अंकित है. यहां वैरागिनी मीरा एवं कृष्ण के चित्र अंकित हैं. यहां दीवारों पर बनी पेंटिंग आज भी मंदिर की भव्यता को जीवंत कर रही है. यहां जन्माष्टमी पर्व प्रतिवर्ष परंपरागत तरीके से बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. प्रतिवर्ष जन्माष्टमी मनाने यहां दूर दूर से भक्तगण पहुंचते हैं. मंदिर में लगे 154 दरवाजे खोल दिये जाते हैं. भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण होता है.
यहां लगने वाला विशाल मेला उत्तर प्रदेश के गजेटियर में शामिल 16 मेलों में से एक है. जहां दूर दूर से लोग पहुंचते हैं. बताते चलें कि मंदिर के रख रखाव के लिए एक अर्से तक चित्तौड़गढ़ से धनराशि आती रही है. इस वर्ष कोरोना के कारण यहां मनाए जाने वाले 'जन्माष्टमी उत्सव' का रंग फीका दिख रहा है. हमेशा की तरह इस वर्ष उत्सव न मना पाने को लेकर लोगों में थोड़ी निराशा है, लेकिन इस बात का संतोष भी है कि नियमों का पालन कर कोरोना जैसी भयानक महामारी को आगे बढ़ने से रोका जा सकेगा. इस बार का उत्सव बहुत ही सामान्य तरीके से और सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखकर मनाया जाएगा.

फतेहपुर: जिले में गंगा तट में बसे शिवराजपुर गांव का उल्लेख पुराणों में धर्मनगरी के रूप में मिलता है. यहां अनन्य कृष्ण भक्तिनी, महान वैरागिनी मीरा बाई ने अपने 'गिरधर गोपाल' की स्थापना स्वयं अपने हाथों से की थी. यहां विराजमान गिरधर गोपाल की प्रतिमा मनोवांछित फल देने के साथ ही अपने भव्य एवं दिव्य आकर्षण से एक अलग छटा बिखेरने वाली है. यहां चंदन से बने पालने में भगवान श्री कृष्ण विराजमान हैं और भगवान के दिन में तीन बार यानी सुबह दोपहर शाम दर्शन की मान्यता है. यहां पूरे वर्ष देशभर से कृष्ण भक्त दर्शनों के लिए आते रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि अष्टधातु से बनी इस अष्टभुजी मूर्ति के जैसे विश्वभर में कोई दूसरी मूर्ति नहीं है.

मीरा बाई ने अपने हाथों से की थी 'गिरधर गोपाल' की स्थापना
ऐसी मान्यता है कि मीराबाई अपने गिरधर गोपाल को लेकर नदी के रास्ते चित्तौड़गढ़ से काशी जाने के लिए निकलीं थी. जब शिवराजपुर पहुंची तो रात्रि हो जाने के कारण विश्राम हेतु यहां रुकी. सुबह जब वह वापस काशी जाने को तैयार हुईं तो गिरधर गोपाल का पालना उठा ही नहीं और उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने मीरा को प्रेरित किया कि 'मीरा मैं आपके अंतर्मन में विराजमान हूं, अब तुम मुझे यहीं छोड़ दो और आगे बढ़ जाओ' जिसके बाद मीरा ने अपने गिरधर गोपाल को यहीं स्थापित कर आगे बढ़ गईं.
शिवराजपुर गांव को आदि काशी के रूप में भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां जगजननी मां पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पाने के लिए तपस्या पूजा अर्चना किया था जिसकी वजह से इसे गौरी कुमारिका क्षेत्र भी कहा जाता है. यहां अश्वथामा के स्थापित शिवमंदिर आज भी विराजमान है. इस गांव में भगवान भोलेनाथ के 101 मंदिर स्थापित हैं. यहां स्थित गंगेश्वर शिवमंदिर में स्थित शिवलिंग में सुबह सदैव पूजा किया हुआ मिलता है.
शिवराजपुर गांव का इतिहास ब्रह्मपुराण के उन्नीसवें अध्याय में मिलता है. यहां बने रसिक बिहारी मंदिर की दीवारों में ब्राह्मी लिपि में श्लोक अंकित है. यहां वैरागिनी मीरा एवं कृष्ण के चित्र अंकित हैं. यहां दीवारों पर बनी पेंटिंग आज भी मंदिर की भव्यता को जीवंत कर रही है. यहां जन्माष्टमी पर्व प्रतिवर्ष परंपरागत तरीके से बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. प्रतिवर्ष जन्माष्टमी मनाने यहां दूर दूर से भक्तगण पहुंचते हैं. मंदिर में लगे 154 दरवाजे खोल दिये जाते हैं. भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण होता है.
यहां लगने वाला विशाल मेला उत्तर प्रदेश के गजेटियर में शामिल 16 मेलों में से एक है. जहां दूर दूर से लोग पहुंचते हैं. बताते चलें कि मंदिर के रख रखाव के लिए एक अर्से तक चित्तौड़गढ़ से धनराशि आती रही है. इस वर्ष कोरोना के कारण यहां मनाए जाने वाले 'जन्माष्टमी उत्सव' का रंग फीका दिख रहा है. हमेशा की तरह इस वर्ष उत्सव न मना पाने को लेकर लोगों में थोड़ी निराशा है, लेकिन इस बात का संतोष भी है कि नियमों का पालन कर कोरोना जैसी भयानक महामारी को आगे बढ़ने से रोका जा सकेगा. इस बार का उत्सव बहुत ही सामान्य तरीके से और सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखकर मनाया जाएगा.
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