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चरखा चलाकर फतेहपुर की महिलाएं कात रहीं आत्मनिर्भरता के धागे - आत्मनिर्भर महिलाएं

फतेहपुर जिले में संचालित ग्राम सेवा संस्थान की फतेहपुर इकाई में ग्रामीण अंचल की महिलाएं चरखा चलाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. चरखा चलाकर महिलाएं अपना घर चला रही हैं. बता दें ग्राम सेवा संस्थान में 250 से अधिक परिवार बापू के प्रिय चरखे से जीवन-यापन कर रहे हैं.

सूत काटकर आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं
सूत कातकर आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं
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Published : Nov 7, 2020, 1:48 PM IST

फतेहपुर: आज के समय में सभी व्यवसाय अपडेट हो गए हैं, यानी पुराने उपकरणों को दरकिनार कर व्यक्ति आधुनिक तकनीक अपना रहा है. यही वजह है कि तमाम व्यवसायों में भी आधुनिक तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन जिले के ग्राम सेवा संस्थान में महिलाएं चरखा चलाकर आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर बुन रही हैं.

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सूत कातती महिलाएं

कभी आजादी की लड़ाई का प्रतीक बना चरखा आज महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का आधार बन रहा है. उत्तर प्रदेश में संचालित ग्राम सेवा संस्थान की फतेहपुर इकाई में 20 से अधिक गांवों की महिलाएं चरखा चलाकर आमदनी कर रही हैं. इससे न सिर्फ वह अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं, बल्कि प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करते हुए सशक्त हो रही हैं.

250 परिवार कर रहे जीवन यापन

जिले में खादी की अलख जगा रहे ग्राम सेवा संस्थान में 250 से अधिक परिवार बापू के प्रिय चरखे से जीवन-यापन कर रहे हैं. ग्रामीण अंचल की जिन जरूरतमंद महिलाओं के पास चरखा खरीदने का पैसा नहीं है. वह संस्थान में बनी कार्यशाला में आकर सूत कातती हैं. इसके साथ ही वह अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित करती हैं. इनके द्वारा काते गए सूत से तैयार कपड़े की सप्लाई सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि गुजरात, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, बंगाल, हरियाणा सहित 10-प्रान्तों में होती है.

स्पेशल रिपोर्ट


कार्यशाला में काम कर रही महिलाओं ने बताया कि पहले वह घर पर सिर्फ चूल्हे-चौके तक सीमित थीं. जब उन्हें पता चला कि उन्हें सूत कातने का काम मिल सकता है, तो वह घर से बाहर निकलकर कार्यशाला तक पहुंचीं और करीब 8 घंटे काम करके वह 3-5 हजार रुपये महीने तक कमा लेती हैं. इस काम के जरिए वह अपने पतियों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. महिलाओं ने बताया कि पहले घर में पैसे मांगने पर उन्हें गिनकर पैसे मिलते थे. यानी बहुत मुश्किलों से, कई बार तो उन्हें डांट भी मिल जाती थी, लेकिन जबसे वह काम कर रही हैं तबसे घर का खर्च तो चला ही रही हैं. साथ ही अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिला पा रही हैं.

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सूत कातकर आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं

ग्राम सेवा संस्थान के अध्यक्ष मेवाराम कटियार ने बताया कि जो महिलाएं काम करने की इच्छुक होती हैं, उन्हें हम चरखा और कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं. महिलाओं के द्वारा जो सूत काता जाता है, उसका उपयोग करके हम अपने यहां बुनाई कराते हैं. करीब 250 महिलाएं हमारे यहां काम कर रही हैं.

जो महिलाएं यहां काम करती हैं, उनको खादी ग्रामोद्योग की तरफ से एक कॉलोनी का पैसा दिया जाता है. हमारे यहां बनाए जाने वाले कपड़े की सप्लाई करीब 10 से 12 प्रदेशों में होती है.

मेवाराम कटियार, अध्यक्ष, ग्राम सेवा संस्थान

फतेहपुर: आज के समय में सभी व्यवसाय अपडेट हो गए हैं, यानी पुराने उपकरणों को दरकिनार कर व्यक्ति आधुनिक तकनीक अपना रहा है. यही वजह है कि तमाम व्यवसायों में भी आधुनिक तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन जिले के ग्राम सेवा संस्थान में महिलाएं चरखा चलाकर आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर बुन रही हैं.

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सूत कातती महिलाएं

कभी आजादी की लड़ाई का प्रतीक बना चरखा आज महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का आधार बन रहा है. उत्तर प्रदेश में संचालित ग्राम सेवा संस्थान की फतेहपुर इकाई में 20 से अधिक गांवों की महिलाएं चरखा चलाकर आमदनी कर रही हैं. इससे न सिर्फ वह अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं, बल्कि प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करते हुए सशक्त हो रही हैं.

250 परिवार कर रहे जीवन यापन

जिले में खादी की अलख जगा रहे ग्राम सेवा संस्थान में 250 से अधिक परिवार बापू के प्रिय चरखे से जीवन-यापन कर रहे हैं. ग्रामीण अंचल की जिन जरूरतमंद महिलाओं के पास चरखा खरीदने का पैसा नहीं है. वह संस्थान में बनी कार्यशाला में आकर सूत कातती हैं. इसके साथ ही वह अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित करती हैं. इनके द्वारा काते गए सूत से तैयार कपड़े की सप्लाई सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि गुजरात, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, बंगाल, हरियाणा सहित 10-प्रान्तों में होती है.

स्पेशल रिपोर्ट


कार्यशाला में काम कर रही महिलाओं ने बताया कि पहले वह घर पर सिर्फ चूल्हे-चौके तक सीमित थीं. जब उन्हें पता चला कि उन्हें सूत कातने का काम मिल सकता है, तो वह घर से बाहर निकलकर कार्यशाला तक पहुंचीं और करीब 8 घंटे काम करके वह 3-5 हजार रुपये महीने तक कमा लेती हैं. इस काम के जरिए वह अपने पतियों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. महिलाओं ने बताया कि पहले घर में पैसे मांगने पर उन्हें गिनकर पैसे मिलते थे. यानी बहुत मुश्किलों से, कई बार तो उन्हें डांट भी मिल जाती थी, लेकिन जबसे वह काम कर रही हैं तबसे घर का खर्च तो चला ही रही हैं. साथ ही अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिला पा रही हैं.

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सूत कातकर आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं

ग्राम सेवा संस्थान के अध्यक्ष मेवाराम कटियार ने बताया कि जो महिलाएं काम करने की इच्छुक होती हैं, उन्हें हम चरखा और कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं. महिलाओं के द्वारा जो सूत काता जाता है, उसका उपयोग करके हम अपने यहां बुनाई कराते हैं. करीब 250 महिलाएं हमारे यहां काम कर रही हैं.

जो महिलाएं यहां काम करती हैं, उनको खादी ग्रामोद्योग की तरफ से एक कॉलोनी का पैसा दिया जाता है. हमारे यहां बनाए जाने वाले कपड़े की सप्लाई करीब 10 से 12 प्रदेशों में होती है.

मेवाराम कटियार, अध्यक्ष, ग्राम सेवा संस्थान

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