फतेहपुर: जिले के मलवा ब्लाक के गांव शिवराजपुर में रहने वाले किसान रमाकान्त त्रिपाठी 5 एकड़ की खेती में जीरो बजट तरीका अपनाकर जैविक खेती कर रहें हैं. रमाकांत गोमूत्र और गोबर से फसल के उत्पादन के लिए खाद्य तैयार करते हैं. वे रसायन रहित कैंसर रोधी, सुगर फ्री गेहूं और चावल का उत्पादन कर रहें हैं. जैविक खेती अपनाने से फसलों का उत्पादन तो कम होता है, लेकिन बाजार में दाम अच्छा मिल रहा है. इससे स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी अच्छा मिल रहा है.
कैसे तैयार होती है जैविक खाद्य
रमाकान्त त्रिपाठी ने बताया कि रसायन रहित खेती करने के लिए राष्ट्रीय जैविक अनुसंधान परिषद द्वारा गोमूत्र और गोबर से खाद्य बनाने की विधि पर शोध किया गया है. इसके माध्यम से एक सेल्यूशन लिक्विड की डिबिया और 2 किलो गुड को 200 लीटर पानी में एक सप्ताह तक रखा जाता है. यूरिया खाद्य की स्थान पर 10 किलो गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 1 किलो बेसन और दो मुठ्ठी पीपल या बरगद के जड़ की मिट्टी को एक सप्ताह तक घोल बनाया जाता है. दोनों घोल को प्रतिदिन क्लॉक वाइज घुमाया जाता है. इसके पश्चात इस घोल को सिंचाई करते वक्त पानी के सहारे या मशीन से छिड़काव के माध्यम से फसल को खाद्य दिया जाता है.
गोवंश और स्वास्थ्य की रक्षा
रमाकांत ने बताया कि जैविक माध्यम से खेती करके जहर मुक्त अनाज उपज करने के साथ-साथ गोवंश की भी रक्षा की जा रही है. वर्तमान समय में किसान जहां रासायनिक अनाज और जानवरों से परेशान हैं, वहीं आधुनिक खेती में रासायनिक खाद्य और दवा का इस्तेमाल काफी महंगा है. इससे किसानों की आमदनी में वृद्धि होने के बजाय कमी आ रही है.
मिल रही दोगुना आय
उन्होंने बताया कि जैविक खेती जीरो बजट आधारित खेती है. इसमें खाद्य का प्रति बीघे 2 हजार तक बच जाता है. वहीं जो फसल होती है, उसका बाजार में दाम साधारण फसलों से दोगुना मिल रहा है. रमाकांत ने पिछले वर्ष बंशी गेहूं का उपज किया था, जो सुगर रहित है. यह गेहूं एक बीघे में 5 कुंतल हुआ था जो 20 हजार रुपये में बिका था.
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जीरो बजट खेती के साथ-साथ स्वास्थ्य वर्धक फसल का उत्पादन किया जा रहा है. किसान जहां अपनी आमदनी में वृद्धि कर सकता है, वहीं रसायनिक खाद्यों के इस्तेमाल में जमीन को उर्वरक शक्ति को नष्ट होने से बचा भी सकता है.
रमाकांत त्रिपाठी, प्रगतिशील किसान