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फर्रुखाबाद: विदेश से लौटे राहुल पाल के प्रयोग ने बदल दी किसानों की किस्मत - फर्रुखाबाद ताजा खबर

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में अफ्रीका की नौकरी छोड़ वापस लौटा युवक राहुल पाल किसानों की मुस्कान बनकर बन गया है. राहुल के प्रयोगों और प्रयासों ने फर्रुखाबाद, कन्नौज समेत आसपास के कई जिलों में उन्नत बीजों के इस्तेमाल से किसानों की आय भी दोगुनी कर दी है. वे किसानों को वैज्ञानिक विधि से खेती के बारे में लगातार जानकारी दे रहे हैं.

विदेश से लौटे राहुल पाल ने बदली किसानों की किस्मत
विदेश से लौटे राहुल पाल ने बदली किसानों की किस्मत
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Published : Sep 21, 2020, 1:03 PM IST

फर्रुखाबाद: जिले के कमालगंज ब्लॉक के श्रृंगीरामपुर निवासी शिक्षक गोवर्धन दास पाल के बेटे राहुल पाल ने बायोटेक्नोलॉजी से एमएससी, एमबीए और एमफिल किया. इसके बाद वह पूर्वी अफ्रीका स्थित नेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में नौकरी करने चले गए थे, लेकिन देश और किसानों के लिए कुछ करने की चाहत उन्हें वापस अपने शहर लौटा लाई. अब राहुल श्रृंगीरामपुर में लेबोरेटरी और नर्सरी स्थापित कर टिशू कल्चर से नए-नए प्रयोग करते हैं, ताकि क्षेत्र के किसानों को कम दाम पर उन्नत बीज और तकनीक उपलब्ध करा सकें.

आलू की पैदावार में हुई बढ़ोतरी
बता दें कि फर्रुखाबाद में किसानों की आय का स्त्रोत आलू की फसल है. यहां पर दो हजार से अधिक किसान बीज लेकर आलू की भरपूर पैदावार और आय अर्जित कर रहे हैं. टिश्यू कल्चर विधि से तैयार किए केला, सागौन और चंदन के पौधे भी किसानों के लिए आय का साधन बन रहे हैं. किसानों ने बताया कि पहले आलू का सामान्य बीज बोते थे, तो 45 पैकेट तकरीबन 50 किलो आलू प्रति बीघा होती थी, लेकिन निरोगी और उन्नत बीज बोने से पैदावार दोगुनी से अधिक हो रही है, जिससे मुनाफा दोगुना निकल रहा है.

देखें वीडियो.

दो हजार से अधिक किसानों ने बीजों की कराई बुकिंग
विदेश से नौकरी छोड़ कर स्वदेश लौटे राहुल पाल ने बताया कि अपनों के लिए कुछ बेहतर करने का विचार ही वापसी का कारण बना. इस सीजन भी दो हजार से अधिक किसान आलू के बीज के लिए बुकिंग करवा चुके हैं. उन्होंने बताया कि यहां आलू की फसल में अक्सर रोग लगने से किसानों को भारी नुकसान सहना पड़ता था, जनपद में आलू की खेती अधिक होती है. इसलिए आलू पर सबसे अधिक ध्यान दिया है. लैब में टिशू कल्चर से गुणवत्ता भरे निरोगी बीज और नर्सरी में पौधे तैयार कर, इन्हें वाजिब दामों में किसानों को उपलब्ध कराया जाता है. पाली हाउस में जरूरी तापमान पर कोकोपीट में यह पौधे उगाते हैं.

यह होता है टिशु कल्चर
टिशू कल्चर एक कृत्रिम वातावरण में पौधों को स्थानांतरित करके नए पौधों के ऊतकों को विकसित करने की एक तकनीक है. पौधे में टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है, जिसमें किसी भी पादप ऊतक जैसे जड़, तना, पुष्प आदि को निर्मित परिस्थितियों में पोषक माध्यम पर उगाया जाता है.

ऐसी होती है टिशु कल्चर की प्रक्रिया
पौधे के ऊतकों का एक छोटा सा टुकड़ा उसके बढ़ते हुए ऊपरी भाग से लिया जाता है और एक जेली में रखा जाता है, जिसमें पोषक तत्व और प्लांट हार्मोन होते हैं. यह हार्मोन पौधे के ऊतकों में कोशिकाओं को तेजी से विभाजित करते हैं, जोकि कई कोशिकाओं का निर्माण करते हैं और एक जगह एकत्रित कर देते हैं.

पौधों पर मौसम का कोई असर नहीं
टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है, जो बहुत तेजी से काम करती है. इस तकनीक के माध्यम से पौधे के ऊतकों के एक छोटे से हिस्से को लेकर कुछ ही हफ्तों के समय में हजारों प्लांटलेट का उत्पादन किया जा सकता है. टिशू कल्चर द्वारा उत्पादित नए पौधे रोग मुक्त होते हैं. टिशू कल्चर के माध्यम से पूरे वर्ष पौधों को विकसित किया जा सकता है. इस पर किसी भी मौसम का कोई असर नहीं होता है. आलू उद्योग के मामले में यह तकनीक वायरस मुक्त स्टॉक बनाए रखने और स्थापित करने में सहायता करती है.

फर्रुखाबाद: जिले के कमालगंज ब्लॉक के श्रृंगीरामपुर निवासी शिक्षक गोवर्धन दास पाल के बेटे राहुल पाल ने बायोटेक्नोलॉजी से एमएससी, एमबीए और एमफिल किया. इसके बाद वह पूर्वी अफ्रीका स्थित नेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में नौकरी करने चले गए थे, लेकिन देश और किसानों के लिए कुछ करने की चाहत उन्हें वापस अपने शहर लौटा लाई. अब राहुल श्रृंगीरामपुर में लेबोरेटरी और नर्सरी स्थापित कर टिशू कल्चर से नए-नए प्रयोग करते हैं, ताकि क्षेत्र के किसानों को कम दाम पर उन्नत बीज और तकनीक उपलब्ध करा सकें.

आलू की पैदावार में हुई बढ़ोतरी
बता दें कि फर्रुखाबाद में किसानों की आय का स्त्रोत आलू की फसल है. यहां पर दो हजार से अधिक किसान बीज लेकर आलू की भरपूर पैदावार और आय अर्जित कर रहे हैं. टिश्यू कल्चर विधि से तैयार किए केला, सागौन और चंदन के पौधे भी किसानों के लिए आय का साधन बन रहे हैं. किसानों ने बताया कि पहले आलू का सामान्य बीज बोते थे, तो 45 पैकेट तकरीबन 50 किलो आलू प्रति बीघा होती थी, लेकिन निरोगी और उन्नत बीज बोने से पैदावार दोगुनी से अधिक हो रही है, जिससे मुनाफा दोगुना निकल रहा है.

देखें वीडियो.

दो हजार से अधिक किसानों ने बीजों की कराई बुकिंग
विदेश से नौकरी छोड़ कर स्वदेश लौटे राहुल पाल ने बताया कि अपनों के लिए कुछ बेहतर करने का विचार ही वापसी का कारण बना. इस सीजन भी दो हजार से अधिक किसान आलू के बीज के लिए बुकिंग करवा चुके हैं. उन्होंने बताया कि यहां आलू की फसल में अक्सर रोग लगने से किसानों को भारी नुकसान सहना पड़ता था, जनपद में आलू की खेती अधिक होती है. इसलिए आलू पर सबसे अधिक ध्यान दिया है. लैब में टिशू कल्चर से गुणवत्ता भरे निरोगी बीज और नर्सरी में पौधे तैयार कर, इन्हें वाजिब दामों में किसानों को उपलब्ध कराया जाता है. पाली हाउस में जरूरी तापमान पर कोकोपीट में यह पौधे उगाते हैं.

यह होता है टिशु कल्चर
टिशू कल्चर एक कृत्रिम वातावरण में पौधों को स्थानांतरित करके नए पौधों के ऊतकों को विकसित करने की एक तकनीक है. पौधे में टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है, जिसमें किसी भी पादप ऊतक जैसे जड़, तना, पुष्प आदि को निर्मित परिस्थितियों में पोषक माध्यम पर उगाया जाता है.

ऐसी होती है टिशु कल्चर की प्रक्रिया
पौधे के ऊतकों का एक छोटा सा टुकड़ा उसके बढ़ते हुए ऊपरी भाग से लिया जाता है और एक जेली में रखा जाता है, जिसमें पोषक तत्व और प्लांट हार्मोन होते हैं. यह हार्मोन पौधे के ऊतकों में कोशिकाओं को तेजी से विभाजित करते हैं, जोकि कई कोशिकाओं का निर्माण करते हैं और एक जगह एकत्रित कर देते हैं.

पौधों पर मौसम का कोई असर नहीं
टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है, जो बहुत तेजी से काम करती है. इस तकनीक के माध्यम से पौधे के ऊतकों के एक छोटे से हिस्से को लेकर कुछ ही हफ्तों के समय में हजारों प्लांटलेट का उत्पादन किया जा सकता है. टिशू कल्चर द्वारा उत्पादित नए पौधे रोग मुक्त होते हैं. टिशू कल्चर के माध्यम से पूरे वर्ष पौधों को विकसित किया जा सकता है. इस पर किसी भी मौसम का कोई असर नहीं होता है. आलू उद्योग के मामले में यह तकनीक वायरस मुक्त स्टॉक बनाए रखने और स्थापित करने में सहायता करती है.

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