फर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश पुलिस के निरीक्षक रामनिवास यादव की हत्या को अंजाम देने के मामले में माफिया अनुपम दुबे को बीते गुरुवार 27 साल बाद आजीवन कारावास की सजा मिली है.जिले में बसपा नेता अनुपम दुबे का आपराधिक इतिहास बहुत पुराना है. मोहम्मदाबाद ब्लॉक के ग्राम सहसापुर का रहने वाला माफिया अनुपम दुबे 36 साल से आपराधिक दुनिया में है. इसके अपराध की पराकाष्ठा इस कदर है कि कोई भी इनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता. अनुपम दुबे पर अलग-अलग थानों में करीब 63 मुकदमे दर्ज हैं. इनमें हत्या, जमीन पर कब्जा और फिरौती मुख्य है. अनुपम दुबे के खिलाफ पुलिस अब तक 113 करोड़ से अधिक रुपये की प्रॉपर्टी कुर्क कर चुकी है.
अनुपम दुबे का अपराधिक इतिहास: पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार अनुपम दुबे ने साल 1987 में अपराध जगत में अपना कदम रखा. 20 जून 1991 में मैनपुरी के थाना बेबर में ओमप्रकाश सिंह यादव की हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था. उसमें अनुपम दुबे और उसका साथी नेम कुमार उर्फ बिलैया भी आरोपी था. उसके बाद 12 जून 1992 को फतेहगढ़ के करन सिंह कटियार पर जानलेवा हमला किया गया. इसमें अनुपम दुबे और उसके साथी बिलैया का नाम आया. 4 अगस्त 1994 में करन सिंह कटियार की कानपुर स्वरूप नगर थाना क्षेत्र में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.उसके बाद अनुपम दुबे ने 14 में 1996 इंस्पेक्टर हत्याकांड को अंजाम दिया. उसके बाद से अनुपम दुबे रौब बढ़ता गया. अनुपम दुबे पर अब तक कुल 63 अपराधिक मुकदमें अलग अलग जनपदों में विभिन्न धाराओं में दर्ज हुये है. जिनमें मुख्य रूप से हत्या, डकैती, जमीन पर कब्जा धोखाधड़ी, रंगदारी वसूली, फिरौती आदि के अपराध हैं.
अनुपम दुबे की संपत्ति कुर्क: अनुपम दुबे की अपराध करके अर्जित की गई संपत्ति, परिजनों और अन्य सहयोगी सदस्यों के नाम वाहन, जमीन और मकान जिनकी अनुमानित कीमत लगभग 13 करोड़ रुपये से अधिक है, उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के अंतर्गत प्रशासन ने कुर्क की है. अनुपम दुबे और उसके परिवार के सदस्यों के नाम पर 8 लाइसेंस बंदूक को निरस्त कराकर थाने में जमा कराया गया है. फतेहगढ़ पुलिस ने माफिया अनुपम दुबे के विरुद्ध एनएसए की कार्रवाई की है. इस कार्रवाई को उच्च न्यायालय इलाहाबाद की तीन सदस्य पीठ ने सही भी माना है.
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अनुपम दुबे माफिया घोषित: अनुपम दुबे के अपराधिक इतिहास को देखते हुए फतेहगढ़ पुलिस ने इसे माफिया घोषित कराया था. पुलिस ने अनुपम दुबे के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए डी- 47 गैंग दर्ज कराया. इसके गैंग के सभी सदस्यों की हिस्ट्री शीट खोली जा चुकी है. माफिया अनुपम दुबे अभी मथुरा जेल में बंद है और इसका भाई अमित दुबे उर्फ बब्बन जो की डी-47 गैंग का सदस्य हैं.वह भी हरदोई जेल में बंद है.
अनुपम दुबे ने राजनीति में रखा कदम: अनुपम दुबे ने रसूख कायम करने के बाद राजनीति में अपना हाथ आजमाया और बसपा का दामन थाम लिया. इसके बाद अनुपम दुबे ने नगर पालिका का चुनाव लड़ा. लेकिन वह हार गया. इसके बाद निर्दलीय नगरपालिका का चुनाव सदर विधानसभा से लड़ा. इसमें भी अनुपम दुबे की हार हुई. इसके बाद हरदोई की सवायजपुर विधानसभा से बसपा से चुनाव लड़ा.अपराधी के भय से लोग अनुपम दुबे का विरोध नहीं कर पाते थे. लोग अनुपम दुबे के भय के साये में रह रहे थे. यदि साहस करके अनुपम दुबे के विरुद्ध कोई मुकदमा दर्ज भी कराता, तो उस मुकदमें में जनता का कोई भी व्यक्ति न्यायालय में गवाही देने को तैयार नहीं होता था. माफिया एक संगठित अपराधी की तरह कार्य करके अपने अपराधों से न्याय प्रक्रिया में हमेशा बच जाया करता था.
पिछले दो सालों से सभी उच्च अधिकारियों के निर्देशन में माफिया का आतंक समाप्त करने के लिए पूर्व एसपी जीआरपी आगरा मोहम्मद मुश्ताक,पूर्व एसपी फतेहगढ़ अशोक कुमार मीणा, वर्तमान एसपी विकास कुमार के द्वारा सरानीय कार्य किया गया.इस मुकदमे में इन अधिकारियों का विशेष योगदान रहा. एडीजी कानपुर अरविंद कुमार ढिमरी का भी योगदान सरानीय रहा है. एडीजी जोन ने संपूर्ण टीम की प्रशंसा करते हुए प्रशस्ति पत्र और सभी रजिस्टार अधिकारी और कर्मचारियों के लिए पुरस्कार की घोषणा की गई है.
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