ETV Bharat / state

पर्यावरण दिवस विशेष: लॉकडाउन से निर्मल हुई चंबल में नन्हे कछुओं को मिली नई जिंदगी

देश में इस वक्त वैश्विक महामारी कोरोना का कहर छाया हुआ है. लोगों में एक भय का माहौल है. वहीं इसके कारण लागू लॉकडाउन का लाभ चंबल नदी में कछुओं को मिला है, क्योंकि उन्हें सुरक्षित प्रजनन का मौका मिला है. चंबल नदी आजकल नन्हे कछुओं से गुलजार दिख रही है.

chambal turtles special story
लॉकडाउन से चंबल नदी में कछुए के बच्चों को मिली नई जिंदगी.
author img

By

Published : Jun 4, 2020, 10:13 PM IST

Updated : Sep 4, 2020, 12:24 PM IST

इटावा: वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से चंबल नदी में कछुओं को सुरक्षित प्रजनन का मौका मिला है. चंबल की वादी इस समय नन्हें कछुओं से गुलजार है. कछुओं की नई पीढ़ी नदियों की तरफ तेजी से भागती हुई नजर आ रही है. दरअसल, देश में जारी लॉकडाउन से सारी गतिविधियां बंद हैं, जिसका फायदा इन कछुओं को मिला है. यहां कछुओं के बच्चों को सुरक्षित विचरण करते हुए देखा जा सकता है.

नन्हे कछुओं को मिली नई जिंदगी.

नदी के पानी को साफ रखने में करते हैं मदद
कछुए नदी के पूरे इकोसिस्टम को यथावत बनाए रखने में बड़ा सहयोग करते हैं. नदी या तालाब के पानी को साफ रखने में भी यह मदद करते हैं. ऐसा माना जाता है कि कछुए किसी नदी में बड़ी संख्या में हैं तो समझ लीजिए कि नदी का पानी स्वच्छ है.

कछुओं के बच्चों से गुलजार हुई चंबल घाटी
आजकल यह नन्हे कछुए चंबल की ओर ऐसे खिंचे चले आ रहे हैं, जैसे कि कोई चुंबक उन्हें खींच रहा हो. ऐसा ही कुछ नजारा सेंचुरी इलाके में इन दिनों देखने को मिल रहा है, जहां कछुए के अंडों से बच्चे निकलते हुए पानी की ओर जाते दिख रहे हैं. मानसून का महीना भी आने वाला है. हर साल की तरह जलजीवों की नई पीढ़ी चंबल के पानी की लहरों के बीच में अपना जीवन शुरू करने के लिए तैयार है.

पानी की ओर भाग रहे नन्हे कछुए
इस साल कछुओं की कई प्रजातियों ने अपने अंडे नदी के किनारे दिए, जिनमें से कई भूमि के अंदर अपनी जिंदगी से लड़ते हुए बाहर आने का इंतजार कर रहे हैं. कई कछुए धीरे-धीरे नदी किनारे बने अपने नेस्ट से निकल कर बाहर आ रहे हैं. गुरुवार को कछुओं के कम से कम 20 से 22 बच्चे अपनी मां के द्वारा बनाए गए नेस्ट से निकलकर देखते ही देखते बिना किसी निर्देश और डर के सीधे पानी की ओर भागते नजर आए, जैसे उन्हें कोई नया घर मिल गया हो.

इस बार बढ़ेगी कछुओं की संख्या
वन रेंजर विवेकानंद दुबे ने बताया कि विश्व की सबसे शुद्ध नदियों में चंबल नदी भी है. इसमें घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन और कछुए समेत कई जीव पाए जाते हैं. यहां पूरी तरीके से शिकार पर प्रतिबंधित है. वहीं आसपास के किसी प्रकार का अवैध कटान और शिकार नहीं होता है. यहां पर जलीय जीव अपने आप को सुरक्षित मानते हैं. इसलिए बड़ी तादाद में इस बार कछुओं की संख्या बढ़ने की संभावना है.

कार्यकाल के एक साल होने पर बोले कठेरिया, जिले का विकास हमारी प्राथमिकता

क्षेत्रीय भी करते हैं विभाग का सहयोग
नेस्टिंग की जानकारी देते हुए क्षेत्रीय निवासी मोहर सिंह ने बताया कि मई से लेकर जून तक का समय नेस्टिंग का होता है, जिसमें मार्च में कछुए और घड़ियाल सभी अंडे देते हैं और मई के अंत से लेकर मध्य जून तक इनके बच्चे निकलकर चंबल नदी में प्रवेश कर जाते हैं. हालांकि आसपास के क्षेत्र को स्वच्छ रखने का प्रयास विभाग के साथ क्षेत्रीय लोग भी करते हैं.

इटावा: वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से चंबल नदी में कछुओं को सुरक्षित प्रजनन का मौका मिला है. चंबल की वादी इस समय नन्हें कछुओं से गुलजार है. कछुओं की नई पीढ़ी नदियों की तरफ तेजी से भागती हुई नजर आ रही है. दरअसल, देश में जारी लॉकडाउन से सारी गतिविधियां बंद हैं, जिसका फायदा इन कछुओं को मिला है. यहां कछुओं के बच्चों को सुरक्षित विचरण करते हुए देखा जा सकता है.

नन्हे कछुओं को मिली नई जिंदगी.

नदी के पानी को साफ रखने में करते हैं मदद
कछुए नदी के पूरे इकोसिस्टम को यथावत बनाए रखने में बड़ा सहयोग करते हैं. नदी या तालाब के पानी को साफ रखने में भी यह मदद करते हैं. ऐसा माना जाता है कि कछुए किसी नदी में बड़ी संख्या में हैं तो समझ लीजिए कि नदी का पानी स्वच्छ है.

कछुओं के बच्चों से गुलजार हुई चंबल घाटी
आजकल यह नन्हे कछुए चंबल की ओर ऐसे खिंचे चले आ रहे हैं, जैसे कि कोई चुंबक उन्हें खींच रहा हो. ऐसा ही कुछ नजारा सेंचुरी इलाके में इन दिनों देखने को मिल रहा है, जहां कछुए के अंडों से बच्चे निकलते हुए पानी की ओर जाते दिख रहे हैं. मानसून का महीना भी आने वाला है. हर साल की तरह जलजीवों की नई पीढ़ी चंबल के पानी की लहरों के बीच में अपना जीवन शुरू करने के लिए तैयार है.

पानी की ओर भाग रहे नन्हे कछुए
इस साल कछुओं की कई प्रजातियों ने अपने अंडे नदी के किनारे दिए, जिनमें से कई भूमि के अंदर अपनी जिंदगी से लड़ते हुए बाहर आने का इंतजार कर रहे हैं. कई कछुए धीरे-धीरे नदी किनारे बने अपने नेस्ट से निकल कर बाहर आ रहे हैं. गुरुवार को कछुओं के कम से कम 20 से 22 बच्चे अपनी मां के द्वारा बनाए गए नेस्ट से निकलकर देखते ही देखते बिना किसी निर्देश और डर के सीधे पानी की ओर भागते नजर आए, जैसे उन्हें कोई नया घर मिल गया हो.

इस बार बढ़ेगी कछुओं की संख्या
वन रेंजर विवेकानंद दुबे ने बताया कि विश्व की सबसे शुद्ध नदियों में चंबल नदी भी है. इसमें घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन और कछुए समेत कई जीव पाए जाते हैं. यहां पूरी तरीके से शिकार पर प्रतिबंधित है. वहीं आसपास के किसी प्रकार का अवैध कटान और शिकार नहीं होता है. यहां पर जलीय जीव अपने आप को सुरक्षित मानते हैं. इसलिए बड़ी तादाद में इस बार कछुओं की संख्या बढ़ने की संभावना है.

कार्यकाल के एक साल होने पर बोले कठेरिया, जिले का विकास हमारी प्राथमिकता

क्षेत्रीय भी करते हैं विभाग का सहयोग
नेस्टिंग की जानकारी देते हुए क्षेत्रीय निवासी मोहर सिंह ने बताया कि मई से लेकर जून तक का समय नेस्टिंग का होता है, जिसमें मार्च में कछुए और घड़ियाल सभी अंडे देते हैं और मई के अंत से लेकर मध्य जून तक इनके बच्चे निकलकर चंबल नदी में प्रवेश कर जाते हैं. हालांकि आसपास के क्षेत्र को स्वच्छ रखने का प्रयास विभाग के साथ क्षेत्रीय लोग भी करते हैं.

Last Updated : Sep 4, 2020, 12:24 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.