इटावा: जनपद के चिकित्सा विश्वविद्यालय सैफई के कोविड-19 अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों पर एलोवैदिक औषधि राज निर्वाण बटी (आरएनबी) के सकारात्मक प्रभाव के वैज्ञानिक विश्लेषण किये जा रहे थे. इसका रेन्डमाइज्ड कन्ट्रोल्ड ट्रायल (आरसीटी) का प्रयोग सफल रहा है. यह जानकारी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. राजकुमार ने मंगलवार को यूनिवर्सिटी में आयोजित प्रेस-वार्ता के दौरान दी. उन्होंने बताया कि यह आरसीटी जो कि साइन्टिफिक एविडेंस मेथोडोलाॅजी में सर्वप्रथम माना जाता है, पिछले कई महीनों से विश्वविद्यालय में किए जा रहे वैज्ञानिक शोध कार्यों एवं ट्रायल्स का परिणाम है.
आरएनबी कोरोना संक्रमितों पर प्रभावी
डॉ. राजकुमार ने बताया कि विश्वविद्यालय के कोविड-19 अस्पताल में विगत दो महीनों में किए गए पाॅयलट स्टडी एवं सिंगल आर्म क्लिनिकल ट्रायल में राज निर्वाण बटी (आरएनबी) के साधारण से गंभीर लक्षणों वाले कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में सुरक्षित एवं प्रभावकारी होने की पुष्टि हुई है. इस महत्वपूर्ण ट्रायल का पंजीकरण क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इण्डिया (सीटीआरआई) में किया गया था और विश्वविद्यालय के साइंटिफिक कमिटी, इथिकल कमिटी एवं सशक्त कोरोना कमिटी से भी अनुमोदन प्राप्त किया गया था. इस ट्रायल के सफल नतीजों पर तीन पब्लिकेशंस राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर के शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. इसके अलावा विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित कोविडोलाॅजी- साइंसेज, इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड मैनेजमेंट नामक पुस्तक में भी इसका पूर्ण विवरण उपलब्ध है.
इसके क्लिनिकल ट्रायल के उत्साहजनक परिणामों से प्रेरित होकर विश्वविद्यालय ने साइंटिफिक रिसर्च के प्रोटोकाॅलों के क्रम में इस रेण्डमाइज्ड कन्ट्रोल ट्रायल (आरसीटी) की शुरूआत की जो व्यापक रूप से सफल रहा है. इस आरसीटी का पंजीकरण भी क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इण्डिया (सीटीआरआई) में किया गया और विश्वविद्यालय के साइंटिफिक कमिटी, इथिकल कमिटी एवं सशक्त कोरोना कमिटी से अनुमोदन प्राप्त किया गया. यह ट्रायल समकालिक साइन्टिफिक रिसर्च के हर मापदण्डों के अनुपालन में किया गया.
दो ग्रुप में मरीजों में की गई स्टडी
इस आरसीटी में कोविड-19 अस्पताल में भर्ती साधारण, मध्यम एवं गंभीर लक्षणों वाले कुल 60 कोविड-19 संक्रमित मरीजों को लिया गया, जो 18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के थे. इस ट्रायल में क्रिटिकल मरीजों को सम्मिलित नहीं किया गया क्योंकि वर्तमान में आरएनबी औषधी सिर्फ टेबलेट रूप में उपलब्ध है, इन्जेक्शन के रूप में नहीं. इन 60 मरीजों को दो स्टडी ग्रुपों में विभाजित किया गया. आरएनबी इन्टरवेंशन ग्रुप के मरीजों को राज निर्वाण बटी (आरएनबी) दवा दी गयी तथा प्लेसिबो कन्ट्रोल ग्रुप को आरएनबी नहीं दी गई. इन दोनों स्टडी ग्रुपों के मरीजों को स्टैन्डर्ड ट्रीटमेंट प्रोटोकाॅल के अंतर्गत हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन, एण्टीबाॅयटिक्स, एन्टीकोग्युलेन्ट्स, स्ट्रोयड तथा विटामिन्स इत्यादि भी दिए गये. इस प्रयोग की खास बात यह रही कि आरएनबी ग्रुप के 60 प्रतिशत मरीजों में कोमाॅर्बिड कन्डिशन्स जैसे कि डायबिटिज, ब्लड प्रेशर, कोरोनरी हार्ट डिजिज, अस्थमा, कैंसर, हेड इंजरी के भी थे. इसकी तुलना में प्लेसिबो ग्रुप में सिर्फ 23 प्रतिशत मरीजों में कोमाॅर्बिड कन्डिशसन्स थे. इसके बावजूद आरएनबी ग्रुप के मरीजों के स्वास्थ्य में व्यापक सुधार देखने को मिला.
आरसीटी के सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण निष्कर्ष, जिनका अध्ययन यह है कि-
- आरएनबी ग्रुप के 97 प्रतिशत मरीज 06 दिनों में और शत प्रतिशत मरीज 12 दिनों में आरटीपीसीआर निगेटिव हो गए, जबकि प्लेसिबो ग्रुप में 73 प्रतिशत मरीज 06 दिनों में और 90 प्रतिशत मरीज 12 दिनों में निगेटिव हुए.
- आरएनबी ग्रुप के मरीजों को बीमारी के 08 लक्षणों में मात्र औसतन 5.9 दिनों में आराम मिल गया, जबकि प्लेसिबो ग्रुप के मरीजों को औसतन 7.1 दिनों में आराम मिला. इन लक्षणों में बुखार, कफ, गले में खराश, सांस फूलना, छाती में भारीपन होना, थकान, बदन दर्द एवं स्वाद कम होना आदि देखे गए.
- आरएनबी ग्रुप के 89 प्रतिशत मरीजों में छाती के एक्स-रे में सुधार देखने को मिला, जबकि प्लेसिबो ग्रुप के सिर्फ 57 प्रतिशत मरीजों में एक्स-रे में सुधार दिखा.
- आरएनबी ग्रुप के मरीजों में प्लेटलेट काउन्ट के बढ़त की दर (43 प्रतिशत 06 दिनों में और 80 प्रतिशत 12 दिनों में) प्लेसिबो ग्रुप के मरीजों (28 प्रतिशत 06 दिनों में और 75 प्रतिशत 12 दिनों में) से ज्यादा पायी गयी, जो कि सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है.
इस दवा का नहीं है साइड इफेक्ट
कई अन्य हीमेटोलाॅजिकल एवं बायोकैमिकल पैरामीटरस जैसे- हीमोग्लोबिन, लिम्फोसाइट, यूरिया, क्रियेटिनीन, बाइलिरूबिन, कई लीवर एन्जाॅइम्स, आईएनआर इत्यादि इस आरसीटी के दौरान सामान्य अनुपात में रहे. इससे यह स्पष्ट होता है कि आरएनबी का लीवर, किडनी के साथ ही ब्लड इत्यादि पर कोई भी प्रतिकूल असर नहीं है और यह बेहद सुरक्षित औषधि है. इस सफल आरसीटी और इससे पूर्व किए गए पायलट स्टडी एवं सिंगल आर्म ट्रायल से साधारण, मध्यम एवं गंभीर लक्षणों वाले कोविड-19 संक्रमित मरीजों के इलाज में आरएनबी की सुरक्षित एवं प्रभावकारी भूमिका की पुष्टि हो गई है. इन सभी शोध कार्यों के परिणामों को आईसीएमआर एवं सेन्ट्रल काॅउन्सिल फाॅर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज (सीसीआरएएस, आयुष मंत्रालय) भेज दिया गया है, जिससे कि इस महामारी से जूझ रहे भारत समेत पूरे विश्व को आरएनबी नामक संजीवनी का फायदा मिल सके.
आयुर्वेदिक नहीं है एलोवेदिक है दवा
राज निर्वाण बटी (आरएनबी) पर विस्तार से चर्चा करते हुए विश्वविद्यायल के कुलपति प्रो. डॉ. राजकुमार ने बताया कि वर्तमान में आरएनबी में कुल 11 आयुर्वेदिक दवाओं के घटक हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि पूरे विश्व में कोरोना पर अभी किसी प्रकार की दवा इजाद नहीं हुई है. देश में कोविड-19 आने के साथ ही विश्वविद्यालय ने कोराना के सम्बन्ध में रिसर्च करना शुरू कर दिया था. विश्वविद्यालय में कोविड-19 से सम्बन्धित 25 से अधिक शोध-पत्र जारी किए गये हैं तथा अधिकांश प्रकाशित भी हो गये हैं. इन शोध कार्यों में यह देखा गया कि कोरोना शरीर के किन-किन हिस्सों पर पहले अटैक करता है, जिसकी वजह से कोविड मरीज की मौत भी हो सकती है. इसके बाद प्राचीन चिकित्सा की उन दवाओं को लिया गया जो इन सिस्टम के लिए कारगर है. इसके पश्चात् इन प्राचीन दवाओं पर आधुनिक चिकित्सा में हुए शोधों को देखा गया. इस बात का विशेष ध्यान दिया गया कि कोरोना शरीर के किन भागों पर अटैक करता है और प्राचीन चिकित्सा में कौन सी दवाएं हैं, जो इन जगहों को प्रोटेक्ट कर सकती हैं.
इस महत्वपूर्ण रिसर्च के लिए विश्वविद्यालय द्वारा आयुर्वेदाचार्य की मदद भी ली गई. इसके बाद आरएनबी समकालिक आधुनिक मेडिसिन के सभी वैज्ञानिक मापदंडों पर किए गए टेस्ट एवं रिसर्च में सफल पाया गया है, इसलिए इसे ‘एलोवैदिक‘ औषधि का नाम दिया है, जबकि इसमें आयुर्वेद के प्रमाणित घटकों का समिश्रण है.