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डॉक्टर बहू ने बंजर भूमि पर उगा दी स्ट्रॉबेरी, हो रहा अच्छा मुनाफा - एटा ताजा खबर

एटा के निधौली कला ब्लॉक के गांव बाबसा की रहने डॉ. दिपाली ने अपने खेत में स्ट्रॉबेरी की खेती की है जो कि अपने आप में जिले के लिए मिसाल है. उन्होंने बंजर भूमि में स्ट्रॉबेरी की खेती करके दिखा दिया है कि महिलाएं पुरुषों से बिल्कुल भी कम नहीं है. वहीं अब स्ट्रॉबेरी की खेती से अच्छी कमाई भी हो रही है.

डॉक्टर बहू ने बंजर भूमि पर उगा दी स्ट्रॉबेरी.
डॉक्टर बहू ने बंजर भूमि पर उगा दी स्ट्रॉबेरी.
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Published : Feb 12, 2021, 12:22 PM IST

एटा: पीएम मोदी द्वारा देश में चलाए जा रहे 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मिशन शक्ति' अभियान की मिसाल एटा में एक डॉक्टर बहू ने पेश की है. जिले के निधौली कला ब्लॉक के गांव बाबसा की रहने वाली डॉक्टर बहू दीपाली ने उस बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी की फसल उगा दी, जिस भूमि पर कोई फसल नहीं होती थी.

डॉक्टर बहू ने बंजर भूमि पर उगा दी स्ट्रॉबेरी.

जिले के निधौली कला ब्लॉक के गांव बाबसा की रहने वाली डॉ. दीपाली अपने पति डॉक्टर जसवंत सिंह के साथ दिल्ली में होम्योपैथिक का क्लीनिक चलाती हैं. दोनों पति-पत्नी ने डॉक्टरी की पढ़ाई साथ साथ की थी. उसके बाद दिल्ली में अपना क्लिनिक खोल लिया था. लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही दीपाली अपने पिता तानाजी राव के साथ मायके पुणे महाराष्ट्र में गई थी. वहां कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में 2 महीने तक पुणे में फंसी रहीं. वहां फंसे रहने के चलते डॉ. दीपाली ने स्ट्रॉबेरी की खेती करने की जानकारी जुटाई और अपनी ससुराल में फसल उगाने की ठान ली. ससुराल पहुंचते ही अक्टूबर में मार्केट से स्ट्रॉबेरी के बीज लाकर पौध तैयार की. 12 बीघा बंजर भूमि में जैविक खाद का उपयोग कर पौधारोपण कर दिया. उसके बाद फसल की जंगली जानवरों से रखरखाव के लिए खेतों के चारों ओर बैरिकेडिंग भी लगाई. वहीं जनवरी में फल आना शुरू हो गए. अब स्ट्रॉबेरी की फसल को अच्छे दामों में आगरा कानपुर और दिल्ली के बाजारों में बेचा जा रहा है.

लॉकडाउन में शुरू की खेती
डॉ दीपाली ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन से 2 महीने पहले ही अपने पिताजी तनाजीराव के साथ अपने मायके महाराष्ट्र (पुणे) गई हुई थी. लॉकडाउन के कारण वहां मैं फस गई. उन्होंने बताया कि हमारे मायके में कई वर्षों से स्ट्रॉबेरी की फसल हो रही थी, जिससे अच्छा मुनाफा हो रहा था. वहां फंसे होने के कारण मेरे मन में विचार आया कि क्यों न स्ट्रौबरी की खेती उत्तर प्रदेश में की जाए. उसके बाद यहां दो माह तक खेती करने का प्रशिक्षण लिया. फिर वहां से अपनी ससुराल एटा आने के बाद अक्टूबर में स्ट्रॉबेरी की पौध तैयार की. उसके बाद 12 बीघा बंजर भूमि जिसमें फसल सही से नहीं होती थी,उस भूमि को जैविक खाद से तैयार किया और 56 हजार पौधों का रोपण किया. स्ट्रॉबेरी की पौध बहुत बहुत कमजोर होती है. इसकी बहुत देखभाल भी करनी पड़ती है. इस फसल को तैयार करने में लगभग 9 लाख रुपये की लागत आई. अब हमारी फसल पूरी तरह से पक चुकी है. जिसे 2 किलो स्ट्रॉबेरी का डब्बा तैयार कर पैक करके दिल्ली, कानपुर और आगरा के बाजारों में बेचा जा रहा है. हमें उम्मीद है कि इस फसल से हमें लगभग दोगुना मुनाफा होगा.

गांव से लगभग 4 किमी दूर जंगल में है खेत
डॉ. दीपाली ने बताया कि हमारा खेत जिसमें स्ट्रॉबेरी उगाई गई है. वह हमारे गांव बाबसा से लगभग 4 किलोमीटर दूर नहर के किनारे जंगल में है. जहां दूर-दूर तक जंगल जैसा माहौल है और आस-पास बहुत कम खेती होती है. जंगली जानवरों से फसल के बचाव के लिए खेत के चारों तरफ बैरिकेट्स कराया गया है. रात में रखवाली के लिए यहां दो लोगों को रखा जाता है.

पानी की भी है समस्या
उन्होंने बताया कि खेत में पानी लगाने के लिए बहुत बड़ी समस्या है. पौधारोपण से पहले ड्रिप के लिए आवेदन किया गया था. उसका अभी तक कोई निराकरण नहीं हुआ है. प्रशासन की लापरवाही के चलते मजबूरन हमें डीजल इंजन लगाकर खेत में सिंचाई करनी पड़ रही है.

सड़क खराब होने के चलते आने-जाने में समस्या
उन्होंने बताया कि एटा आगरा रोड से नदी के किनारे एक पुरानी सड़क बनी हुई है, जो अब गड्ढों में तब्दील हो चुकी है. खेत तक आने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जबकि प्रशासन भी हमारे खेत पर फसल देखने के लिए आ चुका है. माल लोडिंग के बाद बहुत परेशानी होती है.

आत्मनिर्भर बनने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा
दीपाली ने कहा कि सरकार की मुहिम आत्मनिर्भर भारत और महिला सशक्तिकरण को लेकर महिलाओं को स्वयं आगे आना चाहिए. नए नए क्षेत्रों में नया-नया कार्य करने की क्षमता महिलाओं में है. वहीं हुनर दिखाते हुए महिलाओं को कुछ न कुछ करना चाहिए. मेरे सामने भी बहुत समस्याएं आई थी. जब हम गांव में खेती करने आए थे, तो यहां के लोग काफी बातें करने लगे थे कि एक गांव की महिला कैसे खेतों में काम करेगी या करवाएगी. फिर भी हमने हार न मानी और आज 12 बीघा बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी की फसल उगाकर अच्छा मुनाफा कमाने की तरफ अग्रसर है.

ससुर को अपनी बहू पर है गर्व
डॉ. दीपाली के ससुर रतनलाल एक रिटायर्ड सरकारी अध्यापक हैं. उन्होंने बताया कि हमारे बहू-बेटे दोनो डॉक्टर हैं. दिल्ली में क्लिनिक भी चलाते हैं. कोरोना के समय एक दिन बहू का फोन आया कि पिता जी हमें स्ट्रॉबेरी की खेती करनी है. उनके द्वारा बताने के बाद हमने तुरंत खेती करने के लिए हां कर दी. बहू के हौसले को देखते हुए मुझमें भी हौसला जागा. गांव में मेरी बहू को लेकर लोग बाते करते थे, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और बहू के साथ पूरा सहयोग किया. आज हम एक अच्छे मुनाफे की तरफ हैं. ऐसे ही और महिलाओं को आगे आना चाहिए.

एटा: पीएम मोदी द्वारा देश में चलाए जा रहे 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मिशन शक्ति' अभियान की मिसाल एटा में एक डॉक्टर बहू ने पेश की है. जिले के निधौली कला ब्लॉक के गांव बाबसा की रहने वाली डॉक्टर बहू दीपाली ने उस बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी की फसल उगा दी, जिस भूमि पर कोई फसल नहीं होती थी.

डॉक्टर बहू ने बंजर भूमि पर उगा दी स्ट्रॉबेरी.

जिले के निधौली कला ब्लॉक के गांव बाबसा की रहने वाली डॉ. दीपाली अपने पति डॉक्टर जसवंत सिंह के साथ दिल्ली में होम्योपैथिक का क्लीनिक चलाती हैं. दोनों पति-पत्नी ने डॉक्टरी की पढ़ाई साथ साथ की थी. उसके बाद दिल्ली में अपना क्लिनिक खोल लिया था. लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही दीपाली अपने पिता तानाजी राव के साथ मायके पुणे महाराष्ट्र में गई थी. वहां कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में 2 महीने तक पुणे में फंसी रहीं. वहां फंसे रहने के चलते डॉ. दीपाली ने स्ट्रॉबेरी की खेती करने की जानकारी जुटाई और अपनी ससुराल में फसल उगाने की ठान ली. ससुराल पहुंचते ही अक्टूबर में मार्केट से स्ट्रॉबेरी के बीज लाकर पौध तैयार की. 12 बीघा बंजर भूमि में जैविक खाद का उपयोग कर पौधारोपण कर दिया. उसके बाद फसल की जंगली जानवरों से रखरखाव के लिए खेतों के चारों ओर बैरिकेडिंग भी लगाई. वहीं जनवरी में फल आना शुरू हो गए. अब स्ट्रॉबेरी की फसल को अच्छे दामों में आगरा कानपुर और दिल्ली के बाजारों में बेचा जा रहा है.

लॉकडाउन में शुरू की खेती
डॉ दीपाली ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन से 2 महीने पहले ही अपने पिताजी तनाजीराव के साथ अपने मायके महाराष्ट्र (पुणे) गई हुई थी. लॉकडाउन के कारण वहां मैं फस गई. उन्होंने बताया कि हमारे मायके में कई वर्षों से स्ट्रॉबेरी की फसल हो रही थी, जिससे अच्छा मुनाफा हो रहा था. वहां फंसे होने के कारण मेरे मन में विचार आया कि क्यों न स्ट्रौबरी की खेती उत्तर प्रदेश में की जाए. उसके बाद यहां दो माह तक खेती करने का प्रशिक्षण लिया. फिर वहां से अपनी ससुराल एटा आने के बाद अक्टूबर में स्ट्रॉबेरी की पौध तैयार की. उसके बाद 12 बीघा बंजर भूमि जिसमें फसल सही से नहीं होती थी,उस भूमि को जैविक खाद से तैयार किया और 56 हजार पौधों का रोपण किया. स्ट्रॉबेरी की पौध बहुत बहुत कमजोर होती है. इसकी बहुत देखभाल भी करनी पड़ती है. इस फसल को तैयार करने में लगभग 9 लाख रुपये की लागत आई. अब हमारी फसल पूरी तरह से पक चुकी है. जिसे 2 किलो स्ट्रॉबेरी का डब्बा तैयार कर पैक करके दिल्ली, कानपुर और आगरा के बाजारों में बेचा जा रहा है. हमें उम्मीद है कि इस फसल से हमें लगभग दोगुना मुनाफा होगा.

गांव से लगभग 4 किमी दूर जंगल में है खेत
डॉ. दीपाली ने बताया कि हमारा खेत जिसमें स्ट्रॉबेरी उगाई गई है. वह हमारे गांव बाबसा से लगभग 4 किलोमीटर दूर नहर के किनारे जंगल में है. जहां दूर-दूर तक जंगल जैसा माहौल है और आस-पास बहुत कम खेती होती है. जंगली जानवरों से फसल के बचाव के लिए खेत के चारों तरफ बैरिकेट्स कराया गया है. रात में रखवाली के लिए यहां दो लोगों को रखा जाता है.

पानी की भी है समस्या
उन्होंने बताया कि खेत में पानी लगाने के लिए बहुत बड़ी समस्या है. पौधारोपण से पहले ड्रिप के लिए आवेदन किया गया था. उसका अभी तक कोई निराकरण नहीं हुआ है. प्रशासन की लापरवाही के चलते मजबूरन हमें डीजल इंजन लगाकर खेत में सिंचाई करनी पड़ रही है.

सड़क खराब होने के चलते आने-जाने में समस्या
उन्होंने बताया कि एटा आगरा रोड से नदी के किनारे एक पुरानी सड़क बनी हुई है, जो अब गड्ढों में तब्दील हो चुकी है. खेत तक आने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जबकि प्रशासन भी हमारे खेत पर फसल देखने के लिए आ चुका है. माल लोडिंग के बाद बहुत परेशानी होती है.

आत्मनिर्भर बनने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा
दीपाली ने कहा कि सरकार की मुहिम आत्मनिर्भर भारत और महिला सशक्तिकरण को लेकर महिलाओं को स्वयं आगे आना चाहिए. नए नए क्षेत्रों में नया-नया कार्य करने की क्षमता महिलाओं में है. वहीं हुनर दिखाते हुए महिलाओं को कुछ न कुछ करना चाहिए. मेरे सामने भी बहुत समस्याएं आई थी. जब हम गांव में खेती करने आए थे, तो यहां के लोग काफी बातें करने लगे थे कि एक गांव की महिला कैसे खेतों में काम करेगी या करवाएगी. फिर भी हमने हार न मानी और आज 12 बीघा बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी की फसल उगाकर अच्छा मुनाफा कमाने की तरफ अग्रसर है.

ससुर को अपनी बहू पर है गर्व
डॉ. दीपाली के ससुर रतनलाल एक रिटायर्ड सरकारी अध्यापक हैं. उन्होंने बताया कि हमारे बहू-बेटे दोनो डॉक्टर हैं. दिल्ली में क्लिनिक भी चलाते हैं. कोरोना के समय एक दिन बहू का फोन आया कि पिता जी हमें स्ट्रॉबेरी की खेती करनी है. उनके द्वारा बताने के बाद हमने तुरंत खेती करने के लिए हां कर दी. बहू के हौसले को देखते हुए मुझमें भी हौसला जागा. गांव में मेरी बहू को लेकर लोग बाते करते थे, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और बहू के साथ पूरा सहयोग किया. आज हम एक अच्छे मुनाफे की तरफ हैं. ऐसे ही और महिलाओं को आगे आना चाहिए.

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