एटा: एटा से महज 12 किलोमीटर दूर स्थित हिम्मतनगर बझेरा मिट्टी के टीले के रूप में रह गया है. लगभग सवा 200 साल पहले यहां एक आलीशान महल था. यह स्थल 19वीं सदी तक मराठाओं की ओर से नवाब फर्रुखाबाद से चौथ वसूलने वाले महाराजा हिम्मत सिंह की रियासत थी. हिम्मतनगर बझेरा कभी चौहानों के राज्य का स्तंभ कहा जाता था. यह जगह अपने अंदर इतिहास की एक ऐसी कथा समेटे है जो इस राज्य के उत्थान और पतन की कहानी है. सन 1857 में यहां के राजा डंबर सिंह ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे, जबकि उनके दादा हिम्मत सिंह ब्रितानी हुकूमत को सालाना लाखों रुपये राजस्व देते थे.
खंडहर में तब्दील हुआ हिम्मतनगर बझेरा का किला. खंडहर में तब्दील हिम्मतनगर किला हिम्मतनगर बझेरा में एक बड़ा सा मिट्टी का टीला और मंदिर दिखाई पड़ता है. 18 वीं सदी में महाराजा हिम्मत सिंह यहां के राजा थे. उन्होंने साल 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी के जनरल लार्ड लेक की अगुवाई में अंग्रेजों से समझौता किया था. उन्होंने ही इस किले का निर्माण कराया था. महाराजा हिम्मत सिंह के पूर्वज यहां आकर बसे थे 16 वीं सदी में सिकंदर लोदी के हाथों पतन के बाद बिलराम के चौहान राजवंश के प्रताप सिंह ने एटा के समीप पहोर नामक गांव को अपना ठिकाना बनाया. इनके पुत्र संग्राम सिंह ने एटा नगर की स्थापना कर यहां अपनी गढ़ी बनाई. इन्हीं संग्राम सिंह की छठी पीढ़ी के हिम्मत सिंह ने 1803 ई. में अंग्रेजों से समझौता कर इस किले का निर्माण कराया. इस किले में हिम्मत सिंह के बाद उनके पुत्र मेघ सिंह 1812 ई. से 1849 ई. तक रहे. इसके बाद उनके पौत्र डम्बर सिंह यहां के शासक हुए जो अट्ठारह सौ सत्तावन के संग्राम में अंग्रेजी फौज से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. खंडहर में तब्दील हुआ हिम्मतनगर बझेरा का किला. हिम्मतनगर का गौरवशाली इतिहास एटा जिले व उसके आसपास कई गांव हिम्मतनगर व हिम्मतपुर नाम से आज भी मौजूद हैं. यदि एटा के आसपास चारों ओर बसे हिम्मतनगर और हिम्मतपुर गांव को इस राज्य की सीमा माना जाए तो करीब 200 वर्ग मील का राज्य दिखाई देता है. हिम्मत सिंह के पास इसके अलावा मराठों से मिले पटियाली तहसील के 27 गांव के तालुका हिम्मतनगर बझेरा का भी स्वामित्व था. यह तालुका उन्हें फर्रुखाबाद के बंगश नवाब से मराठों को दी जाने वाली चौथ की वसूली में होने वाले व्यय की प्रतिपूर्ति में मिला था. इस तालुका से हर साल 5 हजार रूपये राजस्व प्राप्त होता था. हिम्मत सिंह के 1803 में लार्ड लेक के साथ हुए समझौते के बाद अंग्रेजों ने भी उनके राज्य में बरकरार रखे थे. जब अंग्रेजों ने ध्वस्त किया हिम्मतनगर राज्य
अपने वैभव को देखने के बाद अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में इस किले का दुखद अंत हो गया. देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में यहां के शासक महाराजा डंबर सिंह ने वीरगति प्राप्त की. 1857 में अंग्रेजों ने जीत के बाद तोपों से इस किले को ध्वस्त करा दिया. साथ ही इसकी सारी जमीन को गधों से जुतवा दिया था. इस किले का फाटक उतार कर एटा जेल में लगवा दिया गया. डंबर सिंह की पत्नी को गुजारे भत्ते के लिए 11 गांव देकर उनकी पूरी संपत्ति जब्त कर ली गई.