एटा: मिट्टी को नया आकार देकर दीपक और बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को अपना पुश्तैनी काम छोड़कर मजदूरी करनी पड़ रही है. इसमें सबसे बुरी स्थिति महिलाओं और बच्चों की है. प्लास्टिक और चाइनीज वस्तुओं की बाजार में मांग बढ़ने से मिट्टी के बर्तन और दीयों की मांग काफी घट गई है. इससे दीपावली में दीयों की बिक्री पर काफी असर पड़ा है. इस वजह से इन लोगों को घर का खर्च चलाना तो दूर दीपक बनाने में लगने वाली लागत भी नहीं निकल पा रही है.
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कुम्हारों को छोड़ना पड़ रहा अपना पुश्तैनी काम
दीपावली के त्योहार पर आस लगाए बैठे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों को एक बार फिर मायूसी ही दिखाई पड़ रही है. एटा के पटियाली गेट पर रहने वाले कई कुम्हारों के जीवन में इस दीपावली पर भी कुछ खास उजाला होता हुआ नहीं दिखाई पड़ रहा है.
बाजार में वन टाइम यूज्ड प्लास्टिक बंद होने के बाद भी मिट्टी के बर्तन और दीयों में कुछ खास बिक्री न होने से परेशान कुम्हार अन्य कामों को करने के लिए मजबूर हैं. बताया जा रहा है कि अभी भी बाजार में प्लास्टिक और चाइनीज वस्तुओं की धूम है, जिससे मिट्टी के बर्तनों की पूछ न के बराबर है.
वहीं लोगों को दीपावली पर दीयों की रोशनी से ज्यादा चाइनीज आइटम की चमक ज्यादा भा रही है. मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने वालों का कहना है कि यदि प्लास्टिक और चाइनीज आइटम पूरी तरीके से बंद हो जाए तो उनका यह पुश्तैनी काम भी बच जाएगा. साथ ही दाल-रोटी भी चलती रहेगी.