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भिखारी बन गए न्याय की भीख मांगने वाले सीताराम - Elder fighting case by begging in Deoria

जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे सीताराम को अपने हिस्से की जमीन पाने के लिए भीख मांग कर मुकदमा लड़ना पड़ रहा है. अंधे कानून की चौकठ पर करीब एक दशक से न्याय की भीख मांग रहे हैं, लेकिन इस बेसहारा बुजुर्ग का सुनने वाला कोई नहीं है.

खंजड़ी बजाकर अपना दुख सुनाते हैं सीताराम
खंजड़ी बजाकर अपना दुख सुनाते हैं सीताराम
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Published : Feb 12, 2021, 5:06 AM IST

Updated : Feb 12, 2021, 5:24 AM IST

देवरिया: जिले में रुद्रपुर तहसील के लबकनी गांव निवासी सीताराम चौहान को असम राज्य से आने के बाद दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं. असम में ही उन्होंने आरती से विवाह कर लिया था. उनके अमर और कमल दो बच्चे हुए, लेकिन उनकी वहीं पर मृत्यु हो गई. 15 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर आसाम गए सीताराम चौहान करीब 48 साल बाद 73 की उम्र में गांव लौटे तो पता चला कि उनकी कागज में मौत हो गई है. उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी. सीताराम चौहान को अभिलेखों में खुद को जिंदा करना पड़ा. परिवार रजिस्टर में नाम दर्ज कराना पड़ा.

खंजड़ी बजाकर अपना दुख सुनाते हैं सीताराम

पैतृक संपत्ति हड़प ली गई

सीताराम चौहान ने भतीजों से अपना हक मांगा तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया, जिसके बाद सीताराम बेघर हो गए. सीताराम ने बताया कि अब वह खंजड़ी बजाकर लोगों से सहयोग मांग कर पेट पलते हैं और मुकदमा भी लड़ते हूैं. बुजुर्ग का कहना है कि "मेरी पैतृक संपत्ति गलत तरीके से हड़प ली गई है. अब तक 16 हजार रुपए भीख मांगकर मुकदमे में खर्च कर चुका हूं."

गलत धारा में मुकदमा दाखिल

चकबंदी अधिकारी प्रथम पंकज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 2014 से कोर्ट में मुकदमा चल रहा है. बुजुर्ग हर तारीख पर आते हैं. गलत धारा में मुकदमा दाखिल किया गया है. जल्द ही मुकदमे का निस्तारण कर दिया जाएगा. लबकनी की निवर्तमान प्रधान वीना सिंह ने बताया कि "सीताराम के गायब होने पर चकबंदी के पूर्व ही पैतृक संपत्ति उनके भाई को मिल गई थी. बीस साल पहले गांव आने पर दो डिसमिल आवासीय पट्टा दिया गया है, जिस पर वह पत्नी के साथ रहते हैं."

'अफसर भी नहीं सुनते हैं'

सीताराम सुबह घर से देवरिया के लिए निकल जाते हैं. हाथ मे झोला, झोले में खंजड़ी और अपने जमीन से जुडे अभिलेख रखे रहते है. उनका कहना है कि प्राइवेट वाहन वाले उनकी स्थिति को जानते हैं और किराया नहीं लेते हैं. दिनभर खंजड़ी बजाकर वह लोगों से भीख मांगते हैं. उन्होंने बताया कि "अफसर भी नहीं सुनते हैं, कलेक्ट्रेट में डीएम कार्यालय से थोड़ी दूरी पर बैठकर अपनी जिंदगी की कहानी को खंजड़ी बजाकर सुनाता हूं"

देवरिया: जिले में रुद्रपुर तहसील के लबकनी गांव निवासी सीताराम चौहान को असम राज्य से आने के बाद दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं. असम में ही उन्होंने आरती से विवाह कर लिया था. उनके अमर और कमल दो बच्चे हुए, लेकिन उनकी वहीं पर मृत्यु हो गई. 15 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर आसाम गए सीताराम चौहान करीब 48 साल बाद 73 की उम्र में गांव लौटे तो पता चला कि उनकी कागज में मौत हो गई है. उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी. सीताराम चौहान को अभिलेखों में खुद को जिंदा करना पड़ा. परिवार रजिस्टर में नाम दर्ज कराना पड़ा.

खंजड़ी बजाकर अपना दुख सुनाते हैं सीताराम

पैतृक संपत्ति हड़प ली गई

सीताराम चौहान ने भतीजों से अपना हक मांगा तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया, जिसके बाद सीताराम बेघर हो गए. सीताराम ने बताया कि अब वह खंजड़ी बजाकर लोगों से सहयोग मांग कर पेट पलते हैं और मुकदमा भी लड़ते हूैं. बुजुर्ग का कहना है कि "मेरी पैतृक संपत्ति गलत तरीके से हड़प ली गई है. अब तक 16 हजार रुपए भीख मांगकर मुकदमे में खर्च कर चुका हूं."

गलत धारा में मुकदमा दाखिल

चकबंदी अधिकारी प्रथम पंकज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 2014 से कोर्ट में मुकदमा चल रहा है. बुजुर्ग हर तारीख पर आते हैं. गलत धारा में मुकदमा दाखिल किया गया है. जल्द ही मुकदमे का निस्तारण कर दिया जाएगा. लबकनी की निवर्तमान प्रधान वीना सिंह ने बताया कि "सीताराम के गायब होने पर चकबंदी के पूर्व ही पैतृक संपत्ति उनके भाई को मिल गई थी. बीस साल पहले गांव आने पर दो डिसमिल आवासीय पट्टा दिया गया है, जिस पर वह पत्नी के साथ रहते हैं."

'अफसर भी नहीं सुनते हैं'

सीताराम सुबह घर से देवरिया के लिए निकल जाते हैं. हाथ मे झोला, झोले में खंजड़ी और अपने जमीन से जुडे अभिलेख रखे रहते है. उनका कहना है कि प्राइवेट वाहन वाले उनकी स्थिति को जानते हैं और किराया नहीं लेते हैं. दिनभर खंजड़ी बजाकर वह लोगों से भीख मांगते हैं. उन्होंने बताया कि "अफसर भी नहीं सुनते हैं, कलेक्ट्रेट में डीएम कार्यालय से थोड़ी दूरी पर बैठकर अपनी जिंदगी की कहानी को खंजड़ी बजाकर सुनाता हूं"

Last Updated : Feb 12, 2021, 5:24 AM IST
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