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2018 में ओडीएफ घोषित हुआ जिला, फिर भी खुले में शौच जाने को मजबूर ग्रामीण

जिले को नवंबर 2018 में ओडीएफ जिला घोषित कर दिया गया है, लेकिन आज भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. वहीं अधिकारियों का कहना है कि जहां शिकायतें मिल रही हैं, वहां जांच कराई जा रही है.

खुले में शौच जाने को मजबूर ग्रामीण
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Published : Mar 9, 2019, 2:20 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST

बुलंदशहर : सरकार स्वच्छ भारत योजना पर करोंड़ों रुपये खर्च कर रही है, पर इसकी हकीकत कुछ और ही है. जिले को नवंबर 2018 में ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त जिला घोषित कर दिया गया है, लेकिन आज भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. वहीं अधिकारी जांच करने की बात कह रहे हैं.

खुले में शौच जाने को मजबूर ग्रामीण.

जिम्मेदार अधिकारियों ने जिले को खुले में शौचमुक्त करने के लिए डेडलाइन तय की थी, जो 2 अक्टूबर 2018 की थी. हालांकि जिम्मेदार अफसरों ने सिर्फ अपना वादा निभाने के इरादे से जल्दबाजी में नवंबर 2018 में बुलंदशहर को ओडीएफ घोषित कर दिया. जिले को ओडीएफ घोषित किया गया था, तब से लगातार ईटीवी भारत ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल कर रहा है और हर बार जिम्मेदार अधिकारी खुद को सुरक्षित बचाकर जांच कराने का आश्वासन भी कैमरे के सामने देते दिखे.

इस बार भी ईटीवीभारतने पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जिले में जो शौचालय बनाए गए हैं, वो मानक के मुताबिक नहीं हैं. वहीं गांव के लोग इसका प्रयोग गोदाम के तौर पर कर रहे है. यह नजारा एक, दो या तीन शौचालयों का नहीं, बल्कि कई घरों का है. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि मानक के मुताबिक न होने पर उन्होंने शौचालयों को सिर्फ घर के जरूरी सामान रखने के लिए उपयोग में लेना शुरू कर दिया है. शौचालय पूरे जिले के हर पात्र के घर में बने भी नहीं हैं.

नियमानुसार पहले गांवों में प्रधान अपने स्तर से शौचालय निर्माण कराते थे, बाद में सरकार से आवंटित पैसा प्रधान और पंचायत सेक्रेटरी के माध्यम से लाभार्थी के सीधे खाते में पहुंचाते थे. शौचालयों का पूरी तरह से अब तक भी निर्माण नहीं हो सका. ईटीवीभारतने जब ग्रामीणों से इस बारे में बात की तो मामला कुछ और ही निकला. कुछ लोग तो सरकार से शौचालय के लिए दी जानी वाली रकम को ही अपर्याप्त बताया.

पंचायती राज विभाग के अधिकारी अमरजीत सिंह का कहना है कि जहां शिकायतें मिल रही हैं, वहां जांच कराई जा रही है. डीपीआरओ का कहना है कि खुले में शौच को जाने वाली प्रथा काफी लंबे समय से चली आ रही है और इसे एकदम से अमल में लाने में दिक्कते आ रही हैं. लोगो को जागरूक करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं स्वच्छताग्राही बनाए गए हैं, जो ऐसे लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

बुलंदशहर : सरकार स्वच्छ भारत योजना पर करोंड़ों रुपये खर्च कर रही है, पर इसकी हकीकत कुछ और ही है. जिले को नवंबर 2018 में ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त जिला घोषित कर दिया गया है, लेकिन आज भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. वहीं अधिकारी जांच करने की बात कह रहे हैं.

खुले में शौच जाने को मजबूर ग्रामीण.

जिम्मेदार अधिकारियों ने जिले को खुले में शौचमुक्त करने के लिए डेडलाइन तय की थी, जो 2 अक्टूबर 2018 की थी. हालांकि जिम्मेदार अफसरों ने सिर्फ अपना वादा निभाने के इरादे से जल्दबाजी में नवंबर 2018 में बुलंदशहर को ओडीएफ घोषित कर दिया. जिले को ओडीएफ घोषित किया गया था, तब से लगातार ईटीवी भारत ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल कर रहा है और हर बार जिम्मेदार अधिकारी खुद को सुरक्षित बचाकर जांच कराने का आश्वासन भी कैमरे के सामने देते दिखे.

इस बार भी ईटीवीभारतने पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जिले में जो शौचालय बनाए गए हैं, वो मानक के मुताबिक नहीं हैं. वहीं गांव के लोग इसका प्रयोग गोदाम के तौर पर कर रहे है. यह नजारा एक, दो या तीन शौचालयों का नहीं, बल्कि कई घरों का है. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि मानक के मुताबिक न होने पर उन्होंने शौचालयों को सिर्फ घर के जरूरी सामान रखने के लिए उपयोग में लेना शुरू कर दिया है. शौचालय पूरे जिले के हर पात्र के घर में बने भी नहीं हैं.

नियमानुसार पहले गांवों में प्रधान अपने स्तर से शौचालय निर्माण कराते थे, बाद में सरकार से आवंटित पैसा प्रधान और पंचायत सेक्रेटरी के माध्यम से लाभार्थी के सीधे खाते में पहुंचाते थे. शौचालयों का पूरी तरह से अब तक भी निर्माण नहीं हो सका. ईटीवीभारतने जब ग्रामीणों से इस बारे में बात की तो मामला कुछ और ही निकला. कुछ लोग तो सरकार से शौचालय के लिए दी जानी वाली रकम को ही अपर्याप्त बताया.

पंचायती राज विभाग के अधिकारी अमरजीत सिंह का कहना है कि जहां शिकायतें मिल रही हैं, वहां जांच कराई जा रही है. डीपीआरओ का कहना है कि खुले में शौच को जाने वाली प्रथा काफी लंबे समय से चली आ रही है और इसे एकदम से अमल में लाने में दिक्कते आ रही हैं. लोगो को जागरूक करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं स्वच्छताग्राही बनाए गए हैं, जो ऐसे लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

Intro:यूं तो बुलंदशहर जनपद पिछले साल नवंबर में ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त जिला घोषित हो गया था ,इस जिले की पोल खोलती है हमारी ये रिपोर्ट, इतना ही नहीं आदत से मजबूर लोगों की आदतें भी यहां नहीं बदली, शौचालय जिस उद्देश्य से बने भी हैं उनका भी इस्तेमाल कुछ दूसरे ही रूप में इस जिले में तो होता देखा जा सकता है।तो वहीं तमाम शिकायतें हैं जहां अभी भी टॉयलेट नहीं हैं, पीएम मोदी के स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोलती है इटीवी की ये सुपर एक्सक्लुसिव ग्राउंड जीरो रिपोर्ट।

कृपया निवेदन करना है कि कुछ आवश्यक विसुअल और जिला पंचायती राज अधिकारी की बाइट एफटीपी से सिंगल id के साथ प्रेषित है।

नीचे दी गयी स्पेलिंग के साथ भेजी गई है।

toilet reality check09-03-19

धन्यवाद।



Body:यह जो एक साफ सुथरा और रंगा पुता शौचालय आप देख रहे हैं, ये बुलंदशहर के विकास भवन में डेमो शौचालय है जो कि यह दिखाने के लिए बनाया गया है कि भारत सरकार जो पैसा खर्च कर रही है, इस योजना के तहत उसमें यह सारी बुनियादी चीजें उस शौचालय में होनी चाहियें ,जिम्मेदार विभागों की तरफ से कवायदें भी महकमे की तरफ से भी खूब हुईं,और जहां जिले के तत्कालीन जिम्मेदार अधिकारियों ने जिले को।खुले में शौचमुक्त करने के लिए डेडलाइन तय की थी व्व पिछले साल 2 ओकटुबर कज थी,हालांकि समय से करीब 1 महीने बाद पिछले साल जिले के जिम्मेदार अफसरों ने जिले को सिर्फ अपना वादा निभाने के इरादे से जल्दबाजी में यानी नवम्बर 2018 में जिला बुलन्दशहर को ओडीएफ भी घोषित कर दिया यानी कि बुलंदशहर को पिछले साल नवंबर में खुले में शौच मुक्त जिला घोषित कर दिया गया, जिले को ओडीएफ घोषित किया गया था तब से लगातार ईटीवी ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल कर चुका है और हर बार जिले के जिम्मेदार अधिकारी खुद को सुरक्षित बचाकर जांच कराने का आश्वासन भी कैमरे के सामने भी देते देखे जा चुके हैं अब की बार फिर इटीवी ने अपनी पड़ताल शुरू की है और हम पहुंचे जिले के कई अलग अलग ब्लॉक और तहसील के गांव के लोगों के बीच और वहां जो नजारा देखा वो काफी रौचक और चोंकाने वाला था आप भी देखिये .... जो तस्वीर आपके सामने हैं इन्हें देख कर कम से कम चौकने की जरूरत नहीं है,ये शौचालय व्व हैं जो मानक के मुताबिक नहीं हैं ,तो वहीं गांव वालों ने इनका प्रयोग गोदाम के तौर पर ही कर लिया,इन शौचालयों में पालतू जानवरों के गोबर से तैयार होने वाले और प्रायः गांवों में ईंधन के तौर पर इश्तेमाल होने वाले गांव की भाषा में कहें तो उपले या कंडे भरे गए हैं ,ये नजारा एक दो या तीन शौचालयों का नहीं दर्जनों घरों का है,और इससे बढ़कर भी शौचालय हैं फिलहाल ग्रामीणों ने इन शौचालयों को मानक के मुताबिक न होने पर सिर्फ घर के जरूरी सामान वगेरह रखने के लिए उपयोग में लेना शुरू कर दिया है,ऐसा भी नहीं है कि शौचालय पूरे जिले के हर पात्र के घर में बन चुके ही हों,दरअसल जो नियम है उसके मुताबिक पहले गांवों में प्रधान अपने स्तर से शौचालय निर्माण कराता था,बाद में ये सरकार द्वारा आवंटित पैसा प्रधान और पंचायत सेक्रेटरी के माध्यम से लाभार्थी के सीधे खाते में पहुंचाने का जिम्मा भी दिया गया ,लेकिन चीजें बदली तो सही लेकिन शौचालयों का पूरी तरह से अभी तक भी निर्माण नहीं हो सका,इटीवी ने ओडीएफ का सच जानने के लिए ग्रामीणों से जानकारी चाही तो जो खुलासा हुआ व्व आप भी देख सकते हैं,ग्रामीणों से खुले में शौच के लिए जाने के बारे में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कई अलग अलग व्हीजें गिना दीं।लेकिन जो एक बात निकल कर आई व्व यही है कि जिले स्तर से जो कवायदें शौचमुक्त भारत अभियान के लिए की गई वो जमीन से काफी दूर थीं,लोगों की जिंदगी में बदलाव नहीं आ सका लोग खुले में शौच को जाने से नहीं रुक पा रहे हालांकि कुछ कमी जरूर आयी है,खुले में शौच के लिए जाने की वजह पूछने पर ग्रामीणों पर सिर्फ सवाल ही नहीं हैं बल्कि वो वजह भी गिनाने लगते हैं,कई लोग तो सरकार द्वारा शौचालय के लिए दी जानी वाली रकम को ही अपर्याप्त बताते देखे गए।

बाइट तो बाइट..ग्रामीण(बुलन्दशहर तहसील के कैथाला गांव के लोग)
बाइट..संजीत...बीबीनगर ब्लॉक के अहमदानगर गांव का युवक


जिले के जिम्मेदार पंचायती राज विभाग के अधिकारी अमरजीत सिंह का कहना है कि अधिकारियों का कहना है कि जहां शिकायतें मिल रही हैं वहां जांच कराई जा रही हैं ,इटीवी से बातचीत के दौरान डीपीआरओ का कहना है कि खुले में शौच को जाने वाली प्रथा काफी लंबे समय से चली आ रही है और इसे एक दम से अमल में लाने में दिक्कतें आ रही हैं,उनका कहना है कि पचास साल जो इंसान खुले में शौच के लिए जा रहा हो तो जल्दी से उस आदत को नहीं छोड़ना चाहता ,हमने पूछा फिर तो स्वच्छ भारत मिशन का जो सपना पीएम और सीएम देख रहे हैं वो पूरा कैसे होगा तो डीपीआरओ यानी जिला पंचायती राज अधिकारी का कहना है कि लोगो को जागरूक करने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं ।स्वच्छताग्राही बनाये गए हैं और जो कि ऐसे लोगों को जागरूक कर रहे हैं जहां लोग अपनी पुरानी आदत से मजबूर हैं।

बाइट...अमरजीत सिंह,जिला पंचायती राज अधिकारी,बुलन्दशहर ।





Conclusion: कहने को अधिकारी चाहे कुछ कहें, लेकिन जो हकीकत में है वह तस्वीर साफ तौर पर बयां करती है कि किस तरह से सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को अधिकारियों और जन सेवकों ने मिलकर ना सिर्फ खानापूर्ति करके कागजों में पूरा करके इतिश्री कर दी,बल्कि खानापूर्ति के बल्कि खानापूर्ति करके वहीं दूसरी तरफ जो उद्देश्य सरकार का था घर घर टॉयलेट की स्थापना का । कहीं न कहीं वह उद्देश्य भी सिर्फ धूमिल होता देखा जा सकता है।जिसमे जिम्मेदार हैं जिले के व्व अधिकारी जो जमीन पर ईमानदार कोशिशों के बजाय सिर्फ कागजों में लकीरें बनाकर योजना को पूरा करने की कोशिशें करते रहे।

एंडिंग पीटीसी....श्रीपाल तेवतिया,
इटीवी,
बुलन्दशहर,
92134 00888.
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST
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