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कारगिल विजय दिवस: शहीद ऋषिपाल सिंह के परिजनों की मांग, सरकार निभाये वादे

कारगिल में शहीद गांव कुरली निवासी ऋषिपाल सिंह 20 साल बाद भी देशवासियों के दिलों में जिंदा हैं. परिवार से सरकार ने जितने भी वायदे किये थे उनमें से कुछ ही पूरे कर सकी. शहीद ऋषिपाल सिंह के परिजनों से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.

कारगिल शहीद ऋषिपाल डागर की प्रतिमा
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Published : Jul 26, 2019, 10:55 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST

बुलंदशहर: देश की खातिर कारगिल में अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीद ऋषिपाल डागर के परिजनों से 20 साल पहले सरकार ने कुछ वायदे किये थे. उनमें से कई वायदे ऐसे हैं जिन्हें सरकार आज तक पूरे नहीं कर सकी. इसी तरह कई ऐसे शहीदों के परिवार हैं जो अभी भी अफसरों के चक्कर काटते नजर आ रहे हैं.

कारगिल शहीद ऋषिपाल सिंह के परिजनों से बातचीत-
बुलंदशहर के गुलावठी ब्लॉक अंतर्गत कुरली गांव निवासी ऋषि पाल सिंह डागर कारगिल वार के दौरान 7 जुलाई 1999 को दुश्मन से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. जब एक नौजवान के शहीद होने की खबर मिली तो शहीद की शहादत पर हर किसी की आंखें नम थीं. सरकार की तरफ से तब न सिर्फ सांत्वना के पुष्प अर्पित किए गए बल्कि कुछ घोषणाएं भी शहीद के परिवार के लिए उस वक्त हुईं.

कारगिल शहीद ऋषिपाल सिंह डागर के परिजनों से बातचीत
इन घोषणाओं का जिक्र करते हुए शहीद की पत्नी मुकेश देवी का कहना है कि कुछ वायदे पूरे हुए और कुछ नहीं हुए. उस वक्त सरकार ने 20 बीघा जमीन देने की बात कही थी जिसमें से सिर्फ 13 बीघा जमीन ही मिली थी. शहीद के बेटे गौरव डागर का कहना है कि उन्होंने हर जगह इस बारे में सम्पर्क किया लेकिन कुछ नहीं हुआ. वहीं घर में शहीद ऋषिपाल सिंह ने एक बंदूक का लाइसेंस लिया था जो आज तक न तो पत्नी के नाम हो सका न ही उनके बेटे के नाम. घर तक विद्युत लाइन तक नहीं है. किसी तरह परिजनों के ही प्रयास से केबल के जरिये बिजली पहुंचाई गई है.शहीद के घर तक पहुंचने तक के रास्ते को बेहतरीन करने की बात कही गई थी जो आज तक नहीं हुई है. शहीद की बेटी का कहना है कि सरकार जो भी वायदे परिवारों से करती है उन्हें पूरा करने पर ध्यान दे.

बुलंदशहर: देश की खातिर कारगिल में अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीद ऋषिपाल डागर के परिजनों से 20 साल पहले सरकार ने कुछ वायदे किये थे. उनमें से कई वायदे ऐसे हैं जिन्हें सरकार आज तक पूरे नहीं कर सकी. इसी तरह कई ऐसे शहीदों के परिवार हैं जो अभी भी अफसरों के चक्कर काटते नजर आ रहे हैं.

कारगिल शहीद ऋषिपाल सिंह के परिजनों से बातचीत-
बुलंदशहर के गुलावठी ब्लॉक अंतर्गत कुरली गांव निवासी ऋषि पाल सिंह डागर कारगिल वार के दौरान 7 जुलाई 1999 को दुश्मन से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. जब एक नौजवान के शहीद होने की खबर मिली तो शहीद की शहादत पर हर किसी की आंखें नम थीं. सरकार की तरफ से तब न सिर्फ सांत्वना के पुष्प अर्पित किए गए बल्कि कुछ घोषणाएं भी शहीद के परिवार के लिए उस वक्त हुईं.

कारगिल शहीद ऋषिपाल सिंह डागर के परिजनों से बातचीत
इन घोषणाओं का जिक्र करते हुए शहीद की पत्नी मुकेश देवी का कहना है कि कुछ वायदे पूरे हुए और कुछ नहीं हुए. उस वक्त सरकार ने 20 बीघा जमीन देने की बात कही थी जिसमें से सिर्फ 13 बीघा जमीन ही मिली थी. शहीद के बेटे गौरव डागर का कहना है कि उन्होंने हर जगह इस बारे में सम्पर्क किया लेकिन कुछ नहीं हुआ. वहीं घर में शहीद ऋषिपाल सिंह ने एक बंदूक का लाइसेंस लिया था जो आज तक न तो पत्नी के नाम हो सका न ही उनके बेटे के नाम. घर तक विद्युत लाइन तक नहीं है. किसी तरह परिजनों के ही प्रयास से केबल के जरिये बिजली पहुंचाई गई है.शहीद के घर तक पहुंचने तक के रास्ते को बेहतरीन करने की बात कही गई थी जो आज तक नहीं हुई है. शहीद की बेटी का कहना है कि सरकार जो भी वायदे परिवारों से करती है उन्हें पूरा करने पर ध्यान दे.
Intro:देश की खातिर कारगिल में अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीद ऋषिपाल डागर के परिजनों से 20 साल पहले सरकार ने जो वायदे किये थे ,उनमे से कई वायदे आज तक भी पूरे नहीं हुए,इतना ही नहीं परिवार ,कई बार अफसरों की चौखटों के चक्कर काटता घूम रहा है,ईटीवी भारत कारगिल युध्द के बीस साल बाद ऐसे परिवारों के बीच जा रहा है और जान रहा है आखिर किस हाल में हैं ऐसे परिवार, देखिये इटीवी भारत की ये एक्सक्लुसिव पड़तालपूर्ण खबर। नोट...खबर आशुतोष सर के आदेश के बाद प्रेषित की जा रही हैI।


Body:बुलंदशहर के गुलावठी ब्लॉक अंतर्गत कुरली गांव के रहने वाले ऋषि पाल सिंह डागर पुत्र करतार सिंह डागर कारगिल वार के दौरान 7 जुलाई 1999 को दुश्मन से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे,जब मिलिट्री की गाड़ी उनके पार्थिव शरीर के संग गांव में पहुंचीं थीं तो गांव का मंजर ही कुछ और था,हर कोई सेना की गाड़ी के पास पहुंच चुका था और जब एक नौजवान के शहीद होने की खबर मिली तो शहीद की शहादत पर हर किसी की आंखें नम थीं,उस वक्त नायक ऋषिपाल सिंह के अबोध बच्चों को कुछ समझ तक नहीं थी कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है,सरकार की तरफ से तब न सिर्फ सांत्वना के पुष्प अर्पित किए गए बल्कि कुछ घोषणाएं भी शहीद के परिवार के लिए उस वक्त हुईं ,जिनका जिक्र करते हुए शहीद की पत्नी मुकेश देवी का कहना है कि कुछ वायदे पूरे हुए और कुछ नहीं हुए ,शहीद नायक ऋषिपाल सिंह डागर की पत्नी का कहना है कि उस वक्त 2उन्हें 20 बीघा जमीन का पट्टा दिए जाने की बातें हुई थीं,लेकिन वो जमीन पूरी नहीं मिली कुल 13 बीघा जमीन ही उन्हें मिली जबकि 20 बीघा जमीन का वायदा उस वक्त किया गया था,जो घोषणा हूई थी वो 20 बीघा जमीन देने की हुई थी,इस बारे में कारगिल शहीद ऋषिपाल के बेटे गौरव डागर का कहना है कि उन्होंने प्रत्येक जगह इस बारे में सम्पर्क किया अफसरों की चौखट से लेकर जहां जहां भी उन्हें किसी ने बताया व्व जाते रहे लेकिन कुछ नहीं हुआ,तो वहीं घर में एक बंदूक का लाइसेंस नायक ऋषिपाल सिंह ने तब लिया था लेकिन इसे लापरवाही ही कहेंगे कि आज तक भी उस बंदूक का लाइसेंस तक न ही तो शहीद की पत्नी के नाम पर हो पाया और न हीं उनके बेटों के नाम ,व्व कहते हैं हालांकि गैस एजेंसी उन्हें जरूर मिली लेकिन उसके लिए भी उन्हें काफी भागदौड़ करनी पड़ी ,20 साल हो चुके हैं अब इस परिवार ने उन घोषणाओं में जो वायदे पूरे नहीं हुए उनके बिना ही रहने की आदत डाल ली है, परिजनों का कहना है कि अब सरकारी मशीनरी से विश्वास ही इनका उठ खड़ा हुआ है, अगर बात की जाए घर तक विधुत लाइन से लेकर पक्के रास्ते की तो उस तरफ भी शहीद के घर तक पहुचने के लिए रास्ता भी बेहतरीन करने की बात की गई थी ,जबकि घर तक पहुचना ही काफी टेडी खीर है,रास्ते आज भी पहले जैसी ही स्थिति में हैं,तो वहीं बिजली विभाग की लापरवाही कहें या फिर अफसरों का ढीला रवैया घर तक विधुत लाइन के लिए लाइन तक भी नहीं हैं,हालाँकि किसी तरह खुद ही प्रयास करके केबल के जरिये बिजली पहुंचाई हुई है।कारगिल युद्ध के दौरान अपनी जान देश की खातिर गंवाने वाले ऋषिपाल की बेटी का कहना है कि वो चाहती हैं कि सरकार ऐसे परिवारों की दशा पर ध्यान दे और जो सुविधाएं देने का वायदा किया गया था सरकार वो वायदे निभाएं। बाइट....मुकेश देवी,.शहीद की पत्नी बाइट...प्रीति,शहीद की बेटी, बाइट...गौरव,शहीद के पुत्र


Conclusion:फिलहाल अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब एक देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीद के परिवार को ही अपनी जायज मांगों के लिए 20 साल बाद भी इधर से उधर भटकना पड़ रहा है तो फिर आम आदमी का क्या हाल होगा,फट वहीं शहीद का परिवार भी यही चाहता है कि सरकार की तरफ से जो घोषणा हुई थी वो पूरी हो ,और उनके पिता की एक निशानी लाइसेंसी बंदूक पर उनका अधिकार हो। पीटीसी...श्रीपाल तेवतिया। 9213400888, बुलन्दशहर ।
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST
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