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बुलंदशहर के इस गांव में हैं हर घर में फौजी, बच्चों में है देश सेवा का जज्बा

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Published : Aug 15, 2020, 10:34 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में एक ऐसा गांव है, जहां हर घर से कोई न कोई फौज में रहकर देश की सेवा कर रहा है. गांव के बच्चे-बच्चे के अंदर देश सेवा का भाव देखने को मिलता है.

बुलंदशहर का सैदपुर गांव.
बुलंदशहर का सैदपुर गांव.

बुलंदशहर: राजधानी से करीब 70 किलोमीटर दूर बुलंदशहर जिले का सैदपुर एक ऐसा गांव है, जहां के हर घर में फौजी ने जन्म लिया है. देश सेवा का जज़्बा इस गांव के युवाओं में जन्म से ही कूट-कूटकर भरा होता है. सेना में सैनिक से लेकर उच्च पदों तक इस गांव के शूरवीर अपनी सेवा दे रहे हैं.

बुलंदशहर जिले में बीबीनगर ब्लॉक स्थित गांव सैदपुर की अपनी अलग पहचान है. इस गांव के हर परिवार का कोई न कोई सदस्य देश की सरहदों पर अपनी सेवा दे रहा है. जिले के बड़े गांवों में इस गांव की गिनती होती हैं. इस गांव के अब तक सैकड़ों वीरों ने अपने प्राणों की आहुति हंसते-हंसते देश की खातिर दी है.

सैदपुर गांव की विशेष बात यह है कि यहां प्रथम विश्वयुद्ध से अब तक ऐसा कोई युद्ध नहीं है, जिसमें इस गांव के सपूतों ने अपना पराक्रम न दिखाया हो. विश्वयुद्ध के दौरान भी गांव के करीब 150 वीरों ने अपनी भागीदारी दी थी. इस बारे में ईटीवी भारत ने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो रहे सूबेदार स्वरूप सिंह से बात की. सूबेदार स्वरूप सिंह को अपने अदम्य साहस के लिए वीरता पुरष्कार से सम्मानित भी किया गया है.

शहीद स्मारक स्थापित.
शहीद स्मारक स्थापित.

सूबेदार स्वरूप सिंह का कहना है कि इस गांव की माटी में कुछ कशिश है. आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं, सभी में गांव के सपूत आगे रहे हैं. इस गांव में ऐसे भी उदाहरण हैं, जहां सास भी शहीद की पत्नी है और बहू भी शहीद की पत्नी है. हर परिवार की पीढ़ी दर पीढ़ी देश की सेवा में लगे हुए हैं.

सैदपुर गांव में होती थी पहले सेना की भर्ती
सेना से रिटायर्ड सूबेदार स्वरूप सिंह ने बताया कि पहले गांव में सेना की भर्ती होती थी और गांव के मिलिट्री हीरोज मेमोरियल स्कूल के मैदान में भर्ती के लिए मेरठ और लखनऊ से अफसर आया करते थे. दोबारा से सेना में भर्ती के लिए लॉकडाउन से पहले गांव के एक प्रतिनिधि ने रक्षामंत्री से मुलाकात की थी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से कोई हल नहीं निकला. बाद में फिर से अधिकारियों से इस बारे में बात किया जाएगा.

जानकारी देते सूबेदार स्वरूप सिंह.

गांव के लोगों का सेना के प्रति रुझान
सैदपुर गांव के वीर सपूतों की बहादुरी के चर्चे सुन सुनकर नन्हे ननिहाल बड़े होते हैं. मिठाई की दुकान संचालक का कहना है कि वे खुद वैश्य वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनके परिवार के नौजवानों का झुकाव भी सेना की तरफ है. देश के तीनों सेनाओं में गांव के कई युवा रहते हैं.

सैदपुर गांव के प्रधान धीरज सिरोही ने बताया कि इस गांव का एक सर्वे कराया गया था. सर्वे के मुताबिक वर्तमान समय में गांव के 2700 से लेकर 2800 के बीच गांव के लोग सेना से रिटायर्ड हैं. प्रधान ने बताया कि इस गांव का बच्चा-बच्चा सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता है.

ग्राम प्रधान ने बताया कि गांव में मिलिट्री हीरोज स्कूल का विशाल मैदान है, जहां सुबह शाम युवा दौड़भाग करके खुद को सेना के काबिल बनाते हैं. सेना से रिटायर्ड लोग भी नौजवान युवाओं को ग्राउंड पर जाकर ट्रेंड करते हैं. युवाओं का हौंसला अफजाई करते हैं. प्रत्येक कोर में यहां के नौजवान हैं, जो देश की सेवा कर रहे हैं.

लड़कियां भी नहीं हैं पीछे
गांव के डॉ. मनवीर सिंह ने बताया कि युवाओं के साथ साथ अब गांव की बेटियां में सेना में जाना चाहती हैं. प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह ने खुद इस गांव का भ्रमण किया है. मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए बाबू बनारसी दास और मुलायम सिंह यादव भी गांव में आ चुके हैं. गांव में एक शहीद स्मारक भी स्थापित है, जिससे जब भी युवा वहां से गुजरते हैं तो वीर शहीदों के नाम को देखकर गौरान्वित महसूस करते हैं.

बुलंदशहर: राजधानी से करीब 70 किलोमीटर दूर बुलंदशहर जिले का सैदपुर एक ऐसा गांव है, जहां के हर घर में फौजी ने जन्म लिया है. देश सेवा का जज़्बा इस गांव के युवाओं में जन्म से ही कूट-कूटकर भरा होता है. सेना में सैनिक से लेकर उच्च पदों तक इस गांव के शूरवीर अपनी सेवा दे रहे हैं.

बुलंदशहर जिले में बीबीनगर ब्लॉक स्थित गांव सैदपुर की अपनी अलग पहचान है. इस गांव के हर परिवार का कोई न कोई सदस्य देश की सरहदों पर अपनी सेवा दे रहा है. जिले के बड़े गांवों में इस गांव की गिनती होती हैं. इस गांव के अब तक सैकड़ों वीरों ने अपने प्राणों की आहुति हंसते-हंसते देश की खातिर दी है.

सैदपुर गांव की विशेष बात यह है कि यहां प्रथम विश्वयुद्ध से अब तक ऐसा कोई युद्ध नहीं है, जिसमें इस गांव के सपूतों ने अपना पराक्रम न दिखाया हो. विश्वयुद्ध के दौरान भी गांव के करीब 150 वीरों ने अपनी भागीदारी दी थी. इस बारे में ईटीवी भारत ने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो रहे सूबेदार स्वरूप सिंह से बात की. सूबेदार स्वरूप सिंह को अपने अदम्य साहस के लिए वीरता पुरष्कार से सम्मानित भी किया गया है.

शहीद स्मारक स्थापित.
शहीद स्मारक स्थापित.

सूबेदार स्वरूप सिंह का कहना है कि इस गांव की माटी में कुछ कशिश है. आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं, सभी में गांव के सपूत आगे रहे हैं. इस गांव में ऐसे भी उदाहरण हैं, जहां सास भी शहीद की पत्नी है और बहू भी शहीद की पत्नी है. हर परिवार की पीढ़ी दर पीढ़ी देश की सेवा में लगे हुए हैं.

सैदपुर गांव में होती थी पहले सेना की भर्ती
सेना से रिटायर्ड सूबेदार स्वरूप सिंह ने बताया कि पहले गांव में सेना की भर्ती होती थी और गांव के मिलिट्री हीरोज मेमोरियल स्कूल के मैदान में भर्ती के लिए मेरठ और लखनऊ से अफसर आया करते थे. दोबारा से सेना में भर्ती के लिए लॉकडाउन से पहले गांव के एक प्रतिनिधि ने रक्षामंत्री से मुलाकात की थी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से कोई हल नहीं निकला. बाद में फिर से अधिकारियों से इस बारे में बात किया जाएगा.

जानकारी देते सूबेदार स्वरूप सिंह.

गांव के लोगों का सेना के प्रति रुझान
सैदपुर गांव के वीर सपूतों की बहादुरी के चर्चे सुन सुनकर नन्हे ननिहाल बड़े होते हैं. मिठाई की दुकान संचालक का कहना है कि वे खुद वैश्य वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनके परिवार के नौजवानों का झुकाव भी सेना की तरफ है. देश के तीनों सेनाओं में गांव के कई युवा रहते हैं.

सैदपुर गांव के प्रधान धीरज सिरोही ने बताया कि इस गांव का एक सर्वे कराया गया था. सर्वे के मुताबिक वर्तमान समय में गांव के 2700 से लेकर 2800 के बीच गांव के लोग सेना से रिटायर्ड हैं. प्रधान ने बताया कि इस गांव का बच्चा-बच्चा सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता है.

ग्राम प्रधान ने बताया कि गांव में मिलिट्री हीरोज स्कूल का विशाल मैदान है, जहां सुबह शाम युवा दौड़भाग करके खुद को सेना के काबिल बनाते हैं. सेना से रिटायर्ड लोग भी नौजवान युवाओं को ग्राउंड पर जाकर ट्रेंड करते हैं. युवाओं का हौंसला अफजाई करते हैं. प्रत्येक कोर में यहां के नौजवान हैं, जो देश की सेवा कर रहे हैं.

लड़कियां भी नहीं हैं पीछे
गांव के डॉ. मनवीर सिंह ने बताया कि युवाओं के साथ साथ अब गांव की बेटियां में सेना में जाना चाहती हैं. प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह ने खुद इस गांव का भ्रमण किया है. मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए बाबू बनारसी दास और मुलायम सिंह यादव भी गांव में आ चुके हैं. गांव में एक शहीद स्मारक भी स्थापित है, जिससे जब भी युवा वहां से गुजरते हैं तो वीर शहीदों के नाम को देखकर गौरान्वित महसूस करते हैं.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST
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