बिजनौर: गंगा और मालन नदी के बीच बसा बिजनौर एक सुंदर शहर है. बिजनौर को महात्मा विदुर की भूमि के नाम से भी जाना जाता है. इसको विदुर भूमि भी कहा जाता है. महाभारत होने से पहले महात्मा विदुर ने हस्तिनापुर का त्याग करते हुए बिजनौर मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर गंगा किनारे आकर अपनी कुटिया बना ली थी और यहीं पर रहने लगे थे. जब भगवान श्री कृष्ण महाभारत युद्ध को रोकने के लिए दुर्योधन को समझाने के लिए हस्तिनापुर आए थे और दुर्योधन ने समझौते का प्रस्ताव ठुकरा दिया था तब कृष्ण भगवान ने महात्मा विदुर की इसी कुटिया में आकर भोजन किया था.
बिजनौर की सीमाएं मुजफ्फरनगर, मेरठ जिले की सीमाओं से मिलती है. यहां से दिल्ली,मेरठ, हरिद्वार, मुरादाबाद आदि जनपदों को जाने के लिए यातायात के बहुत साधन हैं. अगर रेल मार्ग की बात करें तो एक रेलवे स्टेशन है. इस स्टेशन पर आज भी एक्का दुक्का ट्रेन ही स्टेशन पर आती है. बिजनौर जिला मुख्यालय पर कोई बड़ी इंडस्ट्री नहीं है. इसलिए रोजगार के साधन कम हैं. लोगों को रोजगार के लिए ज्यादातर उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित रोशनाबाद इंडस्ट्री जाना पड़ता है. बिजनौर में शिक्षा के लिए बहुत सारे डिग्री और इंजीनियरिंग कॉलेज हैं. इसके साथ-साथ स्वास्थ्य के नाम पर जिला मुख्यालय पर निजी डॉक्टर और निजी अस्पतालों की भरमार है. फिलहाल यहां नए मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य भी शुरू हो गया.
राजनीतिक पृष्ठ भूमि
बिजनौर विधानसभा की अगर राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो राम मंदिर आंदोलन के बाद से इस सीट पर सबसे ज्यादा बीजेपी का ही कब्जा रहा. बीच-बीच में बसपा और सपा जरूर चुनाव जीतती रही है, लेकिन सबसे ज्यादा विधायक भाजपा के ही यहां से जीत कर आए हैं.
1991 में राम मंदिर आंदोलन के बाद से पहली बार भारतीय जनता पार्टी के महेंद्र पाल सिंह 67,009 वोट पाकर विजयी रहे. जबकि बसपा के राजा गजनफर अली दूसरे स्थान पर रहे. 1993 के चुनाव में फिर दोबारा से भारतीय जनता पार्टी के महेंद्र पाल सिंह 52,338 वोट पाकर चुनाव जीत गए और जबकि जनता दल के सुखबीर सिंह 40,730 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे.
1996 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के राजा गजफरअली 74,675 वोट पाकर पहली बार विधायक बने. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर तेजपाल वर्मा को चुनाव हराया. तेजपाल वर्मा 48,671 वोट पाकर दूसरे स्थान पर थे. इसके बाद से इस सीट पर फिर से बीजेपी का दबदबा शुरू हो गया.
2002 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के कुंवर भारतेंद्र सिंह इस सीट पर 52,195 वोट पाकर विधायक चुने गए. समाजवादी पार्टी के तस्लीम अहमद 35,856 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे. 2007 के चुनाव में कुंवर भारतेंद्र सिंह बसपा की लहर के चलते बसपा प्रत्याशी शाहनवाज राणा से मात्र 557 वोटों से चुनाव हार गए. जिसमें शाहनवाज राणा को 61,588 और भारतेंद्र सिंह को 61,031 वोट मिले. सपा के शहीद अली खां 21,826 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे. जबकि रालोद के सुखवीर सिंह 5,890 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे.
2012 के चुनाव में कुंवर भारतेंद्र सिंह ने अपनी हार का बदला लेते हुए इस सीट पर दोबारा कब्जा कर लिया. इस चुनाव में भारतेंद्र सिंह को 68,969 और बसपा के महबूब अली को 51,133 वोट मिले थे. ये दूसरे स्थान पर रहे. तीसरे स्थान पर रालोद के शाहनवाज तीसरे स्थान पर रहे और सपा की रुचिवीरा चौथे स्थान पर रही.
2014 के लोकसभा चुनाव में कुंवर भारतेंद्र सिंह को लोकसभा का चुनाव लड़ाने के कारण विधानसभा से त्यागपत्र देना पड़ा और 2014 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी की रुचि वीरा ने भारतीय जनता पार्टी के हेमेंद्र पाल सिंह को हराते हुए जीत हासिल की थी.
2017 के जनादेश की बात करें तो इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी सूची चौधरी वर्तमान में विधायक हैं. इन्होंने 1,05,548 वोट पाकर इस सीट पर जीत हासिल की थी. जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी कुंवरानी रुचि वीरा 78,267 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थीं. बहुजन समाज पार्टी के रशीद अहमद छिद्दू 49,788 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे. राष्ट्रीय लोक दल के राहुल सिंह 7,799 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे. जबकि निर्दलीय सहित 5 अन्य प्रत्याशी चुनाव में 1,000 वोट का आंकड़ा भी नहीं छू पाए थे. बिजनौर विधानसभा सीट की अगर मतदाताओं की संख्या बात करें तो इसमें कुल 3,73.654 वोट है. जिसमें 1,96,394 पुरुष और 1,77,260 महिला वोटर शामिल हैं.
जाति | वोट संख्या |
मुस्लिम | 1 लाख से ज्यादा |
दलित | 52 हजार से ज्यादा |
सैनी | 22 हजार से ज्यादा |
पाल | 15 हजार से ज्यादा |
कश्यप | 13 हजार से ज्यादा |
राजपूत | 10 हजार से ज्यादा |
वैश्य | 10 हजार से ज्यादा |
प्रजापति | 4 हजार से ज्यादा |
ब्राह्मण | 5 हजार से ज्यादा |
विधायक का परिचय
बिजनौर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बनीं सूची चौधरी बिजनौर शहर की रहने वाली हैं. इनकी शादी बिजनौर के नई बस्ती निवासी अधिवक्ता ऐश्वर्य मौसम चौधरी से हुई है. यह पोस्ट ग्रेजुएट है और एक साधारण घरेलू महिला हैं. इनका कोई राजनीतिक इतिहास नहीं रहा है. 2016 बिजनौर के गांव पैदा में एक सांप्रदायिक दंगे में इनके पति ऐश्वर्य चौधरी उर्फ मौसम का नाम आया था और उन्हें जेल जाना पड़ा था. उसी की सहानुभूति लेने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने मौसम चौधरी की पत्नी सूची चौधरी को 2017 के विधानसभा चुनाव में बिजनौर से प्रत्याशी घोषित करते हुए चुनाव का टिकट दिया था. इस सीट को जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं बिजनौर में एक सभा की थी. इस चुनाव में प्रचार करते सूची चौधरी ने अपने पति को निर्दोष बताते हुए उन्हें जबरन फंसाने की बात करते हुए जनता की सहानुभूति बटोरी थी. सूची चौधरी विधानसभा चुनाव में इस सीट से 27,000 वोटो से सपा की रूचि वीरा से जीती थीं.
टिकट संभावना
इस सीट पर बीजेपी एक बार फिर से सूचि चौधरी को टिकट देकर मैदान में उतार सकती है. बीएसपी इस सीट से रूचि वीरा को चुनाव लड़ा सकती है. उधर सपा व गठबंधन प्रत्याशी सहित कांग्रेस प्रत्याशी के बारे में अभी कुछ भी पता नहीं चल सका है.
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