बस्ती: कोरोना काल के बाद जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है, लेकिन कोरोना ने जिस तरह का जख्म दिया है, उससे उबर पाना इतना आसान भी नहीं है. यही वजह है कि छोटे व्यापारी और हुनरमंद मजदूर आज काम और दाने-दाने को मोहताज हैं. ऐसे ही एक व्यापारी हैं प्रमोद चौधरी, जिन्होंने गांव में कामगारों को काम देने के मकसद से सिलाई फैक्ट्री का सृजन किया. कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चला, लेकिन कोरोना काल के बाद उनकी इकाई जब बंद हुई तो आज तक वह चालू नहीं हो सकी.
फैक्ट्री को चलाने के लिए प्रमोद चौधरी ने 25 लाख का लोन लिया था और इसके लिए प्रमोद ने बैंक में घर के कागजात सहित 10 लाख की एफडी भी जमा की थी. जैसे-जैसे फैक्ट्री का काम आगे बढ़ा, जो लोन था, उससे मशीनें और अन्य जरूरतें पूरी की गई, लेकिन अब उनके पास इतनी भी जमा पूंजी नहीं बची है कि वह एक बार फिर से अपनी इकाई को चालू कर सकें.
सल्टौवा ब्लॉक के भिरिया गांव में करीब 60 से अधिक हुनरमंद और कामगारों को इस सिलाई फैक्ट्री में नौकरी मिली थी. वे यहां काम कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे थे, लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि गुलजार रहने वाली यह फैक्ट्री आज सुनसान पड़ी है. जो कामगार हैं, वह भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं.
फैक्ट्री मालिक प्रमोद चौधरी का कहना है कि उनके पास अब इतनी जमा पूंजी भी नहीं बची है कि वह अपनी फैक्ट्री को चला सकें. बैंक से मदद के लिए उन्होंने कई बार कहा, लेकिन उनकी न तो बैंक ने कोई मदद की और न ही जिले के अधिकारियों से ही उन्हें कोई मदद मिली. अब आलम यह है कि बैंक से कर्जा लेने के बाद प्रमोद ने जिस इकाई को खड़ा किया था, वह बंद पड़ा है, जिस वजह से प्रमोद के सामने अब खुद रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
सवाल यह उठता है कि सरकार ने यह दावा किया था कि गांव-गांव रोजगार सृजन किए जाएंगे ताकि कामगारों को उन्हीं के शहर और उन्हीं के इलाके में काम मिल सके, लेकिन यह सब दावे खोखले साबित हो रहे हैं. छोटी फैक्ट्रियां भी बंद हो जा रही हैं, जिस वजह से कामगारों को काम के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है.
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बहरहाल प्रमोद जैसे न जाने और कितने ही छोटी-छोटी इकाइयां चलाने वाले व्यापारी हैं, जो आज कोरोना काल की वजह से घाटे में चले गए हैं. न ही सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद मिल रही है और न ही बैंक उन्हें कोई सहूलियत दे रहा है. शायद यही वजह है कि देश की आर्थिक स्थिति हर रोज बद से बदतर होती जा रही है.