बस्ती: देश की आजादी के लिए 1857 में बगावत का बिगुल फूंकने वाले राजा नगर उदय प्रताप सिंह ने कभी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके. मुखबिरों के धोखे से गिरफ्तार हुए राजा उदय प्रताप ने गोरखपुर जेल में संतरी के बैनेट को गले में मारकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी. आज भी राजा उदय प्रताप सिंह के किले का अवशेष अंग्रेजों के बर्बरता का गवाह बनकर खड़ा है.
बस्ती मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर नगर बाजार में राजा उदय प्रताप नारायण सिंह के ध्वस्त किले का अवशेष आज भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी याद दिलाने के लिे काफी है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राजा की दिलेरी ने अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिए थे. यह वह दौर था जब देशी रियासतों के संघ ने अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में युद्ध की तैयारी शुरू कर दी थी. क्रांति की ज्वाला धधकी तो बस्ती भी अछूता नहीं रहा. राजा उदय प्रताप सिंह भी इस जंग में कूद पड़े थे. अपने बहनोई अमोढा नरेश राजा जालिम सिंह की सलाह पर उदय प्रताप सिंह ने जलमार्ग सरयू नदी के तट पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया और रास्ता रोक दिया. इसके बाद फैजाबाद की तरफ से गोरखपुर की तरफ जा रहे अंग्रेज सैनिकों की नाव पर धावा बोलकर उनके अधिकारियों को मार गिराया. इस दौरान किसी तरह एक अंग्रेज सैनिक बचकर अपनी जान बचाकर गोरखपुर पहुंचा, जहां इस घटना के बाद अधिकारियों ने 29 अप्रैल 1858 को कर्नल राक्राप्ट के नेतृत्व में नगर किले पर आक्रमण कर दिया. अंग्रेजी सेना ने किले से एक किलोमीटर दूर एक गांव के पास अपना बेड़ा लगाया. इसके बाद किले को बारूद व तोपों से ध्वस्त कर दिया. बाद में कुछ लोगों ने गद्दारी करके राजा उदय प्रताप को गिरफ्तार करव दिया.
राजा उदय प्रताप नारायण सिंह के गिरफ्तारी के बाद गोरखपुर में उनका केस चला और अंग्रेज अधिकारियों के हत्या के जुर्म में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन राजा उदय प्रताप सिंह को अंग्रेजों के हाथ मरना गंवारा नहीं था और उन्होंने फांसी के एक दिन पहले बैरक के बाहर तैनात संतरी से राइफल छीनकर आत्महत्या कर ली. बीते समय के साथ अब राजा उदय प्रताप के किले के देखभाल की जिम्मेदारी वन विभाग को मिली थी. लेकिन बहुत कुछ नहीं बदला. वहीं अब काफी वक्त से यहां की जिम्मेदारी जिम्मेदारी श्री राजकोट दुर्गा समिति ने ले ली है.
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