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बस्ती: राम मंदिर आंदोलन से अछूता नहीं है सांडपुर, कारसेवकों ने दी थी जान

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Published : Aug 4, 2020, 6:53 PM IST

राम मंदिर आंदोलन में कई कारसेवक शहीद हो गए थे. अब जब कल राम मंदिर का भूमिपूजन किया जाएगा को इन कारसेवकों को सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी. इन शहीद कारसेवकों में यूपी के बस्ती जिले के भी कारसेवक शामिल थे. ईटीवी भारत ने इन कारसेवकों के परिजनों से बात कर उनकी प्रतिक्रिया जानी.

कारसेवकों ने दी थी जान
कारसेवकों ने दी थी जान

बस्ती: करोड़ों हिंदुओं के आस्था के प्रतीक भगवान श्री राम के मंदिर के भूमिपूजन को लेकर बस्ती जिले के गांव सांडपुर के लोग काफी खुश हैं, लेकिन 22 अक्टूबर 1990 का खौफनाक दिन याद आते ही इनके चेहरों पर अपनों को खोने का दर्द साफ दिखता है. राम मंदिर निर्माण को लेकर हुए आंदोलन में कई लोगों ने शहादत दी थी. राम मंदिर के लिए शहीद हुए इन शहीदों में जिले के भी कुछ रामभक्त कारसेवक शामिल थे. शहीदों के परिजनों और कारसेवकों से सांडपुर गांव पहुंचकर ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.


जब राम मंदिर आंदोलन था पूरे उफान पर
नब्बे के दशक में देश मे राम मंदिर आंदोलन पूरे उफान पर था. 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा निकली थी, जिसमें उन्होंने राम भक्तों से अयोध्या में मन्दिर निर्माण के लिए साथ आने का आह्वान किया था. कारसेवक राम मंदिर के लिए अयोध्या पहुंचने की तैयारी कर रहे थे. अयोध्या के आस-पास जिलों में बाहर से कारसेवक आकर रुक रहे थे.इसमे बस्ती जिले का गांव सांड़पुर भी था. उस दौर में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. 22 अक्टूबर 1990 की वह काली सुबह दुबौलिया ब्लॉक के सांड़पुर की जनता नहीं भूल सकती. जब पुलिस ने निहत्थे व निर्दोष ग्रामीणों पर सिर्फ कारसेवा के नाम पर जमकर बर्बरता की थी. इस दिन गांव के दो नौजवान कारसेवकों को मौत के घाट उतार दिया गया था. पुलिस की इस बर्बरता में कारसेवक सत्यवान सिंह (18) और बरसांव टेढवा गांव के रामचन्द्र यादव शहीद हो गए थे. वहीं दो अन्य लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये थे. 22 अक्टूबर 1990 को सांडपुर के ग्रामीण आज भी याद कर सिहर उठते हैं.

जानिए क्या बोले शहीद कारसेवकों के परिजन.

कोलकता से आये कारसेवकों के लिए ग्रामीण कर रहे थे भोजन का प्रबंध

दरअसल, विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर अयोध्या चलो कार्यक्रम के अन्तर्गत कोलकता से आये कुछ कारसेवकों के लिए ग्रामीण भोजन का प्रबंध कर रहे थे. गांव के लोग भी कारसेवा में जाने की तैयारी कर रहे थे. तभी तत्कालीन थानाध्यक्ष रामचंद्र राय को सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के सांडपुर गांव में और छपिया मलिक, बरदिया कुवर, रमना तौफिर, टेढवा कारसेवक पहुंच गए हैं. बाहर से आये कारसेवकों के साथ गांव वाले सरयू नदी नाव से पार कर अयोध्या पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं.

पुलिस ने की थी फायरिंग

सूचना के बाद तत्कालीन थानाध्यक्ष रामचंद्र राय दलबल के साथ सांडपुर के आधा दर्जन लोगों को हिरासत में लेकर दुबौलिया थाने ले जाने लगे, जिसके बाद मौके पर ग्रामीणों की भीड़ इकट्ठा हो गई और पुलिस से झड़प होने लगी. इसके बाद पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी. इस फायरिंग में पुलिस की गोली सांडपुर निवासी सत्यवान सिंह और बरसांव टेढवा गांव के राम चन्द्र यादव को लगी. गोली लगने से इनकी मौके पर ही मौत हो गई. वहीं महेंद्र पाल सिंह, हेंगपुर गांव निवासी जय राज यादव गोली लगने से घायल हो गये थे. इसके बाद पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. कई कारसेवकों पर आज भी मुकदमा चल रहा है.

क्या कहना है शहीद कारसेवकों के परिजनों का

इस गोलीकांड में राम मंदिर के लिए शहीद हुए देश के पहले शहीद सत्यवान सिंह की पत्नी मृदुला सिंह ने बताया कि 22 अक्टूबर 1990 की वह सुबह कभी नही भूलेंगी. पुलिस ने निर्दोष ग्रामीणों पर सिर्फ कारसेवा के नाम पर बर्बरता की थी. इसमें मेरे पति ने अपनी जान गांव दी. इस घटना के बाद विश्व हिंदू परिषद ने एक लाख रुपये की आर्थिक मदद की थी, लेकिन उसके बाद आज तक कोई पूछने नहीं आया.

शहीद सत्यवान सिंह के भाई सत्यप्रकाश सिंह बताते हैं कि राम के नाम पर भाई के कुर्बानी को आज सच्ची श्रद्धांजलि मिली ही मंदिर निर्माण ही उनकी मौत की सच्ची श्रद्धांजलि है, लेकिन अगर हम लोगों को भी भूमि पूजन में शामिल किया जाता तो शहीदों और कारसेवकों को सम्मान मिलता. कारसेवक आज भी उस घटना का दंश झेल रहे हैं.

वहीं कारसेवक महेंद्र सिंह ने बताया कि अब भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी जा रही है. बडी खुशी है कि राम मंदिर अपने आंखो से देख लूंगा, लेकिन मन में पीड़ा भी है कि भूमि पूजन में शामिल नहीं हो पा रहा हूं. उन्होंने बताया कि आज भी हम लोग मुकदमा झेल रहे हैं. कई गरीब करसेवक हैं जिनका तारीख पर ना पहुंचने के कारण वारंट कट गया था, जिसके कारण चार माह जेल में रहना पड़ा था. सरकार से उम्मीद है कि मुकदमा वापस हो और गरीबों की आर्थिक मदद भी हो.

बस्ती: करोड़ों हिंदुओं के आस्था के प्रतीक भगवान श्री राम के मंदिर के भूमिपूजन को लेकर बस्ती जिले के गांव सांडपुर के लोग काफी खुश हैं, लेकिन 22 अक्टूबर 1990 का खौफनाक दिन याद आते ही इनके चेहरों पर अपनों को खोने का दर्द साफ दिखता है. राम मंदिर निर्माण को लेकर हुए आंदोलन में कई लोगों ने शहादत दी थी. राम मंदिर के लिए शहीद हुए इन शहीदों में जिले के भी कुछ रामभक्त कारसेवक शामिल थे. शहीदों के परिजनों और कारसेवकों से सांडपुर गांव पहुंचकर ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.


जब राम मंदिर आंदोलन था पूरे उफान पर
नब्बे के दशक में देश मे राम मंदिर आंदोलन पूरे उफान पर था. 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा निकली थी, जिसमें उन्होंने राम भक्तों से अयोध्या में मन्दिर निर्माण के लिए साथ आने का आह्वान किया था. कारसेवक राम मंदिर के लिए अयोध्या पहुंचने की तैयारी कर रहे थे. अयोध्या के आस-पास जिलों में बाहर से कारसेवक आकर रुक रहे थे.इसमे बस्ती जिले का गांव सांड़पुर भी था. उस दौर में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. 22 अक्टूबर 1990 की वह काली सुबह दुबौलिया ब्लॉक के सांड़पुर की जनता नहीं भूल सकती. जब पुलिस ने निहत्थे व निर्दोष ग्रामीणों पर सिर्फ कारसेवा के नाम पर जमकर बर्बरता की थी. इस दिन गांव के दो नौजवान कारसेवकों को मौत के घाट उतार दिया गया था. पुलिस की इस बर्बरता में कारसेवक सत्यवान सिंह (18) और बरसांव टेढवा गांव के रामचन्द्र यादव शहीद हो गए थे. वहीं दो अन्य लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये थे. 22 अक्टूबर 1990 को सांडपुर के ग्रामीण आज भी याद कर सिहर उठते हैं.

जानिए क्या बोले शहीद कारसेवकों के परिजन.

कोलकता से आये कारसेवकों के लिए ग्रामीण कर रहे थे भोजन का प्रबंध

दरअसल, विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर अयोध्या चलो कार्यक्रम के अन्तर्गत कोलकता से आये कुछ कारसेवकों के लिए ग्रामीण भोजन का प्रबंध कर रहे थे. गांव के लोग भी कारसेवा में जाने की तैयारी कर रहे थे. तभी तत्कालीन थानाध्यक्ष रामचंद्र राय को सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के सांडपुर गांव में और छपिया मलिक, बरदिया कुवर, रमना तौफिर, टेढवा कारसेवक पहुंच गए हैं. बाहर से आये कारसेवकों के साथ गांव वाले सरयू नदी नाव से पार कर अयोध्या पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं.

पुलिस ने की थी फायरिंग

सूचना के बाद तत्कालीन थानाध्यक्ष रामचंद्र राय दलबल के साथ सांडपुर के आधा दर्जन लोगों को हिरासत में लेकर दुबौलिया थाने ले जाने लगे, जिसके बाद मौके पर ग्रामीणों की भीड़ इकट्ठा हो गई और पुलिस से झड़प होने लगी. इसके बाद पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी. इस फायरिंग में पुलिस की गोली सांडपुर निवासी सत्यवान सिंह और बरसांव टेढवा गांव के राम चन्द्र यादव को लगी. गोली लगने से इनकी मौके पर ही मौत हो गई. वहीं महेंद्र पाल सिंह, हेंगपुर गांव निवासी जय राज यादव गोली लगने से घायल हो गये थे. इसके बाद पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. कई कारसेवकों पर आज भी मुकदमा चल रहा है.

क्या कहना है शहीद कारसेवकों के परिजनों का

इस गोलीकांड में राम मंदिर के लिए शहीद हुए देश के पहले शहीद सत्यवान सिंह की पत्नी मृदुला सिंह ने बताया कि 22 अक्टूबर 1990 की वह सुबह कभी नही भूलेंगी. पुलिस ने निर्दोष ग्रामीणों पर सिर्फ कारसेवा के नाम पर बर्बरता की थी. इसमें मेरे पति ने अपनी जान गांव दी. इस घटना के बाद विश्व हिंदू परिषद ने एक लाख रुपये की आर्थिक मदद की थी, लेकिन उसके बाद आज तक कोई पूछने नहीं आया.

शहीद सत्यवान सिंह के भाई सत्यप्रकाश सिंह बताते हैं कि राम के नाम पर भाई के कुर्बानी को आज सच्ची श्रद्धांजलि मिली ही मंदिर निर्माण ही उनकी मौत की सच्ची श्रद्धांजलि है, लेकिन अगर हम लोगों को भी भूमि पूजन में शामिल किया जाता तो शहीदों और कारसेवकों को सम्मान मिलता. कारसेवक आज भी उस घटना का दंश झेल रहे हैं.

वहीं कारसेवक महेंद्र सिंह ने बताया कि अब भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी जा रही है. बडी खुशी है कि राम मंदिर अपने आंखो से देख लूंगा, लेकिन मन में पीड़ा भी है कि भूमि पूजन में शामिल नहीं हो पा रहा हूं. उन्होंने बताया कि आज भी हम लोग मुकदमा झेल रहे हैं. कई गरीब करसेवक हैं जिनका तारीख पर ना पहुंचने के कारण वारंट कट गया था, जिसके कारण चार माह जेल में रहना पड़ा था. सरकार से उम्मीद है कि मुकदमा वापस हो और गरीबों की आर्थिक मदद भी हो.

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