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बस्ती मेडिकल कॉलेज के अंदर बेड खाली, बाहर तड़प रहे मरीज!

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Published : May 13, 2021, 7:58 PM IST

यूपी के बस्ती जिले में मेडिकल कॉलेज से संबंध कैली अस्पताल में कोरोना मरीजों को बेड नहीं मिल पा रहा है. मरीज अस्पताल के बाहर तड़प रहे हैं, जबकि वार्डों में बेड खाली हैं.

बस्ती मेडिकल कॉलेज.
बस्ती मेडिकल कॉलेज.

बस्तीः सरकार और जिला प्रशासन भले ही कोरोना मरीजों को इलाज को लेकर आल इज वेल का दावा कर रहा हो लेकिन जिले में जमीन हकीकत इसके विपरीत है. हकीकत यह है कि बस्ती मेडिकल कॉलेज मरीज बिना सोर्स के भर्ती नहीं किए जा रहे हैं. जबकि अंदर बेड खाली है और बाहर मरीज तड़प रहे हैं. महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज से संबद्ध कैली हॉस्पिटल 350 बेड का है लेकिन 200 बेड ही संचालित किया जा रहा है. पांच वार्डों में लगे डेढ़ सौ बेड ताले में कैद हैं.

मरीजों को भर्ती करने की प्रक्रिया जटिल
प्रधानाचार्य की मनमानी का आलम यह है कि कैली हॉस्पिटल में ईएमओ को कोविड के मरीज भर्ती करने के लिए अनुमति लेनी होती है. यह प्रक्रिया इतनी लंबी है कि इसमें कोरोना के गंभीर मरीज बेड के इंतजार में सुबह से शाम तक बाहर ही पड़े रह जाते हैं. जबकि अस्पताल के वार्ड में खाली हैं. बेड खाली रहने के बाद भी हॉस्पिटल में मरीजों को जगह पाने के लिए सांसद, विधायक के अलावा अफसरों से सिफारिश करानी पड़ रही है. मेडिकल कॉलेज हो या जिला अस्पताल, जहां कोरोना के मरीज भर्ती किए जा रहे हैं, वहां 48 घंटे ऑक्सीजन का बैकअप रखने का शासनादेश है. लेकिन बस्ती के मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन की डिमांड के अनुसार ही ऑक्सीजन चिकित्सकों को नहीं मिल पा रहा है.

मेडिकल कॉलेज को आवश्यकता से कम मिल रहे ऑक्सीजन सिलेंडर
चिकित्सकों की मानें मेडिकल कॉलेज में कोविड के 100 से अधिक मरीज भर्ती हैं. इनके लिए प्रतिदिन पांच सौ आक्सीजन सिलेंडर चाहिए, लेकिन मेडिकल कॉलेज में 495 सिलेंडर ही हैं. ऑक्सीजन की कमी न हो इसके लिए नायब तहसीलदार और लेखपाल की ड्यूटी मगहर में ऑक्सीजन प्लांट पर लगाई गई है. दो वाहन मय चालक सिलेंडर लाने और ले जाने के लिए लगाए गए हैं. जैसे ही पचास सिलेंडर खाली होते हैं, गाड़ी दौड़ा दी जाती है. एक सिलेंडर में 7.84 घनमीटर गैस होती है. सामान्य मरीज के लिए एक सिलेंडर पर्याप्त है. डॉक्टरों के अनुसार कोरोना के गंभीर मरीज के लिए चार से पांच सिलेंडर लग जाते हैं.

बेड के लिए दिनभर परेशान रही मरीज के परिजन
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक कोविड मरीज को उसके स्वजन ले गए तो वहां से चिकित्सक ने कैली हास्पिटल रेफर कर दिया. सुबह 10 बजे से लेकर दो बजे तक वह बेड के लिए बाहर परिजन मरीज को लेकर परेशान रहे लेकिन बेड नहीं मिला. हालत बिगड़ने लगी तो लेकर चले गए. वहीं, सीडीओ राजेश प्रजापति का कहना है कि अब मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था सुधर रही है.

यह भी पढ़ें-नकली पनीर बनाने की चल रही थी फैक्ट्री, प्रशासन ने मारा छापा

मेडिकल कॉलेज में यह है सुविधाएं
बता दें कि मरीजों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मिले, इसके लिए कोरोना की पहली लहर में ही मेडिकल कॉलेज को संसाधनों से लैस किया गया था. यहां 107 वेटिंलेटर मुहैया कराए गए. इसके अलावा आरटीपीसीआर जांच के लिए अत्याधुनिक लैब, सीटी स्कैन सहित अन्य जरूरी इंतजाम किए गए. हास्पिटल में 240 बेड पर पाइप से आक्सीजन की सप्लाई है, जबकि 110 बेड पर सिलेंडर के जरिए ऑक्सीजन देने की व्यवस्था है. 240 में से 90 बेड को एचडीयू यानी हाईडिपेंसी यूनिट बनाया गया है. यहां प्रत्येक बेड पर पाइप से आक्सीजन, वेंटिलेटर और बाइपैप मशीनें लगी हुई हैं. इस तरह से 17 वेंटिलेटर रिजर्व में रखे गए हैं. इसे संचालित करने के लिए दो आपरेटर और महज एक विशेषज्ञ हैं. एचडीयू में कोरोना के गंभीर मरीज रखे जाते हैं. वर्तमान में 41 मरीज सामान्य वार्ड में रखे गए हैं.

बस्तीः सरकार और जिला प्रशासन भले ही कोरोना मरीजों को इलाज को लेकर आल इज वेल का दावा कर रहा हो लेकिन जिले में जमीन हकीकत इसके विपरीत है. हकीकत यह है कि बस्ती मेडिकल कॉलेज मरीज बिना सोर्स के भर्ती नहीं किए जा रहे हैं. जबकि अंदर बेड खाली है और बाहर मरीज तड़प रहे हैं. महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज से संबद्ध कैली हॉस्पिटल 350 बेड का है लेकिन 200 बेड ही संचालित किया जा रहा है. पांच वार्डों में लगे डेढ़ सौ बेड ताले में कैद हैं.

मरीजों को भर्ती करने की प्रक्रिया जटिल
प्रधानाचार्य की मनमानी का आलम यह है कि कैली हॉस्पिटल में ईएमओ को कोविड के मरीज भर्ती करने के लिए अनुमति लेनी होती है. यह प्रक्रिया इतनी लंबी है कि इसमें कोरोना के गंभीर मरीज बेड के इंतजार में सुबह से शाम तक बाहर ही पड़े रह जाते हैं. जबकि अस्पताल के वार्ड में खाली हैं. बेड खाली रहने के बाद भी हॉस्पिटल में मरीजों को जगह पाने के लिए सांसद, विधायक के अलावा अफसरों से सिफारिश करानी पड़ रही है. मेडिकल कॉलेज हो या जिला अस्पताल, जहां कोरोना के मरीज भर्ती किए जा रहे हैं, वहां 48 घंटे ऑक्सीजन का बैकअप रखने का शासनादेश है. लेकिन बस्ती के मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन की डिमांड के अनुसार ही ऑक्सीजन चिकित्सकों को नहीं मिल पा रहा है.

मेडिकल कॉलेज को आवश्यकता से कम मिल रहे ऑक्सीजन सिलेंडर
चिकित्सकों की मानें मेडिकल कॉलेज में कोविड के 100 से अधिक मरीज भर्ती हैं. इनके लिए प्रतिदिन पांच सौ आक्सीजन सिलेंडर चाहिए, लेकिन मेडिकल कॉलेज में 495 सिलेंडर ही हैं. ऑक्सीजन की कमी न हो इसके लिए नायब तहसीलदार और लेखपाल की ड्यूटी मगहर में ऑक्सीजन प्लांट पर लगाई गई है. दो वाहन मय चालक सिलेंडर लाने और ले जाने के लिए लगाए गए हैं. जैसे ही पचास सिलेंडर खाली होते हैं, गाड़ी दौड़ा दी जाती है. एक सिलेंडर में 7.84 घनमीटर गैस होती है. सामान्य मरीज के लिए एक सिलेंडर पर्याप्त है. डॉक्टरों के अनुसार कोरोना के गंभीर मरीज के लिए चार से पांच सिलेंडर लग जाते हैं.

बेड के लिए दिनभर परेशान रही मरीज के परिजन
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक कोविड मरीज को उसके स्वजन ले गए तो वहां से चिकित्सक ने कैली हास्पिटल रेफर कर दिया. सुबह 10 बजे से लेकर दो बजे तक वह बेड के लिए बाहर परिजन मरीज को लेकर परेशान रहे लेकिन बेड नहीं मिला. हालत बिगड़ने लगी तो लेकर चले गए. वहीं, सीडीओ राजेश प्रजापति का कहना है कि अब मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था सुधर रही है.

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मेडिकल कॉलेज में यह है सुविधाएं
बता दें कि मरीजों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मिले, इसके लिए कोरोना की पहली लहर में ही मेडिकल कॉलेज को संसाधनों से लैस किया गया था. यहां 107 वेटिंलेटर मुहैया कराए गए. इसके अलावा आरटीपीसीआर जांच के लिए अत्याधुनिक लैब, सीटी स्कैन सहित अन्य जरूरी इंतजाम किए गए. हास्पिटल में 240 बेड पर पाइप से आक्सीजन की सप्लाई है, जबकि 110 बेड पर सिलेंडर के जरिए ऑक्सीजन देने की व्यवस्था है. 240 में से 90 बेड को एचडीयू यानी हाईडिपेंसी यूनिट बनाया गया है. यहां प्रत्येक बेड पर पाइप से आक्सीजन, वेंटिलेटर और बाइपैप मशीनें लगी हुई हैं. इस तरह से 17 वेंटिलेटर रिजर्व में रखे गए हैं. इसे संचालित करने के लिए दो आपरेटर और महज एक विशेषज्ञ हैं. एचडीयू में कोरोना के गंभीर मरीज रखे जाते हैं. वर्तमान में 41 मरीज सामान्य वार्ड में रखे गए हैं.

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