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आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जयंती: एक किताब को मोहताज है 'हिन्दी के सिरमौर' के नाम का पुस्तकालय

अपनी रचनाओं के बल पर दुनिया में हिंदी साहित्य का डंका बजाने वाले आचार्य राम चंद्र शुक्ल का गांव उपेक्षा का शिकार होता दिख रहा है. उनकी स्मृतियों को संजोने और आधुनिक पीढ़ी को उनकी उपलब्धियों से रूबरू कराने के लिए निर्मित पुस्तकालय में रखी किताबों को दीमक चाट रहे हैं.

रामचंद्र शुक्ल के नाम के पुस्तकालय में नहीं है एक भी किताब.
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Published : Oct 4, 2019, 11:40 PM IST

बस्ती: हिंदी भाषा के सिरमौर बस्ती के लाल आचार्य रामचन्द्र शुक्ल खुद अपनी ही जन्मभूमि पर उपेक्षित दिख रहे हैं. अगर हिंदी दिवस न हो तो शहर में लगी उनकी मूर्ति पर शायद एक फूल भी न चढ़े. जन्मस्थान अगौना में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नाम पर लाइब्रेरी तो बना दी गई, लेकिन आलम ये है कि लाइब्रेरी एक किताब के लिए तरस रही है.

देखें वीडियो.

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यहां जन्में थे हिंदी भाषा के सिरमौर
दरअसल आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी को उस दौर में पुष्पित और पल्लवित किया था, जब देश में विदेशी भाषा का प्रभाव था. आचार्य रामचंद्र शुक्ल को भारत के साथ-साथ विदेशों में भी पढ़ा जाता है. उनका जन्म बस्ती जनपद के बहादुरपुर ब्लाक के अगौना गांव में 4 अक्टूबर वर्ष 1884 में शरद पूर्णिमा की तिथि को हुआ था. उनके पिता चंद्रबली शुक्ल सरकारी कर्मचारी थे.

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पुस्तकालय में नहीं है पुस्तकें
गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर धर्मशाला, पुस्तकालय, वाचनालय, शोध भवन की स्थापना उसी जगह हुई है, जहां उनका पैतृक आवास था. लेकिन सब कुछ पूरी तरह उपेक्षित है. आलम यह है कि उनके नाम पर स्थापित पुस्तकालय में पुस्तकें ही नहीं है. आज भी पुस्तकालय के कमरे धूल से पटे हुए हैं. वहीं गांव की एक महिला तस्लीम ने बताया कि यहां हमेशा ताला ही लगा रहता है. धर्मशाला भवन के दो कमरों में कबाड़ भरा हैं, इतना ही नहीं आलम ये है कि यहां बिजली की आपूर्ति भी नहीं होती है.

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नहीं होता है किसी कार्यक्रम का आयोजन
पूर्व प्रधानाचार्य डॉ कृष्ण प्रसाद मिश्र का कहना है कि सरकार की तरफ से यहां न कभी किसी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है और न ही किसी प्रकार की सरकारी मदद की जाती है. वह कहते हैं कि तत्कालीन मंडलायुक्त ने गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर पुस्तकालय, वाचनालय का शिलान्यास किया था. तत्कालीन जिलाधिकारी देवेंद्र त्रिपाठी ने भवन का उद्घाटन किया था, लेकिन साहित्य अध्ययन में कोई प्रगति नहीं हुई. उन्होंने कहा कि सांसद से लेकर किसी विधायक ने कभी कोई मदद नहीं की.

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साहित्यकार राजेन्द्र नाथ तिवारी ने जताया खेद
साहित्यकार राजेन्द्र नाथ तिवारी ने खेद जताते हुए कहा कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल की उपेक्षा बस्ती के साथ-साथ पूरे देश के लिए दुर्भाग्य की बात है. उन्होंने कहा कि इसकी दुर्दशा के सबसे बड़े कारक हिंदी के नाम पर लाखों रुपये लेने वाले लोग हैं.

बस्ती: हिंदी भाषा के सिरमौर बस्ती के लाल आचार्य रामचन्द्र शुक्ल खुद अपनी ही जन्मभूमि पर उपेक्षित दिख रहे हैं. अगर हिंदी दिवस न हो तो शहर में लगी उनकी मूर्ति पर शायद एक फूल भी न चढ़े. जन्मस्थान अगौना में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नाम पर लाइब्रेरी तो बना दी गई, लेकिन आलम ये है कि लाइब्रेरी एक किताब के लिए तरस रही है.

देखें वीडियो.

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यहां जन्में थे हिंदी भाषा के सिरमौर
दरअसल आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी को उस दौर में पुष्पित और पल्लवित किया था, जब देश में विदेशी भाषा का प्रभाव था. आचार्य रामचंद्र शुक्ल को भारत के साथ-साथ विदेशों में भी पढ़ा जाता है. उनका जन्म बस्ती जनपद के बहादुरपुर ब्लाक के अगौना गांव में 4 अक्टूबर वर्ष 1884 में शरद पूर्णिमा की तिथि को हुआ था. उनके पिता चंद्रबली शुक्ल सरकारी कर्मचारी थे.

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पुस्तकालय में नहीं है पुस्तकें
गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर धर्मशाला, पुस्तकालय, वाचनालय, शोध भवन की स्थापना उसी जगह हुई है, जहां उनका पैतृक आवास था. लेकिन सब कुछ पूरी तरह उपेक्षित है. आलम यह है कि उनके नाम पर स्थापित पुस्तकालय में पुस्तकें ही नहीं है. आज भी पुस्तकालय के कमरे धूल से पटे हुए हैं. वहीं गांव की एक महिला तस्लीम ने बताया कि यहां हमेशा ताला ही लगा रहता है. धर्मशाला भवन के दो कमरों में कबाड़ भरा हैं, इतना ही नहीं आलम ये है कि यहां बिजली की आपूर्ति भी नहीं होती है.

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नहीं होता है किसी कार्यक्रम का आयोजन
पूर्व प्रधानाचार्य डॉ कृष्ण प्रसाद मिश्र का कहना है कि सरकार की तरफ से यहां न कभी किसी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है और न ही किसी प्रकार की सरकारी मदद की जाती है. वह कहते हैं कि तत्कालीन मंडलायुक्त ने गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर पुस्तकालय, वाचनालय का शिलान्यास किया था. तत्कालीन जिलाधिकारी देवेंद्र त्रिपाठी ने भवन का उद्घाटन किया था, लेकिन साहित्य अध्ययन में कोई प्रगति नहीं हुई. उन्होंने कहा कि सांसद से लेकर किसी विधायक ने कभी कोई मदद नहीं की.

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साहित्यकार राजेन्द्र नाथ तिवारी ने जताया खेद
साहित्यकार राजेन्द्र नाथ तिवारी ने खेद जताते हुए कहा कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल की उपेक्षा बस्ती के साथ-साथ पूरे देश के लिए दुर्भाग्य की बात है. उन्होंने कहा कि इसकी दुर्दशा के सबसे बड़े कारक हिंदी के नाम पर लाखों रुपये लेने वाले लोग हैं.

Intro:बस्ती न्यूज रिपोर्ट
प्रशांत सिंह
9161087094
8317019190

बस्ती: हिंदी भाषा के शिरमौर, बस्ती के लाल आचार्य राम चन्द्र शुक्ल खुद अपनी ही जन्मभूमि पर उपेक्षित हो रहे हैं. अगर हिंदी दिवस न हो तो शहर में लगी उनकी मूर्ति पर शायद एक फूल भी न चढ़े. जन्मस्थान अगौना में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नाम पर लाइब्रेरी बना दी गयी लेकिन वो एक किताब के लिए तरस रही है.

दरअसल आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी को उस दौर में पुष्पित और पल्लवित किया था जब देश में विदेशी भाषा का प्रभाव था. आचार्य रामचंद्र शुक्ल को भारत के साथ साथ विदेशों में भी पढ़ाया जाता है. उनका जन्म बस्ती जनपद के बहादुरपुर ब्लाक के अगौना गांव में 4 अक्टूबर वर्ष 1884 में शरद पूर्णिमा की तिथि को हुआ था. पिता चंद्रबली शुक्ल सरकारी कर्मचारी थे.




Body:गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर धर्मशाला, पुस्तकालय, वाचनालय, शोध भवन की स्थापना उसी जगह हुई है जहां उनका पैतृक आवास था. लेकिन सब कुछ पूरी तरह उपेक्षित है. हाल यह है कि उनके नाम पर स्थापित पुस्तकालय में पुस्तक ही नहीं है. आज भी पुस्तकालय के कमरे धूल से पटे हुए हैं. गांव की एक महिला तस्लीम ने बताया कि यहां हमेशा ताला ही लगा रहता है. दो कमरों के धर्मशाला भवन में कबाड़ भरे हैं. यहां बिजली की आपूर्ति नहीं होती है.

पूर्व प्रधानाचार्य डॉ कृष्ण प्रसाद मिश्र का कहना है कि सरकार की तरफ से न कभी कोई कार्यक्रम करा जाता है और न ही किसी प्रकार की सरकारी मदद की जाती है. उन्होंने बताया कि तत्कालीन मंडलायुक्त ने गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर पुस्तकालय, वाचनालय का शिलान्यास किया. साथ ही तत्कालीन जिलाधिकारी देवेंद्र त्रिपाठी ने भवन का उद्घाटन किया था. लेकिन साहित्य अध्ययन में कोई प्रगति नहीं हुई. उन्होंने कहा कि सांसद से लेकर किसी विधायक ने कभी कोई मदद नहीं की.

वहीं साहित्यकार राजेन्द्र नाथ तिवारी ने खेद जताते हुए कहा कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल की उपेक्षा बस्ती के साथ साथ पूरे देश के लिए दुर्भाग्य की बात है. उन्होंने कहा कि इसकी दुर्दशा के सबसे बड़े कारक हिंदी के नाम पर लाखों रुपये लेने वाले लोग हैं.

बाइट...स्थानीय महिला, तस्लीम
बाइट...डॉक्टर कृष्ण प्रसाद मिश्र, पूर्व प्रधानाचार्य व पुस्तकालय संरक्षक
बाइट....राजेन्द्र नाथ तिवारी, साहित्यकार


Conclusion:
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