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World Arthritis Day 2019: विश्व गठिया दिवस, जानें-  शरीर को कितना होता है नुकसान

यूपी के बरेली में विश्व गठिया रोग दिवस मनाया गया. वहीं इस मौके पर मरीजों का मुफ्त में परामर्श भी दिया गया. हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद माहेश्वरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस यानी गठिया और जोड़ों का दर्द ऐसी बीमारी है, जिसके होने की कोई निश्चित वजह बता पाना बहुत ही मुश्किल है.

डॉ प्रमेन्द्र माहेश्वरी, बरेली
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Published : Oct 12, 2019, 5:30 PM IST

बरेली: विश्व गठिया रोग दिवस के मौके पर बरेली के जाने माने हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद माहेश्वरी ने मरीजों का फ्री में इलाज किया. साथ ही इस बीमारी से जुड़े बुरे प्रभावों के बारे में भी बताया. वहीं डॉ. प्रमोद ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि किस तरह से इस बीमारी से बचा जाए.

डॉ. प्रमोद माहेश्वरी ने बताया कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस यानी गठिया और जोड़ों का दर्द ऐसी बीमारी है, जिसके होने की कोई निश्चित वजह बता पाना बहुत ही मुश्किल है. इसीलिए मेडिकल साइंस की भाषा में इसे आटो-इम्यून डिसीज कहा जाता है, जबकि आम जोड़ों के दर्द यानी अर्थराइटिस में एक बीमारी न होकर कई तरह की परेशानियां शुमार होती हैं.

विश्व गठिया दिवस पर मरीजों का किया गया फ्री में इलाज.

उन्होंने बताया कि इनमें सूजन आना और हाथ-पैर के जोड़ों में तेजदर्द खास हैं. आमतौर पर अर्थराइटिस को बुजुर्गों की लाइलाज बीमारी माना जाता है, लेकिन यह धारणा सही नहीं है. इस बीमारी में होने वाले जोड़ों के दर्द की एक वजह रूमेटॉयड अर्थराइटिस हो सकती है. रूमेटॉयड अर्थराइटिस आमतौर पर मझौली उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाती है. यही नहीं, पुरुषों के मुकाबले चार गुणा ज्यादा महिलाएं इसकी गिरफ्त में आती हैं.

पढ़ें: सुरमा बेचने वाले ने बनाई अनोखी बाइक, बोलने पर होती है स्टार्ट

रूमेटॉयड अर्थराइटिस का असर सबसे ज्यादा होता है जोड़ों पर
डॉ. प्रमेन्द्र माहेश्वरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि हमारा इम्यून सिस्टम प्रोटीन, बायोकेमिकल्स और कोशिकाओं से मिलकर बनता है, जो हमारे शरीर को बाहरी चोटों और घुसपैठियों, जैसे कि बैक्टीरिया तथा वायरस से सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन कभी-कभी इस सिस्टम से भी गलती हो जाती है और यह शरीर में मौजूद प्रोटीन्स को ही नष्ट करना शुरू कर देता है, जिससे रूमेटॉयड अर्थराइटिस जैसी ऑटो-इम्यून बीमारियां हो जाती हैं.

उन्होंने बताया कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस का असर जोड़ों पर सबसे ज्यादा होता है, लेकिन एक सीमा के बाद यह स्नायुतंत्र और फेफड़ों पर भी असर डालने लगता है. रूमेटॉयड अर्थराइटिस आमतौर पर 30 से 45 साल के लोगों को होता है. सही समय पर इसका डायग्नोसिस होने पर दवाओं से इसका इलाज संभव है.

बरेली: विश्व गठिया रोग दिवस के मौके पर बरेली के जाने माने हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद माहेश्वरी ने मरीजों का फ्री में इलाज किया. साथ ही इस बीमारी से जुड़े बुरे प्रभावों के बारे में भी बताया. वहीं डॉ. प्रमोद ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि किस तरह से इस बीमारी से बचा जाए.

डॉ. प्रमोद माहेश्वरी ने बताया कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस यानी गठिया और जोड़ों का दर्द ऐसी बीमारी है, जिसके होने की कोई निश्चित वजह बता पाना बहुत ही मुश्किल है. इसीलिए मेडिकल साइंस की भाषा में इसे आटो-इम्यून डिसीज कहा जाता है, जबकि आम जोड़ों के दर्द यानी अर्थराइटिस में एक बीमारी न होकर कई तरह की परेशानियां शुमार होती हैं.

विश्व गठिया दिवस पर मरीजों का किया गया फ्री में इलाज.

उन्होंने बताया कि इनमें सूजन आना और हाथ-पैर के जोड़ों में तेजदर्द खास हैं. आमतौर पर अर्थराइटिस को बुजुर्गों की लाइलाज बीमारी माना जाता है, लेकिन यह धारणा सही नहीं है. इस बीमारी में होने वाले जोड़ों के दर्द की एक वजह रूमेटॉयड अर्थराइटिस हो सकती है. रूमेटॉयड अर्थराइटिस आमतौर पर मझौली उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाती है. यही नहीं, पुरुषों के मुकाबले चार गुणा ज्यादा महिलाएं इसकी गिरफ्त में आती हैं.

पढ़ें: सुरमा बेचने वाले ने बनाई अनोखी बाइक, बोलने पर होती है स्टार्ट

रूमेटॉयड अर्थराइटिस का असर सबसे ज्यादा होता है जोड़ों पर
डॉ. प्रमेन्द्र माहेश्वरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि हमारा इम्यून सिस्टम प्रोटीन, बायोकेमिकल्स और कोशिकाओं से मिलकर बनता है, जो हमारे शरीर को बाहरी चोटों और घुसपैठियों, जैसे कि बैक्टीरिया तथा वायरस से सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन कभी-कभी इस सिस्टम से भी गलती हो जाती है और यह शरीर में मौजूद प्रोटीन्स को ही नष्ट करना शुरू कर देता है, जिससे रूमेटॉयड अर्थराइटिस जैसी ऑटो-इम्यून बीमारियां हो जाती हैं.

उन्होंने बताया कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस का असर जोड़ों पर सबसे ज्यादा होता है, लेकिन एक सीमा के बाद यह स्नायुतंत्र और फेफड़ों पर भी असर डालने लगता है. रूमेटॉयड अर्थराइटिस आमतौर पर 30 से 45 साल के लोगों को होता है. सही समय पर इसका डायग्नोसिस होने पर दवाओं से इसका इलाज संभव है.

Intro:एंकर:-आज विश्व गठिया रोग दिवस है।विश्व गठिया रोग दिवस पर बरेली के जानेमाने वरिष्ठ हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ प्रमोद माहेश्वरी ने मरीजो का फ्री में इलाज किया।साथ ही इस बीमारी से जुड़े बुरे प्रभावों के बारे में भी बताया साथ ही साथ किस तरह से इस बीमारी से बचा जाए इसके बारे में बताया और इस रोग को पूरे देश खत्म करने के लिए संकल्प लिया।


Body:Vo1:-उन्होंने बताया कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस यानी गठिया और जोड़ों का दर्द ऐसी बीमारी है, जिसके होने की कोई निश्चित वजह बता पाना बहुत ही मुश्किल है। इसीलिए मेडिकल साइंस की भाषा में इसे आटो-इम्यून डिज़ीज़ कहा जाता है। जबकि आम जोड़ों के दर्द यानी अर्थराइटिस में एक बीमारी न होकर कई तरह की परेशानियां शुमार होती हैं। इनमें सूजन आना और हाथ-पैर के जोड़ों में तेजदर्द खास हैं। आमतौर पर अर्थराइटिस को बुजुर्गो की लाइलाज बीमारी माना जाता है, लेकिन यह धारणा सही नहीं है। इस बीमारी में होने वाले जोड़ों के दर्द की एक वजह रूमेटॉयड अर्थराइटिस हो सकती है। रूमेटॉयड अर्थराइटिस आमतौर पर मझौली उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाती है। यही नहीं, पुरुषों के मुकाबले चार गुणा ज्यादा महिलाएं इसकी गिरफ्त में आती हैं।


बाइट:-प्रमेन्द्र माहेश्वरी (वरिष्ठ हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ)


दरअसल, हमारा इम्यून सिस्टम प्रोटीन, बायोकेमिकल्स और कोशिकाओं से मिलकर बनता है, जो हमारे शरीर को बाहरी चोटों और घुसपैठियों, जैसे कि बैक्टीरिया तथा वायरस से सुरक्षा प्रदान करता है। लेकिन कभी-कभी इस सिस्टम से भी गलती हो जाती है और यह शरीर में मौजूद प्रोटीन्स को ही नष्ट करना शुरू कर देता है, जिससे रूमेटॉयड अर्थराइटिस जैसी ऑटो-इम्यून बीमारियां हो जाती हैं। रूमेटॉयड अर्थराइटिस का असर जोड़ों पर सबसे ज्यादा होता है, लेकिन एक सीमा के बाद यह स्नायुतंत्र और फेफड़ों पर भी असर डालने लगता है।रूमेटॉयड अर्थराइटिस आमतौर पर 30 से 45 साल के लोगों को होता है। सही समय पर इसका डायग्नोसिस होने पर दवाओं से इसका इलाज संभव है। इसका पता सही समय पर लगाने के लिए रूमेटॉलोजिस्ट की राय से कुछ टेस्ट कराने पड़ते हैं। जब आपको जोड़ों में अकड़न, दर्द या सूजन की शिकायत हो तो चेत जाना चाहिए। अगर ठीक समय पर इसका इलाज न कराया जाए, तो शरीर बेडौल हो जाने का जोखिम रहता है।


बाइट:-अभिनव कुमार





Conclusion:Fvo:- बीमारी के बारे में गहरी जानकारी रखना भी रूमेटॉयड अर्थराइटिस के मरीजों की तकलीफ कम करने में काफी मददगार साबित हो सकता है। कई लोग साइड इफैक्ट्स के डर से दवाएं खाने से परहेज करते हैं। उन्हें समझ लेना चाहिए कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस की दवाएं पहले की तुलना में काफी एडवांस्ड हो चुकी हैं और इनके साइड इफैक्ट्स भी काफी कम हो गए हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि आजकल दवाएं सुरक्षा के लिहाज से काफी कड़े और गहरे परीक्षण के बाद ही बाजार में उतारी जाती हैं, और इसीलिए ये पहले से ज्यादा असरदार साबित होती हैं।


रंजीत शर्मा

9536666643

ईटीवी भारत, बरेली।

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