बरेली: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पहले प्रदेश भर में इन दिनों चुनाव से संबंधित सभी कार्यों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. माना जा रहा है कि मार्च के आखिर तक ग्राम पंचायत के चुनाव और अप्रैल तक जिला पंचायत का चुनाव हो सकता है. गांवों में लोग अब अपने गांव के वर्तमान हालातों पर चर्चा कर रहे हैं. गांवों में कुछ लोग अपने लिए सम्भावनाएं भी तलाश रहे हैं तो वहीं पूर्व में पांच साल तक गांवों के विकास की बात करके ग्राम पंचायत सदस्य, बीडीसी सदस्य, ग्राम प्रधान चुने गए लोगों ने क्या किया, उसका भी मूल्यांकन ग्रामीण कर रहे हैं.
ईटीवी भारत की टीम ने बरेली के कई गांवों का दौरा किया. इस दौरान लोग अपनी समस्याएं गिनाते मिले. वहीं कुछ लोग जरूर यह मानते हैं कि गांव में विकास हुआ है, लेकिन इतना नहीं हुआ जितना कि उन्हें उम्मीद थी. आज भी अधिकतर गांवों में साफ-सफाई पर गांव की सरकार विशेष ध्यान नहीं दे पाई है.
नहीं दी गई विकास को तरजीह
जिले में 1,193 ग्राम पंचायतें हैं. गांव की सरकार चलाने का जिम्मा सम्भालने वालों ने क्या कुछ विकास किया, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक तो गांवों में अभी भी सबकुछ ठीक नहीं हो पाया. मतलब ये कि अभी भी गांवों की दिशा और दशा नहीं सुधरी. इसकी पुष्टि खुद जिले के अधिकारी ही करते हैं.
स्वीकृत धनराशि भी नहीं हो सकी खर्च
ईटीवी भारत ने बरेली के जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) धर्मेंद्र कुमार से बात की. उनसे ये समझने की कोशिश की कि आखिर जिले के ग्राम प्रधान कितनी निधि का इस्तेमाल कर पाए तो जो जानकारी उन्होंने दी, वह भी कम चोंकाने वाली नहीं है. दरअसल, वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए गांवों के विकास के लिए 103 करोड़ रुपये की धनराशि बरेली को प्राप्त हुई थी, ताकि गांवों की तस्वीर बदली जा सके, लेकिन सिर्फ 45 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाया.
करीब 60 प्रतिशत धन का नहीं हुआ इस्तेमाल
डीपीआरओ धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि शेष धनराशि करीब 63 करोड़ रुपये सभी प्रधानों के खाते सीज होने के बाद सरकारी खाते में अभी सुरक्षित है. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन कायाकल्प के तहत गांवों में सरकारी विद्यालयों की दिशा-दशा सुधारने पर पैसा खर्च किया गया. इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी बनाए गए.
अब एक बार फिर गांवों में चुनाव होना है. ऐसे में जहां अपने प्रधान के कार्यों से कुछ लोग चुप्पी साधे दिखते हैं तो कुछ विकास न कराने के लिए खरी खोटी भी सुना रहे हैं. अगर ये धन गांव के चुने जनप्रतिनिधियों ने गांव के विकास कार्यों पर खर्च किया होता तो न सिर्फ गांवों की तस्वीर बदलती बल्कि ग्रामीण भी खुश नजर आते.