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वुहान डायरी: काल्पनिकता के कथानक पर कोरोना की सच्चाई

कोरोना से अभी भी दुनिया दो चार हो रही है. शायद ही कोई देश हो जो इसके दंश से बचा हो. हिंदुस्तान भी इससे अछूता नहीं रहा. उस दौर की याद आते ही कौंध जाती है चुप गलियां, शांत सड़कें और शहरों में पसरा सन्नाटा. लॉकडाउन का दौर सभी के लिए मुश्किल भरा रहा. आज हम बात करेंगे उसी दौर को बहुत करीब से जीने वाले और अपने अनुभवों को अपनी किताब 'वुहान डायरी' में उकेरने वाले निर्मल सक्सेना से. जिन्होंने कोरोना बीमारी, पलायन करते मजदूरों की मजबूरी और उनके दर्द को अपनी किताब में सजीव दर्ज किया है. तो आईए रुबरू होते हैं निर्मल सक्सेना से.

काल्पनिकता के कथानक पर कोरोना की सच्चाई
काल्पनिकता के कथानक पर कोरोना की सच्चाई
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Published : Nov 11, 2021, 9:11 AM IST

बरेली: कोरोना का दौर भयावह था जिसे कोई याद नहीं करना चाहता. उस दौर में लोगों ने अपनों को खो दिया, जिनका ख्याल आते ही मन भारी हो जाता है. किसी सिर से बाप का साया उठ गया तो कोई अनाथ हो गया. किसी की नौकरी गई तो किसी ने अपना रोजगार खो दिया. पलायन करते मजदूरों के चेहरे अभी वैसे ही याद हैं. उन्ही हालातों को, उस दौर को बरेली जिले के कस्बा भोजीपुरा के गांव पीपलसाना चौधरी के रहने निर्मल सक्सेना ने अपनी किताब वुहान डायरी में लिखा है. वह करते हैं कि उनकी कहानी काल्पनिक है मगर कोरोनो की उत्तपत्ति को लेकर एक हजार सवालों के नौ सौ निन्यानबे जवाब उसमें शामिल हैं.


वह कहते हैं कि इस बीमारी के बाद लागू किए गए लॉकडाउन के बाद लोगों का जीवन जैसे थम सा गया. बाहर रहने बाले मजदूर प्रवासी हो चुके थे, जिनको घर लौटने लगे थे. जब तक लोगों के पास अपनी जामा पूंजी रही तब तक वह अपनी रोजी रोटी की व्यवस्था करते रहे उसके बाद सीधे अपने घर को पैदल ही पलायन को मजबूर हो गए.

वुहान डायरी
वुहान डायरी
कोई साधन घर वापसी का नहीं था, सिर्फ पैदल ही घर जाने लगे. कुछ लोग इनमें ऐसे थे जिन्हें अपना घर भी नासीब नहीं हुआ, क्योंकि कोरोना वायरस अपने कदम पसार चुका था. स्थति यह थी कि आदमी आदमी से ही डरने लगा.

लेखक निर्मल सक्सेना बताते हैं कि उन्होंने वुहान डायरी में कोरोना वायरस पर एक विस्तार काल्पनिकता का चित्र उकेरा है, वह कहते हैं कि उनकी किताब में चीन से कैसे निकला कोरोना वायरस और उससे लोगों को कैसे प्रभवित किया पर विस्तार से लिखा है.

लेखक और शायर निर्मल सक्सेना ने बताया कि वुहान डायरी, एक उपन्यास के तौर पर लिखी गई एक काल्पनिक कथा है मगर उनका दावा है कि इस उपन्यास में जो भी है वह सौ प्रतिशत सही है.

काल्पनिकता के कथानक पर कोरोना की सच्चाई

यह भी पढ़ें- योगी कैबिनेट ने कई प्रस्तावों को दी मंजूरी, गरीबों को फ्री अनाज देने सहित ये हुए फैसले

बता दें कि कोरोना के दौर में उत्तरप्रदेश शासन और प्रशासन ने बहुत ही तत्परता के साथ लोगों की मदद करनी शुरू की थीं, प्रवासियों के लिए निजी बस सेवाएं, सूखा राशन, भोजन, दवाई की उपलब्धता, ऑक्सीजन की व्यवस्था, आदि बड़े पैमाने पर शुरू किया जो आज भी अनवरत जारी है. वहीं गौर करें तो सरकार की कोरोना के खिलाफ रणनीति और प्रसाशन की तत्परता से भारत ने 100 करोड़ के वैक्सीनेशन को भी छू लिया.

बता दें कि 30 अप्रैल को यूपी में सर्वाधिक एक्टिव केस 3 लाख 10 हजार 783 रहे. अब यह संख्या 85 हो गयी. वहीं रिकवरी रेट मार्च में जहां 98.2 फीसदी थी जो अप्रैल में घटकर 76 फीसद तक पहुंच गई थी. वर्तमान में फिर रिकवरी रेट 98.7 फीसद हो गई है.

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बरेली: कोरोना का दौर भयावह था जिसे कोई याद नहीं करना चाहता. उस दौर में लोगों ने अपनों को खो दिया, जिनका ख्याल आते ही मन भारी हो जाता है. किसी सिर से बाप का साया उठ गया तो कोई अनाथ हो गया. किसी की नौकरी गई तो किसी ने अपना रोजगार खो दिया. पलायन करते मजदूरों के चेहरे अभी वैसे ही याद हैं. उन्ही हालातों को, उस दौर को बरेली जिले के कस्बा भोजीपुरा के गांव पीपलसाना चौधरी के रहने निर्मल सक्सेना ने अपनी किताब वुहान डायरी में लिखा है. वह करते हैं कि उनकी कहानी काल्पनिक है मगर कोरोनो की उत्तपत्ति को लेकर एक हजार सवालों के नौ सौ निन्यानबे जवाब उसमें शामिल हैं.


वह कहते हैं कि इस बीमारी के बाद लागू किए गए लॉकडाउन के बाद लोगों का जीवन जैसे थम सा गया. बाहर रहने बाले मजदूर प्रवासी हो चुके थे, जिनको घर लौटने लगे थे. जब तक लोगों के पास अपनी जामा पूंजी रही तब तक वह अपनी रोजी रोटी की व्यवस्था करते रहे उसके बाद सीधे अपने घर को पैदल ही पलायन को मजबूर हो गए.

वुहान डायरी
वुहान डायरी
कोई साधन घर वापसी का नहीं था, सिर्फ पैदल ही घर जाने लगे. कुछ लोग इनमें ऐसे थे जिन्हें अपना घर भी नासीब नहीं हुआ, क्योंकि कोरोना वायरस अपने कदम पसार चुका था. स्थति यह थी कि आदमी आदमी से ही डरने लगा.

लेखक निर्मल सक्सेना बताते हैं कि उन्होंने वुहान डायरी में कोरोना वायरस पर एक विस्तार काल्पनिकता का चित्र उकेरा है, वह कहते हैं कि उनकी किताब में चीन से कैसे निकला कोरोना वायरस और उससे लोगों को कैसे प्रभवित किया पर विस्तार से लिखा है.

लेखक और शायर निर्मल सक्सेना ने बताया कि वुहान डायरी, एक उपन्यास के तौर पर लिखी गई एक काल्पनिक कथा है मगर उनका दावा है कि इस उपन्यास में जो भी है वह सौ प्रतिशत सही है.

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बता दें कि कोरोना के दौर में उत्तरप्रदेश शासन और प्रशासन ने बहुत ही तत्परता के साथ लोगों की मदद करनी शुरू की थीं, प्रवासियों के लिए निजी बस सेवाएं, सूखा राशन, भोजन, दवाई की उपलब्धता, ऑक्सीजन की व्यवस्था, आदि बड़े पैमाने पर शुरू किया जो आज भी अनवरत जारी है. वहीं गौर करें तो सरकार की कोरोना के खिलाफ रणनीति और प्रसाशन की तत्परता से भारत ने 100 करोड़ के वैक्सीनेशन को भी छू लिया.

बता दें कि 30 अप्रैल को यूपी में सर्वाधिक एक्टिव केस 3 लाख 10 हजार 783 रहे. अब यह संख्या 85 हो गयी. वहीं रिकवरी रेट मार्च में जहां 98.2 फीसदी थी जो अप्रैल में घटकर 76 फीसद तक पहुंच गई थी. वर्तमान में फिर रिकवरी रेट 98.7 फीसद हो गई है.

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