बरेली: 1857 की क्रांति का बिगुल बजने के साथ ही पूरे देश में आजादी की जो अलख जगी उससे रुहेलखंड मंडल भी अछूता नहीं रहा. यहां के नवाब और क्रांतिकारी हाफिज रहमत खान के पोते खान बहादुर खान भी इस जंग में कूद पड़े. 1857 की क्रांति में खान बहादुर खान की अगुआई में ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था. तब लगभग एक वर्ष तक बरेली फिरंगियों से आजाद रही थी. आज महान क्रांतिकारी खान बहादुर खान की मजार वीरान और उजाड़ है. न तो इसपर प्रशासन का कोई ध्यान है न ही कोई रखरखाव है. खान बहादुर खान के वंशज लगातार प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि इस मजार का सौंदर्यीकरण कराया जाए.
मजार बयां कर रही बदहाली की दास्तां
खान बहादुर खान के वंशज पप्पन खान का कहना है कि खान बहादुर खान की मजार लगातार बदहाली में रही है. प्रशासन इस ओर न तो ध्यान दे रहा है न ही इसका कोई सौंदर्यीकरण करा रहा है. वहां जाने की जितनी भी रोड हैं वह सब टूटी हुई हैं. आने-जाने का रास्ते खराब होने से न तो वहां पर कोई आता है और न ही उधर से कोई निकलना चाहता है. पप्पन खान का यह भी कहना था कि बरसों से उनके परिवार को केवल सरकार की तरफ से झूठे आश्वासन ही मिले हैं. उनका परिवार भी बदहाली की स्थिति में जी रहा है न तो जीविका का कोई पर्याप्त साधन है और न ही घर में किसी को सरकारी नौकरी मिली है. उनकी मांग है कि प्रशासन मजार के पास की रोड बनवाए और खान बहादुर खान के नाम से एक गेट बनाए. साथ ही खान बहादुर खान के वंशजों के लिए सरकार कुछ करें, जिससे उनका परिवार दो वक्त की रोटी खा सकें.
परिवार में रोजी-रोटी के लाले
खान बहादुर खान के वंशजों ने कहा कि वह प्रशासन से कई बार परिवार और मजार की बदहाली की दास्तां बता चुके हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासन लगातार उनको दरकिनार कर रहा है. वह कई सालों से अपने परिवार और मजार की बदहाली की दास्तां बता चुकी हैं, लेकिन प्रशासन और शासन किसी प्रकार की कोई मदद नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा कि वह पढ़ी-लिखी हैं, अगर प्रशासन उन्हें सरकारी नौकरी दे तो वह अपने परिवार का पालन पोषण कर सकती हैं.
जेल शिफ्ट होने के बाद नहीं हुआ मजार का विकास
मजार की देखरेख करने वाले लियाकत अली खान का भी यही कहना है कि इस मजार का सरकार सौंदर्यीकरण कराए. प्रशासन खान बहादुर खान के नाम से और रोड और गेट बनवाए. लियाकत अली खान का यह भी कहना था कि जब तक यहां जेल संचालित होती थी तो जेल प्रशासन की तरफ से इसका लगातार रखरखाव किया जाता था. जब से यह जेल दूसरी जगह शिफ्ट हुई है तब से यह अपनी बदहाली की दास्तां सुना रही है.
बता दें कि खान बहादुर खान को पुरानी कोतवाली में फांसी दी गयी थी. उसके बाद अंग्रेजों को भय था कि लोग वहां पर इबादत न करने लगे, जिसके कारण खान बहादुर खान को जिला जेल में बेड़ियों के साथ ही दफन कर दिया गया. जेल में बंद खान बहादुर खान की कब्र को काफी लम्बी जद्दोजेहाद के बाद जेल से बाहर निकला जा सका. अब यहां से जिला जेल शिफ्ट हो जाने के कारण शहीद की मजार की देखभाल करने वाला कोई नहीं बचा हैं. शहीद की यह मजार सिर्फ एक यादगार है पर उन्हें याद करने यहां कोई नहीं आता.