बाराबंकी: मेंथा और अफीम की खेती के साथ ही बाराबंकी जिला आम के लिए भी खास है. तकरीबन 250 किस्मों के आम यहां पाए जाते हैं. याकूती और लाल दशहरी जैसी कुछ प्रजातियां तो बाराबंकी के सिवाय कहीं भी नहीं मिलती. लेकिन, वक्त गुजरने के साथ ही ये किस्में खत्म होती जा रही हैं. ऐसे में आम की इन दुर्लभ प्रजातियों को बचाने के लिए लखनऊ के रहमानखेड़ा स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने आम उत्पादकों को आगे आने को कहा है.
जिले में मसौली, बड़ागांव और भयारा के क्षेत्र में आम के बड़े बागान हैं. बड़े पैमाने पर यहां आम का उत्पादन होता है. जिले की बेहतरीन मिट्टी और जलवायु से यहां का आम बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट होता है. यहां से दूर-दराज के बाजारों में बाराबंकी का आम अपनी खास अहमियत दिखाता है. यहां के देसी आम की बहुत ही डिमांड है. आम की नई किस्मों के आ जाने और काफी पुराने होने के चलते धीरे-धीरे देसी आम के पेड़ खत्म होते जा रहे हैं. ऐसे में आम उत्पादकों के सामने इन्हें बचाये रखने की बड़ी चुनौती बन गई है.
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केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा लखनऊ (Central Institute for Subtropical Harti culture) के वैज्ञानिकों का कहना है कि मलिहाबाद में भी आम की तमाम किस्में थी. लेकिन वे भी खत्म होती जा रही थी, जिनके संरक्षण के लिए इंस्टीट्यूट ने काम किया और इन किस्मों की कलम बनाई. फिर इनका दिल्ली स्थित PPVFRA यानी (Protection of Plant Varieties and Farmers Rights Authority) पौध किस्म और किसान अधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन कराया. जिससे कि इन किस्मों का संरक्षण हो सके.
वैज्ञानिकों का कहना है कि बाराबंकी की इन दुर्लभ प्रजातियों को बचाने के लिए आम उत्पादकों को आगे आना होगा. आम उत्पादक भी चाहते हैं कि वे अपने बुजुर्गों की विरासत को बचायें.
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