बाराबंकी: जनपद में महिला शिक्षकों ने योगी सरकार से माहवारी के दौरान तीन दिन के पीरियड लीव की मांग की है. महिला शिक्षकों ने जिले के सभी विधायकों के आवास पर पहुंचकर अपनी मांग को सीएम योगी से पूरी कराने की गुहार लगाई. उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ के बैनर तले इन शिक्षिकाओं ने भाजपा और सपा सभी विधायकों से मिलकर कहा कि जन कल्याणकारी योजनाओं और नारी सशक्तिकरण के मद्देनजर उनकी ये मांग संवैधानिक है. महिला शिक्षकों ने संविधान की धारा 15 और 42 का भी हवाला दिया जिसके अंतर्गत राज्य महिलाओं व लड़कियों के कल्याण के लिए विशेष उपबन्ध कर सकता है.
उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ की जिलाध्यक्ष अलका गौतम की अगुवाई में शिक्षिकाओं ने सरकारी सेवारत समस्त महिला शिक्षकों और महिला कर्मचारियों को तीन दिन का पीरियड अवकाश दिए जाने की गुहार लगाई है. इन शिक्षिकाओं ने तर्क दिया कि तीन दिन का विशेष अवकाश दिया जाना इसलिए जरूरी है कि इस कठिन समय मे महिलाओं की शारीरिक और मानसिक स्थिति अन्य सामान्य दिनों की तुलना में अलग और तकलीफ देय होती है. इस समय कमजोरी और पेट मे दर्द भी बना रहता है .
महिला शिक्षकों का कहना है कि डॉक्टरों की सलाह भी है कि महिलाओं को इन दिनों भागदौड़ से बचना चाहिए अन्यथा यूटेरस से होने वाली गम्भीर समस्या के कारण उनका स्वास्थ्य प्रभावित होगा,जिसका असर उनके गर्भ पर भी पड़ सकता है.
महिला शिक्षकों ने हैदरगढ़ से भाजपा विधायक बैजनाथ रावत के आवास ग्राम भुलभुलिया,दरियाबाद से भाजपा विधायक सतीश शर्मा के आवास नई सड़क,रामनगर से भाजपा विधायक शरद अवस्थी के विकास भवन रोड स्थित आवास पर जाकर उनको सीएम योगी को सम्बोधित ज्ञापन सौंपा. वहीं इन महिला शिक्षकों ने सदर से सपा विधायक धर्मराज यादव के कार्यालय पहुंचकर उनको ज्ञापन सौंपा.
महिला शिक्षकों का कहना है कि तीन दिन का पीरियड लीव देने का आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 42 के अंतर्गत प्रदान किया जाए, जिससे कि महिला शिक्षकों के शारीरिक व मानसिक स्थिति जैसे पेट दर्द,जलन,डॉक्टर से सम्पर्क आदि समस्याओं का समाधान हो सके.
बिहार की तरह यूपी में भी लागू हो पीरियड अवकाश
वर्ष 1992 से बिहार राज्य में तीन दिन के पीरियड लीव का प्रावधान लागू है. महिला शिक्षकों ने कहा कि योगी सरकार महिलाओं और लड़कियों के लिए मिशन शक्ति और जन कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता के साथ चलाकर महिलाओं को सशक्त बना रही है .ऐसे में महिलाओं की इस अनिवार्य और प्राकृतिक समस्या पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए सरकारी सेवारत महिला शिक्षकों और महिला कर्मचारियों की इस मांग पर भी गौर करें.