बाराबंकी: बचपन से ही अपनी हॉकी स्टिक से जादू बिखेरने वाले मशहूर हॉकी खिलाड़ी कुंवर दिग्विजय सिंह के बारे में बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि वे न केवल हॉकी, बल्कि फुटबॉल, बैडमिंटन के साथ ही क्रिकेट के भी बेहतरीन खिलाड़ी थे. फुटबॉल में जहां उन्होंने नेशनल चैंपियनशिप खेली तो शीशमहल क्रिकेट क्लब की ओर से राष्ट्रीय क्रिकेट चैंपियनशिप में चार शतक भी लगाए थे. केडी सिंह एशिया के पहले ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें अमेरिका की हेम्स ट्राफी प्रदान की गई. जिसे खेलों का नोबेल पुरस्कार माना जाता है. ईटीवी भारत आज आपको उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से रूबरू कराएगा.
हेम्स ट्राफी पाने वाले एशिया के पहले खिलाड़ी: 2 फरवरी, 1922 को बाराबंकी में जन्मे कुंवर दिग्विजय सिंह 14 साल की उम्र में ही हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी बन गए थे. बाराबंकी के देवां में उन्होंने पहला टूर्नामेंट खेला और यही से उनके पर लग गए. 16 वर्ष तक उन्होंने उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया और फिर उसके बाद भारतीय हॉकी टीम के उपकप्तान बना दिए गए. इसके बाद 1948 में हुए ओलंपिक में वो उपकप्तान रहे तो वर्ष 1952 में हुए हेलसिंकी ओलंपिक में उन्हें कप्तान बनाया गया. इन दोनों ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने में उन्होंने अहम रोल अदा किया था और यही वजह रही कि वे एशिया के ऐसे पहले भारतीय खिलाड़ी थे, जिन्हें अमेरिका में हेम्स ट्राफी से नवाजा गया था. ये ट्राफी अमेरिका की लॉस एंजिल्स की हेम्सफर्ड फाउंडेशन प्रदान करती है. इसे खेलों का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है.
खेल के प्रति दीवानगी: केडी सिंह में खेल की दीवानगी कूट-कूट कर भरी थी. इसके लिए वो हर कुर्बानी देने को तैयार थे. जिस दिन उनकी मां का देहावसान हुआ था, उस दिन भी वे अपने हॉकी प्रेम से जकड़े नजर आए. दोपहर में दाह संस्कार के बाद वो 2 बजे फिर ग्राउंड में खेलने के लिए पहुंच गए थे, जिसे देख सभी अचंभित रह गए थे. राजनीति से रहे अलग: केडी सिंह में कभी पावर पाने की ख्वाहिश नहीं रही. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें कई बार बुलावा भेजा कि वे राजनीति में आ जाए, उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया जाएगा. लेकिन उन्होंने हमेशा राजनीति से किनारा किया. यही नहीं वे खेलों में भी किसी प्रकार की राजनीति का दखल नहीं चाहते थे.
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जिले की पहचान बने 'बाबू केडी सिंह': केडी सिंह ने हमेशा अपने परिवार को एक सूत्र में बांधे रखा. उनके दो पुत्र कुंवर धीरेंद्र सिंह,कुंवर विश्वविजय सिंह और दो पुत्रियां हैं. कई भतीजे, भांजे और भरा पूरा परिवार है. आज भी इस परिवार की पहचान केडी सिंह के नाम से ही की जाती है. परिवारवालों को इस पर गर्व है कि बाराबंकी की पहचान केडी सिंह के नाम से होती है.
पंडित राजनाथ शर्मा ने उठाया ये बीड़ा: हालांकि, लखनऊ के साथ-साथ बाराबंकी में भी उनके नाम से स्टेडियम है. बावजूद इसके नई पीढ़ी धीरे-धीरे उनको भूलती जा रही थी. इसको महसूस करते हुए प्रसिद्ध गांधीवादी पंडित राजनाथ शर्मा ने उनकी यादों को सहेजने व युवाओं के बीच उनकी पहचाने को बनाए रखने का बीड़ा उठाया. उन्होंने मशहूर खिलाड़ी सलाउद्दीन किदवई के साथ मिलकर महात्मा गांधी स्पोर्ट्स क्लब का गठन किया.
भले ही कुंवर दिग्विजय सिंह महज 56 वर्ष की उम्र में 27 मार्च, 1978 को इस नश्वर दुनिया को अलविदा कह गए हों, लेकिन अपने खेल से बाराबंकी का देश-दुनिया में उन्होंने जो नाम किया वो हमेशा याद रहेगा.
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