बाराबंकी: जिले में टेस्ट ट्यूब काऊ बेबी पैदा की जा रही हैं. सूबे की ये पहली और अकेली लैब है, जहां टेस्ट ट्यूब के जरिये अच्छी नस्ल की बछिया और बछड़े पैदा किये जा रहे हैं. पशु सम्पदा बढाने और देसी गायों के संवर्धन में ये लैब खास भूमिका निभा रही है.
प्रदेश की पहली और अनोखी लैब
जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर स्थित है चक गंजरिया फार्म. यहां सूबे की पहली और अकेली एम्ब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी लैब है. अभी तक यहां खास ढंग से भ्रूण प्रत्यारोपण कर अच्छी नस्ल की बछिया और बछड़े पैदा किए जा रहे थे, लेकिन अब इस लैब को और भी मोडिफाई कर दिया गया है. अब यहां टेस्ट ट्यूब से भी काऊ बेबी का जन्म हो रहा है. टेस्ट ट्यूब से काऊ बेबी पैदा करने वाली ये अकेली लैब है.
भ्रूण प्रत्यारोपण के जरिए पैदा किये जा रहे थे काऊ बेबी
इस लैब में अभी तक एम्ब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी से अच्छी नस्ल की गाय में हार्मोन्स के जरिए सुपर मल्टीपल ओवुलेशन किया जाता था .गाय में ही आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन करते थे. वहीं अंडे फर्टिलाइज होकर भ्रूण में बदल जाते थे .सात दिन बाद गाय से भ्रूण कलेक्ट कर फिर दूसरी गाय में प्रत्यारोपित कर बच्चे पैदा किए जाते थे.
किस तरह टेस्ट ट्यूब से पैदा किए जा रहे गाय के बच्चे
टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया में पहले अल्ट्रासाउंड के जरिए गाय के अंडाशय से अंडा निकाला जाता है, फिर अंडे को 24 घण्टे के लिए मैचुरेशन मीडिया में रखा जाता है. मैचुरेशन के बाद 16 घण्टों तक अंडों को फर्टिलाइजेशन मीडिया में रखा जाता है. उसके बाद कल्चर करते हैं फिर जो भ्रूण तैयार होता है उसे 7 दिनों तक लैब में रखा जाता है, जब वो प्रत्यारोपित करने योग्य हो जाता है तो उसे ग्राही गाय की कोख में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इस ग्राही गाय को सरोगेट मदर कहते हैं.
पहले की प्रक्रिया और टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया में अंतर
पहले की तकनीक में भ्रूण को गाय की बच्चेदानी के अंदर ही तैयार किया जाता था, फिर उस भ्रूण को किसी गाय में ट्रांसप्लांट कर बच्चा पैदा किया जाता था. लेकिन इस टेस्ट ट्यूब या ओपीयू आइवीएफ टेक्नोलॉजी में भ्रूण गाय की बच्चेदानी में नहीं बल्कि लैब में पेट्री डिश में पैदा किया जाता है. पहले की तकनीक में जिस गाय का प्रयोग कर लेते थे तो फिर दो से ढाई महीने बाद ही उस गाय का प्रयोग कर पाते थे. उस गाय को रेस्ट देना पड़ता था, जिससे साल भर में एक गाय का केवल 4 या 5 बार ही प्रयोग कर पाते थे. लेकिन इस तकनीक से हर हफ्ते गाय से भ्रूण बना सकते हैं.पहले की तकनीक में साल भर में जहां 20 से 30 भ्रूण पैदा होते थे, वहीं इस तकनीक से 100 से 150 भ्रूण पैदा करते हैं.
तैयार बछड़ों को सीमेन स्टेशनों पर भेजा जा रहा
फार्म का उद्देश्य है कि अच्छे नस्ल के सांड पैदा किये जाएं. लेकिन टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में लिंग निर्धारण नहीं किया जाता .प्राकृतिक तरीके से करीब पचास प्रतिशत बछिया और बछड़े पैदा किए जाते हैं. बछिया यहीं रोक ली जाती हैं और बछड़ों को सीमेन स्टेशन भेज दिया जाता है.
साहीवाल गायों का किया जा रहा संवर्धन
देसी गायों के संवर्धन के लिए यहां साहीवाल नस्ल की बछिया और बछड़े पैदा किये जा रहे हैं. क्योंकि साहीवाल गाय दूसरी गायों की अपेक्षा ज्यादा दूध देती हैं.
क्या है चक गंजरिया फार्म का इतिहास
बाराबंकी जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर जहांगीराबाद थाने के सामने स्थापित चक गंजरिया फार्म की स्थापना वर्ष 1949-50 में लखनऊ में की गई थी. साल 2015 में इसे बाराबंकी के जहांगीराबाद में थाने के सामने की जमीन पर स्थानांतरित कर दिया गया था. पच्चीस एकड़ जमीन पर बने इस राजकीय पशुधन प्रक्षेत्र की सूबे में खास पहचान है. यहां कुक्कुट पालन,बटेर पालन समेत कई इकाइयां हैं. सबसे खास बात ये की यहां सूबे की पहली और अकेली इम्ब्रियो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी लैब है.
इन आंकड़ों पर एक नजर
- प्रयोगशाला में अब तक 69 बार साहीवाल गाय से भ्रूण निकालने की प्रक्रिया की गई.
- कुल 580 भ्रूण निकाले गए.
- 340 भ्रूण प्रत्यारोपित करने योग्य.
- 260 भ्रूण ग्राही गायों में प्रत्यारोपित.
- 79 गाय गर्भित.
- 60 बछड़े और बछिया पैदा.
- टेस्ट ट्यूब से दो दर्जन भ्रूण लैब में तैयार कर प्रत्यारोपित
टेस्ट ट्यूब बेबी से बच्चा पैदा करने के लिए ओपीयू आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन का प्रयोग किया जाता है. इस विधि में अधिक अंडे का उत्पादन किया जाता है, जिसे सुपर ओव्यूलेशन कहा जाता है.
टेस्ट ट्यूब तकनीक के जरिए पैदा हुए उच्च गुणवत्ता के बछिया और बछड़ों से न केवल देश की पशु सम्पदा बढ़ेगी, बल्कि इससे पशुपालकों को भी खासा लाभ होगा .