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बाराबंकी: विद्यालय की छत पर बना रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम - मसौली विकासखंड

यूपी के बाराबंकी में एक शिक्षक ने स्कूल में अपने खर्चे पर रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाया है. जिले का यह पहला परिषदीय स्कूल है, जहां जल संचयन की पहल की गई है.

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Published : Sep 30, 2020, 3:57 PM IST

बाराबंकी: जिले में जल संचयन के लिए एक शिक्षक ने अनोखी पहल की है. शिक्षक ने स्कूल में अपने खर्चे पर रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाया है. जिले का यह पहला परिषदीय स्कूल है, जहां जल संचयन की पहल की गई है. शिक्षक का नाम अवधेश कुमार पांडे है. ये मसौली विकासखंड के करपिया गांव के कम्पोजिट विद्यालय के प्रधानाध्यापक हैं.

अवधेश ने एक मॉडल विद्यालय बनाया है. ये हमेशा कुछ नया और क्रिएटिव करने की सोच रखते हैं. अवधेश ने रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाया है. खास बात यह कि अपने सहयोगियों और ग्राम प्रधान की मदद से अपने खर्चे से इन्होंने इसका निर्माण कराया है.

पिछले कुछ वर्षों से अवधेश पांडे ने देखा कि वर्षा का पानी स्कूल की छत से बहकर बर्बाद हो रहा है. पानी स्कूल के ग्राउंड में भरा रहता था. इससे बच्चों को आने-जाने में परेशानी होती थी. बीमारियों का खतरा भी बना रहता था. सबसे बड़ी बात तो ये कि गर्मियों में वाटर लेवल नीचे चला जाता था, जिससे पेयजल का संकट हो जाता था. लिहाजा उन्होंने जल संचयन की आवश्यकता महसूस की और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवा डाला. अब छतों का पानी पाइप के जरिए 40 फीट की बोरिंग से होते हुए सीधे धरती में चला जाता है.

शिक्षक ने स्कूल की छत पर बनवाया रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम.

क्या है रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने को हार्वेस्टिंग सिस्टम कहा जाता है. जल के अत्यधिक दोहन से पृथ्वी का जलस्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है. इस बड़ी समस्या का एकमात्र उपाय जल संचयन है. वर्षा का पानी नाले-नालियों और नदियों से बहता हुआ समुद्र के खारे पानी में मिलकर खारा हो जाता है. वर्षा के इस पानी को इकट्ठा कर हम फिर से इसे पीने योग्य बना सकते हैं. लिहाजा ये जरूरी है कि वर्षा के पानी को संचय कर हम उसे फिर से जमीन के नीचे पहुंचा दें. इसी प्रक्रिया को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कहते हैं.

कैसे तैयार हुआ सिस्टम
इसके लिए स्कूल की छत पर जगह-जगह बने होल को पीवीसी के पाइप से जोड़ा गया. फिर एक बड़े पाइप के जरिये इसे एक चौकोर गड्ढे से कनेक्ट कर दिया गया. गड्ढे में 40 फिट की बोरिंग कराकर मोटा पाइप डाल दिया गया. अब जब बरसात होगी तब छत का सारा पानी इस बड़े पाइप से होता हुआ गड्ढे में आएगा और गड्ढे से सीधे जमीन में चला जाएगा. शासन ने भी सभी स्कूलों में जल संचयन सिस्टम लगवाने को अनिवार्य कर दिया है. ऐसे में इस शिक्षक की दूरगामी सोच वाकई काबिले तारीफ है.

बाराबंकी: जिले में जल संचयन के लिए एक शिक्षक ने अनोखी पहल की है. शिक्षक ने स्कूल में अपने खर्चे पर रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाया है. जिले का यह पहला परिषदीय स्कूल है, जहां जल संचयन की पहल की गई है. शिक्षक का नाम अवधेश कुमार पांडे है. ये मसौली विकासखंड के करपिया गांव के कम्पोजिट विद्यालय के प्रधानाध्यापक हैं.

अवधेश ने एक मॉडल विद्यालय बनाया है. ये हमेशा कुछ नया और क्रिएटिव करने की सोच रखते हैं. अवधेश ने रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाया है. खास बात यह कि अपने सहयोगियों और ग्राम प्रधान की मदद से अपने खर्चे से इन्होंने इसका निर्माण कराया है.

पिछले कुछ वर्षों से अवधेश पांडे ने देखा कि वर्षा का पानी स्कूल की छत से बहकर बर्बाद हो रहा है. पानी स्कूल के ग्राउंड में भरा रहता था. इससे बच्चों को आने-जाने में परेशानी होती थी. बीमारियों का खतरा भी बना रहता था. सबसे बड़ी बात तो ये कि गर्मियों में वाटर लेवल नीचे चला जाता था, जिससे पेयजल का संकट हो जाता था. लिहाजा उन्होंने जल संचयन की आवश्यकता महसूस की और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवा डाला. अब छतों का पानी पाइप के जरिए 40 फीट की बोरिंग से होते हुए सीधे धरती में चला जाता है.

शिक्षक ने स्कूल की छत पर बनवाया रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम.

क्या है रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने को हार्वेस्टिंग सिस्टम कहा जाता है. जल के अत्यधिक दोहन से पृथ्वी का जलस्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है. इस बड़ी समस्या का एकमात्र उपाय जल संचयन है. वर्षा का पानी नाले-नालियों और नदियों से बहता हुआ समुद्र के खारे पानी में मिलकर खारा हो जाता है. वर्षा के इस पानी को इकट्ठा कर हम फिर से इसे पीने योग्य बना सकते हैं. लिहाजा ये जरूरी है कि वर्षा के पानी को संचय कर हम उसे फिर से जमीन के नीचे पहुंचा दें. इसी प्रक्रिया को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कहते हैं.

कैसे तैयार हुआ सिस्टम
इसके लिए स्कूल की छत पर जगह-जगह बने होल को पीवीसी के पाइप से जोड़ा गया. फिर एक बड़े पाइप के जरिये इसे एक चौकोर गड्ढे से कनेक्ट कर दिया गया. गड्ढे में 40 फिट की बोरिंग कराकर मोटा पाइप डाल दिया गया. अब जब बरसात होगी तब छत का सारा पानी इस बड़े पाइप से होता हुआ गड्ढे में आएगा और गड्ढे से सीधे जमीन में चला जाएगा. शासन ने भी सभी स्कूलों में जल संचयन सिस्टम लगवाने को अनिवार्य कर दिया है. ऐसे में इस शिक्षक की दूरगामी सोच वाकई काबिले तारीफ है.

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