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ऐतिहासिक देवा शरीफ पर प्रियंका का ट्वीट, कहा- विश्वपटल पर कौमी एकता के संदेश को किया कायम

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Published : Oct 18, 2019, 6:00 PM IST

ऐतिहासिक देवा मेले पर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर बधाई दी. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मेले में शामिल सभी जनों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं. देवा शरीफ का संदेश देश भर में भाईचारे का प्रतीक बना रहे.

प्रियंका गांधी (फाइल फोटो).

बाराबंकी: ऐतिहासिक देवा मेले पर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कौमी एकता के संदेश की बधाई दी है. सैयद हाजी वारिस अली शाह और उनके वालिद हाजी कुर्बान अली शाह की याद में लगने वाले देवा मेले को प्रदेश की सांस्कृतिक गतिविधियों और कौमी एकता के लिहाज से बेहतर बताया. मेले में शामिल होने वाले सभी लोगों को बधाई और शुभकामना देते हुए प्रियंका ने भाईचारे के माहौल के लिए देवा मेले का जिक्र किया.

  • मेले में शामिल सभी जनों को मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएँ। देवा शरीफ़ का संदेश देश भर में भाईचारे का प्रतीक बना रहे।

    — Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) October 18, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

'जो रब है वही राम है' कहने वाले सैयद हाजी वारिस अली शाह और उनके वालिद हाजी कुर्बान अली शाह के सम्मान में बाराबंकी के देवा शरीफ मेला लगता है. यह मेला उत्तर प्रदेश की उन सांस्कृतिक गतिविधियों में से एक हैं, जिन्होंने विश्व पटल पर कौमी एकता के संदेश को कायम किया.

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हाजी वारिस अली शाह की जन्म स्थली देवा बाराबंकी है. यहीं से उन्होंने सार्वभौमिक प्रेम के संदेश के द्वारा लोगों को एकजुट होने और साथ रहने का आवाह्नन किया था. हाजी वारिस अली शाह का जन्म 19वीं शताब्दी में हुआ था और उन्होंने अप्रैल 1905 में प्राण त्याग दिये थे.

ये भी पढ़ें- अयोध्या: बाबरी मस्जिद पक्षकार ने श्री रामजन्मभूमि के पुजारी से लिया आशीर्वाद​​​​​​​

हर साल 'सफर' जो चंद्र आधारित पवित्र महीना होता है, उसमें हाजी वारिस अली शाह की कब्र पर 'उर्स' का आयोजन होता है. साल 1897 से लगातार हाजी वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह की याद में पवित्र कार्तिक महीने अक्टूबर-नवंबर में भी उर्स का आयोजन होता है, जिसे 'देवा मेले' के नाम से जाना जाता है. 1897 से हो रहे देवा मेले का आयोजन सूफी सन्त हाजी वारिस अली शाह ने अपने पिता कुर्बान अली शाह की याद में किया था. इस मेले में कवि सम्मेलन और मुशायरे भी होते हैं. यह भारत का पहला ऐसा कवि सम्मेलन और मुशायरा है, जो पिछले 145 सालों से लगातार चल रहा है.

बाराबंकी: ऐतिहासिक देवा मेले पर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कौमी एकता के संदेश की बधाई दी है. सैयद हाजी वारिस अली शाह और उनके वालिद हाजी कुर्बान अली शाह की याद में लगने वाले देवा मेले को प्रदेश की सांस्कृतिक गतिविधियों और कौमी एकता के लिहाज से बेहतर बताया. मेले में शामिल होने वाले सभी लोगों को बधाई और शुभकामना देते हुए प्रियंका ने भाईचारे के माहौल के लिए देवा मेले का जिक्र किया.

  • मेले में शामिल सभी जनों को मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएँ। देवा शरीफ़ का संदेश देश भर में भाईचारे का प्रतीक बना रहे।

    — Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) October 18, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

'जो रब है वही राम है' कहने वाले सैयद हाजी वारिस अली शाह और उनके वालिद हाजी कुर्बान अली शाह के सम्मान में बाराबंकी के देवा शरीफ मेला लगता है. यह मेला उत्तर प्रदेश की उन सांस्कृतिक गतिविधियों में से एक हैं, जिन्होंने विश्व पटल पर कौमी एकता के संदेश को कायम किया.

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हाजी वारिस अली शाह की जन्म स्थली देवा बाराबंकी है. यहीं से उन्होंने सार्वभौमिक प्रेम के संदेश के द्वारा लोगों को एकजुट होने और साथ रहने का आवाह्नन किया था. हाजी वारिस अली शाह का जन्म 19वीं शताब्दी में हुआ था और उन्होंने अप्रैल 1905 में प्राण त्याग दिये थे.

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हर साल 'सफर' जो चंद्र आधारित पवित्र महीना होता है, उसमें हाजी वारिस अली शाह की कब्र पर 'उर्स' का आयोजन होता है. साल 1897 से लगातार हाजी वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह की याद में पवित्र कार्तिक महीने अक्टूबर-नवंबर में भी उर्स का आयोजन होता है, जिसे 'देवा मेले' के नाम से जाना जाता है. 1897 से हो रहे देवा मेले का आयोजन सूफी सन्त हाजी वारिस अली शाह ने अपने पिता कुर्बान अली शाह की याद में किया था. इस मेले में कवि सम्मेलन और मुशायरे भी होते हैं. यह भारत का पहला ऐसा कवि सम्मेलन और मुशायरा है, जो पिछले 145 सालों से लगातार चल रहा है.

Intro:बाराबंकी, 18 अक्टूबर। ऐतिहासिक देवा मेले पर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कौमी एकता के संदेश की बधाई दी है. सैयद हाजी वारिस अली शाह और उनके वालिद हाजी कुर्बान अली शाह को किया है याद. देवा मेले को उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक गतिविधियों और कौमी एकता के लिहाज से बेहतर बताया है. मेले में शामिल होने वाले सभी लोगों को बधाई और शुभकामना देते हुए, भाईचारे के माहौल के लिए देवा मेले का जिक्र किया है.
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" 'जो रब है वही राम है' कहने वाले सैयद हाजी वारिस अली शाह और उनके वालिद हाजी कुर्बान अली शाह के सम्मान में लगने वाला बाराबंकी का देवा शरीफ का मेला उत्तर प्रदेश की उन सांस्कृतिक गतिविधियों में से एक हैं जिन्होंने विश्व पटल पर कौमी एकता के संदेश को कायम किया।
#DevaSharif "

2- " मेले में शामिल सभी जनों को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं। देवा शरीफ का संदेश देशभर में भाईचारे का प्रतीक बना रहे।


Body:हाजी वारिस अली शाह की जन्म स्थली देवा बाराबंकी है , और यहीं से उन्होंने सार्वभौमिक प्रेम के संदेश के द्वारा लोगों को एकजुट होने और साथ रहने का आवाहन किया था. हाजी वारिस अली शाह का जन्म 19वीं शताब्दी में हुआ था और उन्होंने अप्रैल 1905 में प्राण त्याग दिया . उन्हीं की स्मृति में उनके हिंदू, मुस्लिम, सिख , ईसाई सभी अनुयायियों ने मिलकर, उनके स्वर्गवास वाले स्थान पर ही उन्हें दफनाया, और वहां पर भव्य स्मारक बना दिया . यहीं से उनके द्वारा दिए गए संदेशों को लोगों तक पहुंचाने का काम किया , जो अब भी अनवरत जारी है.

हर साल "सफर" जो चंद्र आधारित पवित्र महीना होता है, उसमें हाजी वारिस अली शाह की कब्र पर "उर्स" का आयोजन होता है.
वर्ष 1897 से लगातार हाजी वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह की याद में पवित्र कार्तिक महीने अर्थात अक्टूबर-नवंबर में भी उर्स का आयोजन होता है जिसे "देवां मेले" के नाम से जाना जाता है.

सूफी परंपरा के इस महान संत की मजार पूरे भारत में प्रसिद्ध है और यहां पर सभी धर्मों के अनुयाई आते ही रहते हैं.

हाजी वारिस अली शाह का संदेश जो रब है वही है राम. सभी एक ही ईश्वर की है संतान , सबको अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार ईश्वर को प्राप्त करने का है अधिकार. मोहब्बत और प्रेम के साथ रहना ही है ईश्वर भगवान और अल्लाह का संदेश. आज भी सभी धर्मों के लोग देवां शरीफ में अपनी मान्यता के अनुसार करते हैं ईश्वर को याद. हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर सभी धर्मों के लोगों को मिलता है सुकून. दूर-दूर से लोग आते हैं चादर चढ़ाने. मोहब्बत के पैगाम के साथ एक दूसरे से मिलजुल कर रहते हैं लोग. होली के त्यौहार में भी सभी धर्मों के अनुयाई मजार के परिसर में खेलते हैं होली. सांप्रदायिक सौहार्द के वातावरण को यहां से मिलता है नया आयाम.


Conclusion:1897 से हो रहा है देवा मेले का आयोजन. सूफी सन्त हाजी वारिस अली शाह ने अपने पिता कुर्बान अली शाह की याद में किया था पहली बार इस मेले का आयोजन,और तब से हो रहा है इस परंपरा का निर्वहन. इस मेले में कवि सम्मेलन और मुशायरे का भी होता है आयोजन. भारत का पहला ऐसा कवि सम्मेलन और मुशायरा है, जो पिछले 145 सालों से लगातार चल रहा है. हर साल 15 अक्टूबर से शुरू होता है मेले का आयोजन.


रिपोर्ट-  आलोक कुमार शुक्ला , रिपोर्टर बाराबंकी, 96284 76907.
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