बाराबंकी: गोष्ठियों और सेमिनारों में महिला उत्थान और सशक्तिकरण की बड़ी बड़ी बातें की जाती है, लेकिन जब उनको चुनाव लड़ाने के लिए टिकट देने की बात आती है तो लोग पीछे हो जाते हैं. जिले की लोकसभा सीट का कुछ ऐसा ही हाल है. पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव को अपवाद मानकर छोड़ दिया जाय तो आजादी के बाद से आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने महिलाओं को उम्मीदवार बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.
राजधानी लखनऊ से सटा बाराबंकी हमेशा से ही राजनीतिक चर्चाओं में रहा है. यहां के एक से एक दिग्गज राजनीतिज्ञों रफी अहमद किदवाई, राम सेवक यादव, बेनी प्रसाद वर्मा, मोहसिना किदवाई सभी ने जिले को खासी पहचान दिलाई है. जिले में राजनीतिक सक्रियता होने के बावजूद हैरानी की बात ये है कि किसी भी राजनीतिक दल ने महिलाओं को लोकसभा चुनाव नहीं लड़ाया. महिला उत्थान की बाते करने वाले लोगों ने कभी भी यहां से आधी आबादी वाली महिलाओं को लोकसभा चुनाव में टिकट नहींदिया.
पांच विधानसभाओं कुर्सी,रामनगर,बाराबंकी,जैदपुर,और हैदरगढ़ को मिलाकर बनने वाली बाराबंकी लोकसभा में 2216172 मतदाता हैं, जिसमें महिलाओं की 1033276 आधी आबादी है. बावजूद इसके आधी आबादी को टिकट देने में राजनीतिक दलों ने हमेशा उपेक्षा की. चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो एक अपवाद को छोड़ दे तो पहले आम चुनाव से लगाकर आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने महिला को प्रत्याशी नहीं बनाया.
पिछले लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने पहल की और प्रियंका सिंह रावत को टिकट दिया तो उसी चुनाव में सपा ने भी अपना उम्मीदवार राजरानी रावत को प्रत्याशी बना दिया. प्रियंका सिंह रावत जीती भी लेकिन इस बार फिर राजनीतिक दलों ने महिला प्रत्याशी को किनारे कर दिया है.