बाराबंकी: सालों से अपनों की राह देखते-देखते बूढ़ी आंखें थक गईं, लेकिन उनकी सुध लेने कोई नहीं आया. इन बूढ़े मां-बाप को जिन बच्चों से आस थी, उन्होंने ही इस उम्र में उनका साथ छोड़ दिया. हम बात कर रहे हैं लखनऊ-अयोध्या हाईवे पर स्थित सफेदाबाद से थोड़ी दूर स्थित मातृ-पितृ सदन वृद्धाश्रम की. यहां रह रहे बुजुर्गों का हाल-ए-दिल कुछ ऐसा ही है.
बुढ़ापे में जिनसे थी आस, उन्होंने ही छोड़ दिया साथ - barabanki news
बाराबंकी जिले के लखनऊ-अयोध्या हाईवे पर स्थित सफेदाबाद से थोड़ी दूर मातृ-पितृ सदन वृद्धाश्रम है. यहां रह रहे बुजुर्गों की आंखें अपनों की राह देखते देखते थक गई हैं. इसके बाद भी उनकी सुध लेने कोई नहीं आया है. वृद्धाश्रम के कर्मचारी ही परिजनों की तरह इनकी देखभाल करते हैं. तमाम सामाजिक संगठन बीच-बीच में यहां आकर इन बुजुर्गों की सुध ले लेते हैं.
वृद्धाश्रम
बाराबंकी: सालों से अपनों की राह देखते-देखते बूढ़ी आंखें थक गईं, लेकिन उनकी सुध लेने कोई नहीं आया. इन बूढ़े मां-बाप को जिन बच्चों से आस थी, उन्होंने ही इस उम्र में उनका साथ छोड़ दिया. हम बात कर रहे हैं लखनऊ-अयोध्या हाईवे पर स्थित सफेदाबाद से थोड़ी दूर स्थित मातृ-पितृ सदन वृद्धाश्रम की. यहां रह रहे बुजुर्गों का हाल-ए-दिल कुछ ऐसा ही है.
कड़ाके की ठंड से बचने के लिए धूप सेंक रहे इन बुजुर्गों के चेहरों पर भले ही मुस्कान दिख रही हो, लेकिन दिल में अपनों के ठुकराने की टीस है. इन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि वे जिन बच्चों को इतने जतन से बड़ा कर रहे हैं, बुढ़ापे में जरूरत के समय वे ही उनका साथ छोड़ देंगे. बच्चों की बेरुखी के कारण उन्हें अपना बुढ़ापा होम (home) के स्थान ओल्ड एज होम (old age home) यानी वृद्धाश्रम में गुजारना पड़ेगा. काफी सालों से यहां रह रहे बुजुर्ग लखनऊ-अयोध्या हाईवे पर स्थित सफेदाबाद से थोड़ी दूर स्थित एक वृद्धाश्रम में जिंदगी गुजार रहे हैं. बता दें इस आश्रम में अलग-अलग स्थानों के 86 बुजुर्ग हैं.
वर्ष 2017 में स्थापित इस वृद्धाश्रम में काम करने वाले कर्मचारी इन बुजुर्गों का परिजनों की तरह ख्याल रखते हैं. कोशिश की जाती है कि इन्हें अपनों की कमी का जरा भी एहसास न हो. इसलिए आश्रम में इन बुजुर्गों को तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. एक सामाजिक संस्था यहां की देखरेख करती है. कई सामाजिक संगठन यहां आकर इन बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करते हैं.वृद्धाश्रम के कर्मचारी करते हैं सेवा
वृद्धाश्रम के कर्मचारियों को इन बुजर्गों की सेवा करने में खुशी मिलती है. इस दौरान उन्हें अफसोस भी होता है कि एक मां चार बच्चों को पाल लेती है, लेकिन चार बच्चे मिलकर एक मां को घर में स्थान नहीं दे पाते हैं.
कड़ाके की ठंड से बचने के लिए धूप सेंक रहे इन बुजुर्गों के चेहरों पर भले ही मुस्कान दिख रही हो, लेकिन दिल में अपनों के ठुकराने की टीस है. इन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि वे जिन बच्चों को इतने जतन से बड़ा कर रहे हैं, बुढ़ापे में जरूरत के समय वे ही उनका साथ छोड़ देंगे. बच्चों की बेरुखी के कारण उन्हें अपना बुढ़ापा होम (home) के स्थान ओल्ड एज होम (old age home) यानी वृद्धाश्रम में गुजारना पड़ेगा. काफी सालों से यहां रह रहे बुजुर्ग लखनऊ-अयोध्या हाईवे पर स्थित सफेदाबाद से थोड़ी दूर स्थित एक वृद्धाश्रम में जिंदगी गुजार रहे हैं. बता दें इस आश्रम में अलग-अलग स्थानों के 86 बुजुर्ग हैं.
वर्ष 2017 में स्थापित इस वृद्धाश्रम में काम करने वाले कर्मचारी इन बुजुर्गों का परिजनों की तरह ख्याल रखते हैं. कोशिश की जाती है कि इन्हें अपनों की कमी का जरा भी एहसास न हो. इसलिए आश्रम में इन बुजुर्गों को तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. एक सामाजिक संस्था यहां की देखरेख करती है. कई सामाजिक संगठन यहां आकर इन बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करते हैं.वृद्धाश्रम के कर्मचारी करते हैं सेवा
वृद्धाश्रम के कर्मचारियों को इन बुजर्गों की सेवा करने में खुशी मिलती है. इस दौरान उन्हें अफसोस भी होता है कि एक मां चार बच्चों को पाल लेती है, लेकिन चार बच्चे मिलकर एक मां को घर में स्थान नहीं दे पाते हैं.