बाराबंकीः कोरोना संक्रमण की वजह से करीब सात महीनों से बंद राष्ट्रीय लोकअदालत का आयोजन किया गया. जिसकी वजह से लोगों की जबरदस्त भीड़ नज़र आई. इन लोक अदालतों के जरिये एक ओर जहां अदालतों पर निर्भरता कम हो रही है, तो वहीं वादकारियों को अदालतों के चक्कर लगाने से भी निजात मिल रही है.
7 महीने बाद आयोजित हुई लोक अदालत
दिसंबर 2020 में लोक अदालत का आयोजन हुआ था. लेकिन उसके बाद कोविड संक्रमण के चलते 4 लोक अदालतों को कैंसिल करना पड़ा. यही वजह है कि इस बार वादकारियों में अपने-अपने मामलों के निस्तारण को लेकर खासा जोश दिखाई दिया. हालांकि इस लोक अदालत में भी कोविड संक्रमण को लेकर खासी सतर्कता बरती गई. जिला जज राधेश्याम यादव की अध्यक्षता में आयोजित इस लोक अदालत में वादों के शत प्रतिशत निस्तारण के लिए न्यायिक अधिकारी पूरे तरीके से लगे रहे. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव संजय कुमार और लोक अदालत के नोडल अधिकारी एडीजे अशोक यादव ने इस पर पूरी नजर बनाए रखी.
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इस लोक अदालत के लिए चिन्हित वाद
- फैमिली कोर्ट 123
- मोटर एक्सीडेंट क्लेम
- स्थायी लोक अदालत के केस 10
- सिविल केस 141
- क्रिमिनल केस 3,480
- 138 एनआई एक्ट 15
- मेट्रीमोनियल केस 123
- पेंडिंग केस 3,769
- राजस्व विभाग के केस 11,561
- बैंकों के मामले 14,163
- अन्य विभागों के केस 3,474
क्या है लोक अदालत
वादकारियों की त्वरित और कम खर्च पर न्याय दिलाने के उद्देश्य से लोक अदालतों का आयोजन किया जाता है. साल 1982 में इसी अवधारणा को लेकर सबसे पहली लोक अदालत का आयोजन गुजरात में किया गया था. उसके बाद इसकी सफलता को देखते हुए साल 2002 से इसे स्थायी बना दिया गया.
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ये हैं इसके फायदे
लोक अदालतों से न केलव अदालतों के बढ़ते बोझ को कम किया जा रहा है, बल्कि इससे वादकारियों को कई तरह से लाभ भी हो रहे हैं.
- इससे कोर्ट फीस में बचत होती है.
- इसमें वकील की आवश्यकता नहीं होती लिहाजा वकील की फीस की बचत होती है.
- इसमें मामले का तुरंत निपटारा हो जाता है.
- लोक अदालत का फैसला अंतिम फैसला होता है.
- लोक अदालत में हुए फैसले के खिलाफ न तो कहीं रिवीजन होता है और न ही अपील.
- दोनों पक्षों की आम सहमति से होता है फैसला